Ashish Kumar Trivedi

Tragedy Others

3  

Ashish Kumar Trivedi

Tragedy Others

प्रवासी जन

प्रवासी जन

4 mins
152


भोलाराम और राजेश दोनों कोठरी के बाहर उदास बैठे थे। राजेश ने कहा,

"कुछ समझ नहीं आ रहा है। माला की तबीयत दिन पर दिन बिगड़ रही है। इतने दिन हो गए पर कोई सुधार नहीं है। अब तो इलाज कराने के पैसे भी नहीं बचे हैं। वह रट लगाए रहती है कि हमें घर ले चलो।"

भोलाराम ने एक आह भरकर कहा,

"भइया हम सब एक जैसे ही तो हैं। दिन भर हम और हमारी औरतें मेहनत करते हैं। तब जाकर रहने के लिए कोठरी और दो बखत रोटी मिल पाती है। चारों तरफ गंदगी है। तंग गलियां हैं। बीमारी तो पकड़ेगी ही।"

राजेश चुप हो गया। भोलाराम की बात सच ही थी। वह एक फैक्ट्री के गोदाम में लोडर का काम करता था। माला कुछ घरों में साफ सफाई और कपड़े धोने का काम करती थी। दोनों की कमाई में से इस कोठरी का किराया चला जाता था। उसके बाद खाने में खर्च होता था। थोड़ा बहुत जो बच पाता था वह अपने बेटे के भविष्य के नाम पर रख लेते थे। दोनों मिलकर बड़ी मुश्किल से गुजर बसर कर रहे थे। माला की बीमारी में जमा पूंजी भी खर्च हो गई थी। राजेश की परेशानी यह थी कि अब अकेले उसकी कमाई से यहाँ रह पाना मुश्किल हो रहा था।

वह और उसकी पत्नी माला यह सोचकर गांव छोड़कर शहर आए थे कि अच्छी कमाई होगी तो भविष्य के लिए कुछ बचेगा। पर अब तो माला की ज़िंदगी के ही लाले पड़े थे। वह उससे कहती थी कि मुझे यहाँ नहीं मरना है। मुझे गांव ले चलो। कम से कम मरने से पहले खुली हवा में कुछ सांसें ले पाऊँगी। बहुत मन करता है खेत, मैदान नदी देखने का। 

भोलाराम और राजेश दोनों ही इस समस्या के बारे में बात कर रहे थे। भोलाराम का कहना था कि सोचो मत माला की बात मान लो। गांव वापस चले जाओ। हो सकता है कि वहाँ की खुली हवा माला को रास आ जाए और वह ठीक हो जाए। राजेश को बात सही लग रही थी। पर समस्या यह थी कि गांव जाकर कमाई का कोई ज़रिया नहीं था। वापस जाकर अपने परिवार का बोझ वह घरवालों पर नहीं डालना चाहता था। भोलाराम ने उठते हुए कहा,

"परिवार वाले कुछ नहीं तो खाने को तो देंगे ही। फिर हो सकता है कि वहाँ कोई काम मिल जाए। बाकी यहाँ तो सब अपने में ही परेशान हैं। किसी से क्या उम्मीद करोगे।"

भोलाराम अपने घर चला गया। राजेश कोठरी के बाहर बैठा भोलाराम की बात पर विचार करता रहा।


राजेश अपने परिवार के साथ गांव आ गया था। माला की तबीयत में बहुत अधिक सुधार नहीं आया था। राजेश कोशिश में था कि कोई काम मिल जाए। लेकिन अभी तक कोई व्यवस्था हुई नहीं थी। वह महसूस कर रहा था कि भले ही उसके भाई भाभी कुछ कहते नहीं हैं। पर उसका इस तरह आ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगता है। वह पूरी कोशिश कर रहा था कि कोई काम मिल जाए।

सुबह एक काम की उम्मीद में वह बगल के गांव में गया था। पर बात बन नहीं पाई थी। दोपहर को लौटकर आया तो सब खाना खा रहे थे। उसने देखा कि उसका बेटा सबसे अलग बैठकर खा रहा है। उसकी थाली में भी वह नहीं था जो बाकी सबकी थाली में था। उसकी भाभी ने सफाई देते हुए कहा,

"कल रात इसे यह सब्जी बहुत अच्छी लगी थी।‌ इसलिए बची हुई इसे ही दे दी।"

उन्होंने उसे भी खाने के लिए कहा। उसने भूख नहीं है कहकर मना कर दिया। अक्सर अपनी परेशानी से ऊबकर वह नदी किनारे चला जाता था। वह टहलते हुए वहाँ जाकर बैठ गया। वह सोच रहा था कि शहर से यहाँ आ गया। लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। माला अभी भी खटिया पकड़े हुए है। उसे कोई काम नहीं मिल रहा है। वह परेशानी में बैठा नदी में कंकड़ फेंक रहा था। तभी किसी ने आवाज़ दी,

"राम राम राजेश भाई...."

उसका बचपन का साथी मनोज पास आकर बैठ गया। उसने पूछा,

"काम का कोई जुगाड़ हुआ ?"

राजेश ने निराशा भरे स्वर में कहा,

"कुछ नहीं हुआ। बस इधर उधर दौड़ हो रही है।"

मनोज ने कुछ संकोच के साथ कहा,

"तुम्हारे घर की बात है। पर तुम्हारी भाभी अम्मा से कह रही थीं कि इतने साल शहर में मौज की। तब हमारी याद नहीं आई। अब सारा बोझ लेकर यहाँ आ गए।"

राजेश को ऐसा लग रहा था कि उसके भाई भाभी उसके परिवार सहित आ जाने से खुश नहीं हैं। पर मनोज की बात सुनकर उसे अधिक तकलीफ हुई। वह सोच रहा था कि भाभी यह बात उससे करतीं तो ठीक था पर उन्होंने दूसरों से यह बात कही। मनोज जाते हुए बोला,

"कोशिश करते रहो। कोई ना कोई काम मिल जाएगा।"

राजेश सोच रहा था कि वह कहीं का नहीं रहा। शहर में उसकी हैसियत प्रवासी की थी। अपने गांव में भी सब खत्म हो गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy