विरहिन
विरहिन


संगीता हवेली के झरोखे से उस पथ को निहार रही थी जिस पर चलकर उसका प्रियतम दूर देश चला गया था। वह उसके पिता के कारोबार में उनकी सहायता करता था। उसके पिता ने उसे सुदूर देश में व्यापार के सिलसिले में भेज दिया था। उसे गए हुए कई महीने बीत गए थे। लेकिन उसका कोई समाचार नहीं आया था। सुनने में आया था कि जिस देश वह जा रहा था वहाँ का रास्ता बहुत दुर्गम था। वहाँ लुटेरों का भी खतरा था। अतः सबने मान लिया था कि वह किसी हादसे का शिकार हो गया है। लेकिन संगीता का मन नहीं मानता था। इसलिए वह दिन में कई बार इस झरोखे पर आकर खड़ी हो जाती थी। पथ को निहारते हुए उम्मीद करती थी कि शायद उसका प्रियतम आता हुआ दिख जाए।
मोहन एक अनाथ लड़का था जिसे संगीता के पिता घर ले आए थे। यह सोचकर उसका पालन पोषण किया था कि कोई पुत्र नहीं है। अतः बड़ा होने पर व्यापार में सहायता करेगा। वह कुशाग्र बुद्धि का था। अतः कम उम्र में ही बहुत कुछ सीख गया था। युवा होने पर संगीता के पिता उस पर भरोसा करने लगे थे। अक्सर व्यापार के काम से उसे इधर उधर भेजते रहते थे।
संगीता और मोहन साथ खेलकर ही बड़े हुए थे। दोनों जब किशोरावस्था में पहुँचे तो उनकी दोस्ती ने धीरे धीरे प्यार का रंग लेना शुरू कर दिया। युवा होने पर दोनों को प्रेम का एहसास हो गया। जैसे प्रेमी आँखों ही आँखों में बात कर लेते हैं वैसे ही दूसरे भी उनकी हरकतों को देखकर जान जाते हैं कि वह प्रेम में हैं। उनके प्रेम की खबर भी संगीता के माता पिता को लग गई।
मोहन की परवरिश उन लोगों ने अपनी सहायता के लिए की थी। परंतु उसे अपनी पुत्री देना उन्हें मंज़ूर नहीं था। उन्होंने संगीता के विवाह की कोशिशें शुरू कर दीं। पर संगीता अड़ गई कि वह मोहन के अतिरिक्त किसी से विवाह नहीं करेगी। अपनी इकलौती बेटी की ज़िद के आगे उसके माता पिता झुक गए।
संगीता के पिता ने कहा कि वह शादी के लिए तैयार हैं परंतु उससे पहले मोहन को सुदूर देश जाकर अपनी योग्यता साबित करनी होगी। वहाँ से लाभ कमाकर लौटना होगा। संगीता इस बात पर तैयार नहीं थी। पर मोहन ने हाँ कर दिया था। शर्त के हिसाब से वह लाभ कमाने दूर देश चला गया था। तब से उसकी कोई खबर नहीं थी।
संगीता हवेली के झरोखे पर खड़ी सूनी आँखों से रास्ते को ताक रही थी। उसकी माँ उसकी यह दशा देखकर रो रही थी। उनका दिल अपनी बेटी को दुखी देखकर फटा जा रहा था। वह अपनी बेटी के पास आईं। उन्होंने कहा,
"कब तक ऐसे ही राह देखोगी। वह अब नहीं आएगा। तुम अब किसी और के साथ विवाह कर लो।"
"माता जी भले ही मोहन लौटकर ना आए। मैं किसी और से विवाह नहीं करूँगी। किंतु मेरा दिल कहता है कि मोहन आएगा।"
यह कहकर संगीता अपने कमरे में चली गई।
संगीता के पिता व्यापार के सिलसिले में बाहर गए थे। वह अपनी पत्नी से कह गए थे कि संगीता को समझा कर शादी के लिए तैयार करें। उन्होंने एक बहुत अच्छा लड़का देखा है। संगीता का दुख देखकर उसकी माँ कुछ कह नहीं पा रही थीं। उन्होंने कोशिश की तो संगीता ने साफ मना कर दिया। पर वह जानती थीं कि मोहन नहीं आएगा। एक बात का बोझ उनके दिल पर था। वह उसके साथ जी नहीं पा रही थीं। एक निश्चय के साथ वह संगीता के पास गईं।
संगीता अपनी माँ के सामने बैठी थी। उसकी माँ ने हिम्मत जुटा कर कहा,
"यह तय है कि मोहन नहीं आएगा। तुम उसके लिए अपना जीवन बर्बाद मत करो।"
"माता जी मुझे पूरा विश्वास है कि वह आएगा।"
उसकी माँ ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"तुम जानती हो ना कि तुम्हारे पिता एक कुशल व्यापारी हैं। हर सौदा अपने लाभ का करते हैं। मोहन से एक ऐसा ही सौदा कर लिया था उन्होंने। तुम्हारे प्रेम का मनचाहा मूल्य लेकर वह चला गया। अब नहीं आएगा।"
कुछ क्षणों तक संगीता अविश्वास के साथ अपनी माँ को देखती रही। फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
संगीता पागल सी हो गई थी। एक दिन हवेली से निकल गई। उसके बाद कभी किसी ने उसे नहीं देखा।