चोरी
चोरी
आते जाते दिन में कई बार उसकी निगाह हवेली के अंदर लगे पेड़ पर पड़ती थी। हर बार वह हवेली के फाटक से दूर खड़ा होकर कुछ पल उस पेड़ पर लगे रसीले आमों को निहारता था। उसके बाद ललचाता हुआ आगे बढ़ जाता था।
हवेली ऐसी जगह पर स्थित थी जहाँ से गुज़रे बिना उसका अपने काम पर जाना संभव नहीं था। वह एक गरीब परिवार का लड़का था। बाज़ार में स्थित भोजनालय में नौकरी करता था। पहले सुबह काम पर पहुँच जाता था। दोपहर तक काम करता था। दोपहर को जब भोजनालय कुछ देर के लिए बंद होता था तब वह अपने घर आ जाता था। शाम को फिर वापस जाता था और देर रात काम करके लौटता था। इस प्रकार दिन में चार बार हवेली के सामने से गुज़रता था। रात को लौटते समय छोड़कर बाकी समय उजाला होता था। उसकी निगाह बरबस आम से लदे पेड़ पर ठहर जाती थी।
दोपहर को घर लौटते हुए वह फिर उसी जगह रुक गया जहाँ से पेड़ दिखाई पड़ता था। उसने देखा कि आमों से लदे पेड़ पर एक पक्षी बैठा था। वह अपनी चोंच आम पर मार रहा था। आम टूटकर नीचे गिर गया। रस से भरा आम नीचे गिरकर फट गया। उससे निकलते रस को देखकर उसका मन ललचा गया। तभी उसे एक कार के आने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह फौरन वहाँ से चला गया।
घर पहुँचा तो उसकी माँ खटिया पर लेटी थी। पहले वह घरों में काम करती थी। इधर तबीयत ठीक ना होने के कारण घर पर ही रहती थी। अपनी माँ के पास जाकर उसने हालचाल लिया। वह घर आते समय भोजनालय में बचा खाना खाकर आता था। इधर कुछ दिनों से बांधकर ला रहा था जिससे अपनी माँ के साथ खा सके। अपनी माँ के साथ वह लाया हुआ खाना खाने लगा।
आराम करते हुए उसके दिमाग में फिर उन रसीले आमों का खयाल आया। ऐसा नहीं था कि उसने कभी आम नहीं खाए थे। आम के मौसम में उसे भी आम खाने को मिल जाते थे। पर उस पेड़ के आम खाने की उसकी विशेष इच्छा थी। वह पेड़ उसके पिता ने लगाया था। वह उस हवेली में माली का काम करते थे। कभी कभी वह भी उनके साथ जाता था। उस दिन भी वह उसे साथ ले गए थे। जब वह पौधा लगा रहे थे तो उसने पूछा था,
"क्या हमें भी इस पेड़ के आम खाने को मिलेंगे ?"
उसके पिता ने कहा था,
"पेड़ मालिक की ज़मीन पर है। अगर वह अपनी इच्छा से देंगे तो हम लोग भी खाएंगे।"
"बाबा पेड़ तो आप लगा रहे हैं। जब आम आएं तो आप कुछ हमारे लिए तोड़ लीजिएगा।"
"वह तो चोरी होगी। चोरी गलत काम है। हाँ अगर मालिक देंगे तो तुम्हारे लिए भी ले आऊँगा।"
पेड़ लगाने के कुछ ही दिनों बाद उसके पिता की मृत्यु हो गई। छोटी उम्र में उस पर ज़िम्मेदारी आ गई। इस मौसम जब आम के पेड़ पर बौर आए थे तबसे ही उसके मन में हवेली के पेड़ के आम खाने की इच्छा पैदा हो गई थी।
शाम को जब वह वापस भोजनालय में काम करने जा रहा था तब फिर उस जगह रुक कर पेड़ पर लगे आमों को देखने लगा। पर इस बार उसकी आम खाने की इच्छा ने ज़ोर मारना शुरू कर दिया। उसे हवेली के फाटक पर दरबान दिखाई नहीं पड़ रहा था। वह कुछ आगे बढ़ा मन में आ रहा था कि अगर मैं अंदर जाकर पेड़ से एक आम तोड़ लूँ तो क्या हर्ज़ है। वैसे भी दोपहर को पक्षी ने एक आम गिराकर बर्बाद कर दिया था।
कुछ क्षण सोचने के बाद वह हिम्मत करके हवेली की चारदीवारी के उस हिस्से में पहुँचा जहाँ से पेड़ नज़दीक था। वह दीवार पर चढ़कर अंदर कूद गया। नीचे से खड़े होकर पेड़ पर लगे आमों को देखा। उसका मन फिर ललचा गया। तेज़ी से वह पेड़ पर चढ़ गया। बस हाथ बढ़ाते ही वह एक रसीला आम तोड़ सकता था। उसने हाथ बढ़ाया तो मन से आवाज़ आई,
"बेटा यह चोरी है.... चोरी पाप है...."
मन से आती आवाज़ उसके पिता की थी। उसने हाथ पीछे खींच लिया। बिना आम तोड़े पेड़ से उतर गया। वह चारदीवारी की तरफ बढ़ रहा था तभी दरबान चिल्लाया,
"कौन है उधर ?"
लड़का डर गया। दरबान ने आकर उसे पकड़ लिया। चोरी की नीयत से हवेली में घुसने के इल्ज़ाम में उसकी पिटाई हुई। फिर उसे हवेली के बाहर फेंक दिया गया।
सड़क पर पड़े वह मन ही मन कह रहा था कि बाबा मैंने चोरी नहीं की।