स्वभाव
स्वभाव


“ये क्या अभी तक ऑफिस के लिए तैयार नहीं हुए? मैंने तो तुम्हारा नाश्ता भी बना दिया।’’ पति को एक फाइल पलटते देख कर सुधा ने पूछा।
‘हां, आज ऑफिस नहीं जा रहा हूं,’ रमेश ने फाइलों में नजर गड़ाए ही पूछा।
‘ क्यों, क्या हो गया अचानक और नहीं जाना था तो कम से कम मुझे बता तो देते, मैं रिलैक्स रहती, बेकार में सुबह से परेशान हुई,’ सुधा गुस्सा करने लगी।
‘आफिस नहीं जा रहा हूं पर बाहर ही जा रहा हूं। दस बजे तक निकल जाउंगा। एक नंबर ढूंढ रहा हूं।’, उनकी नजर अब भी फाइल में ही थी।
‘कहां जा रहे हैं, किसका नंबर चाहिए,कुछ बताइए तो मैं शायद मदद कर सकूं,’ सुधा अब रमेश के करीब आ गई।
‘अरे वर्मा जी की लड़की का एडमिशन कराना है। उस कॉलेज में एक व्यक्तित था परिचित। अब नाम नंबर कुछ याद नहीं आ रहा, वही ढूंढ रहा हूं।’ रमेश ने कहा।
‘वर्मा जी के लिए छुट्टी मार दी ऑफिस की ! भूल गए क्या आज तक कभी मदद नहीं की है उनलोगों ने हमारी? वे तो खाली बैठे रहते हैं उस समय भी किसी के बारे में पूछ लो बताते नहीं, कभी रूपए पैसों की बात हो तो उनके पास होते नहीं। अरे याद नहीं क्या तुम्हें- उस बार तुम बीमार हुए थे अचानक और मैं उन्हें हॉस्पिटल तक साथ चलने का अनुरोध करने गई थी। संडे का दिन था, तब भी नहीं गए। और तुम उनके लिए छुट्टी लेकर बैठे हो, कहीं जाने की जरूरत नहीं है, या तो ऑफिस जाओ या घर मे बैठो बस।’ सुधा ने फैसला सुना दिया।
‘वर्मा जी अपने स्वभाव के अनुसार व्यवहार करते हैं और हम हमारे, अब उन्हें देखकर हम अपना स्वभाव थोड़े न बदल लेंगे। मुझे अपने स्वभाव में तो रहने दो,’ कहकर रमेश ने आलमारी बंद की शायद नंबर मिल गया था।