खत
खत
नीलेश सोकर उठा तो उसकी पत्नी सानिया ने उसके गाल पर एक चुंबन देकर कहा,
"मुबारक हो मंत्री जी। आज आप इस राज्य के गृह मंत्री के रूप में शपथ लेने वाले हैं।"
नीलेश ने मुस्कुरा कर कहा,
"सानिया मेरी सफलता में तुम्हारा भी बहुत बड़ा हाथ है। तुम्हें भी बहुत मुबारक हो।"
"ओके अब उठिए और तैयार हो जाइए। अम्मा ने कहा था कि मंदिर ज़रूर जाना। मैंने आपके सारे कपड़े निकाल दिए हैं। जाने के, शपथ ग्रहण समारोह में पहनने के। पहले कुर्ता धोती उसके बाद कुर्ता पजामा और नेहरू जैकेट।"
सानिया को जबसे पता चला था कि नीलेश गृह मंत्री बनेगा वह बहुत खुश थी। सानिया उसकी पत्नी होने के साथ साथ उसकी मददगार और सलाहकार थी। उसने आज शाम पार्टी की भी व्यवस्था की थी। बाहर जाते हुए उसने कहा,
"अब उठकर तैयार हो जाइए।"
नीलेश की ज़िंदगी का आज बहुत महत्वपूर्ण दिन था। इस दिन के लिए उसने मेहनत ही नहीं तपस्या की थी। पार्टी के एक कार्यकर्ता के रूप में खूब भागदौड़ की थी। कई बार नाउम्मीदियों के दौर से गुज़रा था। आज उसकी तपस्या रंग लाई थी। वह बिस्तर से नीचे उतरा। अपने कमरे के पर्दे खोले। बाहर खिली चमकदार धूप ने उसे और भी उत्साह से भर दिया। वह तैयार होने चला गया।
जब वह सानिया के साथ मंदिर जाने के लिए निकल रहा था तब पता चला कि कॉलेज की कुछ लड़कियां उससे मिलने आई हैं। वह उनसे मिलने के लिए तैयार हो गया। सानिया को कुछ देर इंतज़ार करने के लिए कहकर वह उस कमरे में चला गया जहाँ अक्सर वह लोगों से मिलता था। जब वह कमरे में पहुँचा तो सारी लड़कियां उठकर खड़ी हो गईं। सबने उसे बधाई दी। उनमें से एक ने सबकी तरफ से एक बुके उपहार दिया। सब लड़कियां बैठ गईं। सभी नीलेश की तारीफ में कुछ ना कुछ बोल रही थीं।
नीलेश की नज़र उस ग्रुप की एक लड़की पर ठहर गई थी। वह एकदम चुप बैठी थी। पर उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह आँखें उसे किसी की याद दिला रही थीं। कुछ देर में सभी लड़कियां चली गईं। नीलेश सानिया के साथ मंदिर चला गया। पर रास्ते भर एक चेहरा उसकी यादों के झारोखों से झांककर उसे अपनी तरफ खींचता रहा।
दिन भर व्यस्तता रही। उसके बाद वह शपथ ग्रहण समारोह में चला गया। वहाँ उसने राज्य के गृह मंत्री के तौर पर शपथ ली। ढेर सारी बधाइयां मिलीं। मीडिया ने नए गृह मंत्री से कुछ सवाल पूछे। उसके बाद जश्न मनाया गया। इतना सबकुछ हो गया पर वह चेहरा उसके दिमाग से नहीं जा रहा था।
सोने के लिए जाते जाते बहुत रात हो गई थी। सानिया दिनभर सबकुछ मैनेज करने के बाद थककर सो गई थी। नीलेश बिस्तर पर लेटा छत को ताक रहा था। अपनी मेहनत का फल मिलने की उसकी खुशी एक पछतावे में बदल गई थी। वह धीरे से उठा। अपनी स्टडी में गया। दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। किताबों के पीछे एक गुप्त लॉकर था। उसमें लकड़ी का छोटा सा डब्बा था। नीलेश ने कभी उसे सानिया के सामने नहीं खोला था। उसने डब्बे को खोला। उसमें एक खत था। वह बैठकर खत पढ़ने लगा।
'तुम्हें जब यह खत मिलेगा तो मैं इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी हूँगी। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है। मेरे प्यार ने तो हमेशा यही चाहा था कि तुम वह सब पा लो जो तुम पाना चाहते हो। शायद मेरा साथ तुम्हें उस जगह ना ले जा पाता जहाँ सानिया के पिता के आशीर्वाद से पहुँच सकते हो। सानिया से शादी मुबारक हो। तुम खुश रहो दिल से अभी भी यही दुआ निकल रही है। पर तुम्हारे बिना जी पाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए सोचा कि जिस जगह हमने इतना वक्त बिताया उसी पहाड़ी से कूदकर अपनी जान दे दूँ।
अलविदा......
नीलेश ने वह सब पा लिया था जो वह चाहता था। लेकिन अचानक सबकुछ बेमानी लगने लगा था।