Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

4.4  

Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

अंतर्द्वंद्व

अंतर्द्वंद्व

4 mins
370



 अंतर्द्वंद्व 


सुबोध सामने पड़े जीवन के लिए संघर्ष करते अपने साथी को देख रहा था। उसकी थोड़ी सी सहायता साथी के प्राणों की रक्षा कर सकती थी। दोनों कार से कहीं जा रहे थे। अचानक एक्सीडेंट हो गया। कार अनियंत्रित होकर सड़क से नीचे उतर गई और पत्थर से जा टकराई। सुबोध को कुछ खरोंचे आई थीं। पर उसका साथी गंभीर रूप से घायल हो गया था। बड़ी मुश्किल से वह कार के बाहर निकला था। अब मदद के लिए सुबोध को देख रहा था।

सुबोध ने उसकी तरफ कदम बढ़ाया ही था कि अंदर से उसकी ईर्ष्या ने आवाज़ लगाई,

"रुक जाओ..... बेवकूफ हो क्या ? उसकी रक्षा करना चाहते हो जिसने तुम्हारे हिस्से के प्यार, मान सम्मान पर कब्ज़ा कर लिया था। इसके चले जाने से सब तुम पर ध्यान देंगे।"

सुबोध के कदम ठिठक गए। उसे याद आया कि कैसे सारा जीवन सब उसके साथी से उसकी तुलना करते रहे। उससे कहते रहे कि उससे कुछ सीखो। उसके जैसा बनो। इस बात ने उसके मन में ईर्ष्या के बीज बोए थे। उसके बाद समाज में उसकी बढ़ती प्रतिष्ठा ने उसे और बढ़ा दिया। लेकिन जब उसकी प्रेमिका ने उसे छोड़कर उसके साथी से शादी कर ली तो ईर्ष्या की आग उसी प्रकार उसके दिल में जलने लगी जैसे कि लोहार की भट्टी में आग जलती है। आज उसके पास मौका था अपनी ईर्ष्या की आग को शांत करने का। वह रुक गया।

उसके साथी ने उसे याचना भरी नज़र से देखा। उसकी आँखें गुहार लगा रही थीं कि मुझे बचा लो। सुबोध के अंदर की करुणा ने उसे फटकार लगाई,

"तुम इतने नीच तो नहीं हो सकते कि अपने साथी को इस तरह मरता हुआ छोड़ दो। ईर्ष्या तुम्हें गुमराह कर रही है। इसने तुम्हारा कुछ नहीं छीना है।‌ वही पाया है जिसका यह हकदार था।"

सुबोध की ईर्ष्या ने तर्क दिया,

"तुम्हारी प्रेमिका पर भी क्या इसका अधिकार था। पर तुम्हारी भावनाओं की परवाह किए बिना इसने उससे शादी कर ली थी।"

सुबोध ईर्ष्या की बात में आने लगा था कि करुणा ने कहा,

"जो हुआ इसमें इसकी गलती नहीं है। इसे नहीं पता था कि वह तुमसे प्यार करती है। तुम्हारी प्रेमिका अपने घरवालों के दबाव में आ गई। यह उसकी गलती थी। अब सोचो मत। तुम अच्छे इंसान हो। इसे बचा लो।"

सुबोध के दिल पर करुणा का असर हुआ। वह फिर आगे बढ़ा। इस बार लालच ने अपना दांव चला। 

"क्यों बेवकूफ की तरह हरकत कर रहे हो। सोचो अगर यह चला गया तो तुम्हारा कितना लाभ है। इसकी पत्नी बच्चे को जन्म देते हुए मर गई थी। बच्चा भी बच नहीं पाया। दुनिया में इसका कोई उत्तराधिकारी नहीं है। इसने अपना सब कुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। मरने दो इसे। चुपचाप चले जाओ। कोई नहीं जानता है कि इसने तुमसे सहायता मांगी है।"

लालच सुबोध पर हावी हो गया। वह जाने लगा। लालच ने जो कहा था सच था। उसके साथी का सबकुछ उसे ही मिलने वाला था। वह तेज़ कदमों से लौटने लगा। तभी अंतस से आवाज़ आई,

"तुम लालच की बात सुन रहे हो। तुम्हारे साथी ने तुम्हारी कितनी मदद की भूल गए। सिर्फ अपना स्वार्थ देख रहे हो।"

सुबोध के कदम फिर ठिठक गए। उसे वह सब याद आया जो उसके साथी ने किया था। उसने तो अपनी ज़िंदगी को मिट्टी में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अपनी बेवकूफी और नालयकी से जो मुसीबतें मोल ली थीं उनसे बचने के लिए खुद को नशे के दलदल में फेंक दिया था। उसके साथी को जब पता चला कि उसने अपने आप को बर्बाद करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी है तो वह उसकी मदद के लिए सामने आया था। अपनी परवाह किए बिना उसे उस दलदल से बाहर लेकर आया था। उसके मन में पछतावा हुआ। अपने फरिश्ते जैसे साथी के लिए मन में दया उत्पन्न हुई। वह मुड़कर उसकी तरफ बढ़ने लगा।

उसके लिए चलना कठिन हो रहा था। उसके भीतर की ईर्ष्या, लालच और स्वार्थ एक में समा गए थे। अब बुराई का दैत्य उसे अच्छाई करने से रोक रहा था। वह बुराई के कब्ज़े‌ में जा रहा था। तभी उसके अंदर की अच्छी भावनाएं भी एककार हो गईं। बुराई और अच्छाई की लड़ाई होने लगी। बुराई पूरा ज़ोर लगा रही थी। पर अच्छाई भी डिग नहीं रही थी। अच्छाई ने अंततः बुराई के दैत्य को सींगों से पकड़ कर चित कर दिया।

सुबोध भागकर अपने दोस्त के पास आया। कार के अंदर पानी की बोतल तलाश की। अपने साथी को पानी पिलाया। उससे बोला,

"हौसला रखना। मैं कुछ ही देर में मदद लेकर आता हूँ।"

वह मदद लेने के लिए सड़क पर आया। जाती हुई एक गाड़ी को रोककर मदद मांगी। अपने साथी को अस्पताल ले गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational