Ashish Kumar Trivedi

Tragedy Others

3.4  

Ashish Kumar Trivedi

Tragedy Others

दिल का दर्द

दिल का दर्द

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खुर्शीद अपने महल के बाग में बैठा था। रिसायत में चर्चा थी कि सिपहसालार होने के बावजूद उसके महल का बाग बादशाह के बाग से किसी मायने में कम नहीं था। यह महल और बाग बादशाह की तरफ से उसकी बहादुरी का इनाम थे। 

बाग में हिरनों का एक झुंड कुलांचें भर रहा था। मौसमी फूलों की बहार थी। उनकी खुशबू से फिज़ा महक रही थी। रंग बिरंगे पक्षी पेड़ों पर चहचहा रहे थे। इन सबके ऊपर खुर्शीद का बचपन का दोस्त और संगीतज्ञ ज्ञानसेन अपने गीत के स्वर बिखेर रहा था। ऐसा समा था जो किसी का भी मन मोह लेता। पर इस माहौल में भी खुर्शीद अनमना सा था। 

गाते हुए ज्ञानसेन अचानक रुक गया। खुर्शीद अपने आप में ही खोया हुआ था। उसे गीत के बंद हो जाने का भान ही नहीं हुआ। ज्ञानसेन उठकर उसके पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखा। खुर्शीद ने चौंक कर कहा,

"गाना क्यों बंद कर दिया ?"

"क्योंकि तुम किसी परेशानी में खोए हुए हो। तुम सुन नहीं रहे थे।"

"ऐसा कुछ नहीं है ज्ञान भला मुझे किस बात की परेशानी।"

"यही मैं भी सोच रहा हूँ खुर्शीद कि तुम किस चिंता में डूबे हो। इतनी बड़ी फतह हासिल करके लौटे हो। बादशाह ने इतना आलीशान महल इनाम में दिया है। फिर भी तुम इसका लुत्फ नहीं उठा पा रहे हो।"

अपने दोस्त की बात सुनकर खुर्शीद चुप हो गया। ज्ञानसेन उसके बगल में बैठ गया। खुर्शीद ने उसे अपने दिल का दर्द सुनाया।

बादशाह की सेना लेकर वह उस बागी राजा का सर कुचलने गया था जो बादशाह की हुकूमत को स्वीकार नहीं कर रहा था। अपने बादशाह के लिए उसके मन में वफादारी का समंदर लहराता था। उसने तय कर लिया था कि बागी को अच्छा सबक सिखाएगा। अपनी सेना के साथ उसने धावा बोल दिया। विशाल सेना के सामने वह राजा टिक नहीं पाया। खुर्शीद ने फतह हासिल की। 

वह अपने सिपाहियों के साथ राजा के महल में घुस गया। खूबसूरत महल ने उसका दिल जीत लिया। वह उसकी खूबसूरती देखता हुआ महल के ऊपरी हिस्से में पहुँच गया। वहाँ उसकी निगाह एक कमसिन लड़की पर पड़ी। वह डरी हुई थी। खुर्शीद को उसमें अपनी मरहूम बेटी नज़र आई। वह उसकी तरफ बढ़ा। उस लड़की को लगा कि उसकी नीयत ठीक नहीं है। वह डरकर चिल्लाने लगी। खुर्शीद ने उसे यकीन दिलाने की कोशिश की कि उसका इरादा बुरा नहीं है। पर वह नहीं मानी।

कहानी बताते हुए खुर्शीद रोने लगा। रोते हुए उसने कहा,

"मैं ज़ीनत ज़ीनत पुकारता उसकी तरफ बढ़ रहा था। बदहवास सी वह नीचे कूद गई। एक बार फिर ज़ीनत मुझे छोड़कर चली गई।"

खुर्शीद रो रहा था। ज्ञानसेन उसे तसल्ली दे रहा था। बाग के खुशनुमा माहौल में आंसुओं की नमी थी।


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