Ashish Kumar Trivedi

Abstract Others

4.0  

Ashish Kumar Trivedi

Abstract Others

तेरी दीवानी

तेरी दीवानी

2 mins
173


अंधेरे में वह बिना किसी डर के बढ़ी चली जा रही थी। उसे ना अपनी सुध थी और ना ही दुनिया की परवाह। वह प्रेम दीवानी सिर्फ पिया से मिलने की चाह लिए भागी चली जा रही थी।

जबसे उस चितचोर से नैन मिले थे उसका तो दिल का चैन लुट गया था। पूरा दिन बड़ी मुश्किल से इस इंतज़ार में काटती थी कि कब रात आए। उसका प्रेमी बांसुरी बजाए। उसका स्वर सुनकर वह अंधेरे में खुद को छिपाकर उससे मिलने जाए। 

उस चितचोर से वह राज्य के वार्षिक मेले में मिली थी। एक ही नज़र में उसकी दीवानी हो गई। कुछ ही मुलाकातों में नौबत यहाँ तक आ गई कि उसे लोकलाज की भी परवाह नहीं रही। पिछले एक महीने से उससे मिलने का क्रम जारी था। उसका प्रेमी महल के पास नदी किनारे पहुँच कर बांसुरी बजाता। बांसुरी की आवाज़ सुनकर वह चल पड़ती। पौ फटने तक उसके साथ रहती। फिर उजाला चुगली ना कर दे इसलिए बचते बचाते महल में चली जाती।

बांसुरी की आवाज़ उसके कानों में पड़ रही थी और उसके कदम तेज़ी से बढ़ रहे थे। अचानक कुछ लोग उसके सामने आ गए। वह ठिठक कर रुक गई। उन्हें देखकर चीख पड़ी। वह डाकू थे। डाकुओं के सरदार ने उसका हाथ पकड़ कर अपने घोड़े पर खींचने की कोशिश की। उसने ताकत लगाकर अपना हाथ छुड़ाया। उस तरफ भागी जहाँ उसका प्रेमी राह देख रहा था। 

वह भागकर अपने प्रेमी के पास पहुँच गई। उसे तसल्ली थी कि अब वह उसकी रक्षा करेगा। पर डाकुओं को देखकर वह थर थर कांप रहा था। उसे कांपता हुआ देखकर वह और अधिक डर गई। डाकुओं का सरदार उसकी तरफ बढ़ा। उसने अपने प्रेमी से मदद की गुहार की। लेकिन वह सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था। 

उस प्रेम दीवानी को झटका लगा। जैसे वह किसी बेहोशी से बाहर आई थी। वह अपनी आत्मरक्षा के लिए सजग हो गई। अपने वस्त्रों में छिपी कटार निकाली और अपनी सामर्थ्य भर डाकुओं से लड़ने लगी। वह सोच रही थी कि एक बेहोशी को वह प्यार समझ रही थी। बेहोशी टूटी तो समझ आया कि वह जोखिम भरे रास्ते पर चल रही थी।

लड़ते हुए हार गई तो कटार अपने सीने में उतार ली।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract