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Shelley Khatri

Drama

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Shelley Khatri

Drama

बंद पलक में प्यार

बंद पलक में प्यार

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वे लव बर्ड थे; प्रेम के पंक्षी। सारे उन्हें इसी नाम से बुलाते थे। जैसे ही दोनों आसपास होते, पांच सात जोड़ी आंखें इनका पीछा करती; ये आंखें उन सब बातों एहसासों और क्रियाओं पर अपनी पैनी निगाह रखतीं जो ये लोग करते। वे तो ये भी देख डालती जो सबकुछ ना तो ये करते और ना ही इनकी कल्पना में होता। फिर इनके बीच के एहसास,बातें और इनके सपने सपन दत्त नेशनल स्टडीज फार वोकेशनल एजुकेशन के कैंपस में आम होते। कॉलेज का यह ब्रांच पटना जैसे विकासशील शहर में था। पूरा कैंपस इन दोनों लव वर्ड अमृता और शांत के प्रेम के एहसास से भींगा रहता। सब जानते थे, इनकी प्रेम कथा। कॉलेज में रोज ही फैकल्टी और अन्य स्टाफ के बीच इनके प्रेम संबंध की बातें होती। स्टूडेंट भी एक दूसरे से इनके बारे में कहते पाए जाते। इस एहसास के बारे में जानते तो अमृता और शांत भी थे; उन्होंने कभी एक दूसरे से कुछ नहीं कहा था, जैसे कहने की आवश्यकता ही क्या। यह तो शाशवत सच था। कोई कहता थोड़े ही है कि देखो सूरज रोज निकलता है। सूर्य के साथ प्रकाश होता है। यह ऐसा सच है जिसे सब जानते हैं, महसूस करते हैं। अमृता और शांत भी जानते थे, महसूस भी करते थे पर कभी कुछ कहते नहीं थे। और एक दूसरे के आसपास बने रहने की कोशिश किया करते। आपस में मिलने पर उनके चेहरे नहीं मुस्कुराते बल्कि आंखों में मुस्कान खिलता था।

अमृता कॉलेज की एचआर थी। नेशनल चेन होने के कारण कॉलेज में कॉरपोरेट कल्चर था। वह इस चेन में उपस्थित कुल दस एचआर में से एक थी और अपने ब्रांच में इस पद पर इकलौती स्टाफ। अपने मिलनसार स्वभाव, सबके दुख सुख में शरीक होने की आदत, काम के प्रति समर्पण और सबसे अधिक अपनी फेनिल हंसी के कारण अमृता पूरे कैंपस की रौनक थी। शांत उपमन्यु का तो सिर्फ नाम ही शांत था। अपने विचारों, घर के झगड़ां के कारण भीतर से वह काफी अधिक अशांत था। हां बाहर से अत्यंत सौम्य, और हंसोड़ व्यक्ति था। उसके चेहरे पर भूले से भी भीतर की अशांति के चिह्न नजर नहीं आते। हां, अमृता के साथ होता तो अपने अशांत जीवन के परत दर परत खोलता, उसे उसके सामने रखता, कुछ बताता कुछ सुनता। पर सिर्फ अमृता के सामने, बाकी समय तो वह शेर था, लोग उसके भाग्य पर ईष्या करें, ऐसा तो उसका व्यक्तित्व था। वह फैकल्टी मेंबर होने के साथ साथ, वाइस प्रिंसिपल भी था। पढ़ाने के साथ साथ मैनेजमेंट, एचआर और अपने डिपार्टमेंट के बीच पुल का काम करता था। आए दिन अमृता को शांत के साथ बैठकर ऑफिस के काम निपटाने पड़ते थे। इसी दौरान दोनों के काम और दिल की ट्यूनिंग जम गई। इस ट्यूनिंग का असर कॉलेज में दिखना ही था। कॉलेज में ऐसे कई लोग थे जो इन लव बर्ड से सच्चा स्नेह करते थे और अक्सर इनके एक होने की कामना भी। बहुतेरे इनकी ट्यूनिग से जला करते।

काम के सिलसिले में स्टाफ रूम में या मैनेजमेंट ऐरिया में दोनों कई बार कालेज के बाद दो-तीन घंटे बैठते। कभी कभी देर हो जाती तो साथ साथ बाहर निकल अशोक राजपथ में पैदल चलते हुए बोनांजा में जाकर काफी पीते। तब अपने अपने घर जाते। एक दिन शांत ने उसे लंच के लिए इन्वाइट किया। दोनों साथ साथ शोभराज पहुंचे।

रेस्टोरेंट देखकर, अमृता बोली यहां तो सेल्फ सर्विस है, बैठने की या प्राइवेसी की कोई जगह नहीं है फिर यह यंगस्टर में इतना फेमश क्यों है। अरे यार, सबसे पहले तो यह काफी पुराना है। उस जमाने में पीएमसीएच के छात्रों के लिए नजदीक में ऐसा कोई रेस्टोरेंट नहीं था। खाने का स्वाद बढ़िया और अपने बजट में भी इसलिए लोग इसका नाम जपते है। आज देखो, उसी नाम के सहारे हम भी यहां तक आ ही गए। ऐसी ही एक और अच्छी जगह है, काफी प्रसिद्ध पर खाने की जगह नहीं है, कहता हुआ शांत हंसने लगा।

कौन सी जगह, अमृता बोली।

दरभंगा हाउस का घाट।

ये कैसी जगह है, पटना में तो ऐसा घाट नहीं है।

है, पटना कॉलेज के पीछे। बहुत मनोरम घाट है। इतना सुंदर, शांत और साफ कि तुम बस देखती रह जाओगी। किनारे सुंदर सा मंदिर।

ठीक है, कभी चलकर देखेंगे।

वहां प्रेमी जोड़े जाते हैं।

अन्य लोगों के जाने की मनाही तो नहीं होगी ना।

समय ने पंख फैलाकर उसे छह वर्ष लंबा कर दिया। अमृता के घर वालों ने शादी के लिए कहना शुरू किया। जब भी बात निकलती वह चुप रह जाती। शांत और वे साथ साथ मिलते बैठते, सुख दुख की बातें करते, पर शांत ने अपनी ओर से पहल नहीं की। शांत की ओर से कोई जवाब मिले बिना वह घरवालों को जवाब देती भी तो कैसे। उसकी खामोशी से नाराज होकर मां ने कहा, दो महीने का समय है तेरे पास। सोच विचार कर लो, यदि कोई पसंद हो तो बता दो। उसके बाद हमलोग तुम्हारे लिए लड़का देखना शुरू कर देंगे।

अमृता परेशान हो गई। शांत से कैसे बात करे। आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया। उस दिन ना तो शांत टिफिन लेकर आया था ना ही अमृता। शांत ने कहा चलो बाहर चलकर कहीं खा आते है। दोनों ममता पहुंच गए। बातों बातों में शांत ने कहा देख रहा हूं कुछ परेशान सी दिखती हो। कोई बताने लायक बात हो तो बता दो।

यार घरवाले परेशान हो रहे हैं। मैं क्या जवाब दूं। अमृता परेशान सी बोली।

अरे, ऐसा थोडे़ ही होता है। उनसे बोलो, पहले लड़का देखें। तब तो तुम उसे देखोगी और उसके बारे में राय दोगी। ऐसे कैसे कुछ कहोगी। शांत ने कुछ सोचते हुए से जवाब दिया।

अमृता फक् रह गई। शांत से ऐसी बातों की तो कतई उम्मीद नहीं थी। क्या वे सारे एहसास झूठे थे, क्या वह कुछ गलत सोच रही थी। लेकिन वह अकेली गलत कहां थी, पूरा कैंपस जिसमें फैकल्टी, स्टूडेंट्स सब शामिल थे, ऐसा ही तो महसूस कर रहे थे। अब शांत के बिना वह क्या करेगी। उसकी आंख छलक आई।

अरे, रो क्यों रही हो, पगली। शांत ने दोनों हाथों से उसके आंसू पोछे और उसे सीने से लगा लिया। सब ठीक हो जाएगा, उसने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा।

अमृता फफक फफक कर रो पड़ी। शांत ने उसे चुप कराया।

थोड़ी देर के बाद आंसू पोछकर वह निकल भागी। घर आकर वह खूब रोई। धीरे धीरे आठ दिन निकल गए। पूरा दिन उसका रोते बितता। उसकी समझ में नहीं आया शांत ने ऐसा क्यों किया।

 उसे लगा आफिस जाना जरूरी है। सोमवार को वह तैयार होकर नियत समय पर आफिस पहुंची। देखा, दुनिया पूर्ववत चल रही है। बस उसके अंदर ही सबकुछ बदला हुआ है। शांत को देखकर उसकी रूलाई उमर पड़ी। लंच आवर में प्रिया, रेणुका, रंजना, मालती सभी उसके इर्द गिर्द बैठ गए। सब यही जानना चाह रहे थे कि क्या हुआ, वह परेशान है और नौ दिन की छुटटी के बाद लौटी है।

पता नहीं कैसे अमृता ने मम्मी की बात और उस दिन शांत से हुई पूरी बात बता दी।

अमृता उसने नहीं कहा तो तुम खुद ही पूछ लेती। झिझक क्यों गई यार। ऐसा करना तो सचमुच गलत है। आज छुट्टी तक किसी न किसी तरह तुम शांत से बात करो, अगर वह नहीं मानता है तो हम भी बात करेंगे। रेणुका ने कहा।

अमृता को लगा ठीक ही तो है एक बार मैं बात कर ही लेती हूं। कैसे कहूंगी, क्या कहूंगी सोचने में ही उसका दिन निकला।

अमृता को आफिस में देखकर शांत की जान में जान आई। उस दिन की घटना के बाद अमृता का छुट्टी पर जाना उसे अखर रहा था। वह जानता तो था अमृता के मन में क्या है। पर वह कैसे कुछ कहे। घर की परिस्थितियां कहां सुधर रहीं थीं। मां बाबूजी शुरू से ही अंतरजातीय विवाह के सख्त खिलाफ थे। वह बातों को घुमा फिरा कर मां से बात करके देख चुका था। रोज ही उसके सामने अपने अंतरजातीय विवाह करने की बात कहता और मां गुस्से में शाप देने लगती। मैं जहर खा लूंगी, इसी दिन के लिए बड़ा किया था। मैं क्यों जहर खाउं उसे खिला दूंगी लाकर तो दिखा, कोई ऐसी वैसी छोरी। शांत समझ जाता कितनी मुश्किल है उसके रास्ते में। पिछले छह महीने से बड़ी बुआ की लड़की सोनम उसके ही घर में रह रही थी। फुफा जी के गुजरने के बाद बुआ के परिवार को हर महीने आर्थिक सहायता देनी होती थी। इसी साल सोनम का विवाह भी उन्हें ही कराना था। छोटे भाई की जॉब छूट गई थी। घर की इतनी समस्याओं के बीच वह अमृता को कैसे हां कहे और कैसे लाए। वह तो उसकी खुशी के लिए अपने दिल पर पत्थर रख लेना चाहता था। पर अमृता जैसे उससे रूठ गई थी। आज अमृता को आफिस में देखकर उसे अच्छा लगा। लेकिन दिन भर उसके गुमशुम चेहरे को देखकर उसे लगा, कहीं कुछ गलत तो नहीं होने वाला है। वह बैठा सोच ही रहा था कि अमृता आई और नीचे नजर झुका कर बोली, तुम हमारे बारे में कुछ कह सकते हो।

एक पल तो वह मौन रह गया। दूसरे ही पल बोला, हमारे बारे में? हम अच्छे दोस्त हैं, रहेंगे, इससे ज्यादा ना तो कुछ है ना ही हो सकता है। कहकर वह सिहर गया।

सोच लो, सोच कर बोलो, इसके बाद मैं तुमसे कुछ नहीं कहूंगी, उसने अमृता को कहते सुना।

इसमें सोचना क्या है, मैंने कभी कुछ गलत कहा है जो अब कहूंगा। शांत धीरे से बोला।

अमृता कमरे से बाहर निकल गई। रोते रोते उसका गला बिंध गया। अरे अमृता ऐसे कैसे रो रही हो, शांत से बात हुई क्या, रंजना ने उसे रोक लिया।

बड़ी मुश्किल से आंसूओं के बीच उसने रंजना को पूरी बात बताई।

ठीक है आज तो घर चलो। कुछ दिन तुम उससे बात मत करना। उसे खुद ही बुरा लगेगा। तब वह पहल करेगा। अगर नहीं किया तो हम हैं ना तुम्हारे दोस्त उसे सबक सिखा देंगे; उसने तुम्हें रूलाया है, हमारी सहेली को, उसे फल मिलेगा ही, रंजना बोली।

घर आकर अमृता ने रेजीगनेशन लेटर टाइप किया और मेल कर दिया। नहीं, अब वह शांत से कोई संपर्क नहीं रखेगी। वह तो उसका चेहरा भी नहीं देखना चाहती है। आफिस में रहते हुए यह संभव नहीं है। इसलिए बेहतर है। वह आफिस ही छोड़ दे। दो चार महीने बाद और कहीं एप्लाई कर लेगी। उसने अपने मन को समझाया और सो गई। इन घटनाओं की चर्चा उसने घर में किसी से नहीं की।

दूसरे ही दिन रंजना और रेणुका की वजह से सारे कैंपस ने अमृता और शांत के बीच की घटना जान ली। कैंपस में दो तीन गुट बन गए। सबकी अलग अलग राय। पर अधिकतर लोग इस पक्ष में थे कि शांत ने गलत किया है, उसे गलती सुधारनी चाहिए। हालांकि किसी ने शांत से बात करने की हिम्मत नहीं की। पर्सनल बातें वह आफिस में कभी करता ही नहीं था। दो चार दिन में रेजिगनेंशन की खबर भी सबको मिल गई। रंजना बोली यह तो अमृता ने गलत कदम उठा लिया। अरे, शांत को कॉलेज छोड़ देना चाहिए, छह साल के रिश्ते को वह संभालने को तैयार नहीं हो रहा है।

दिन बीतते रहे। घर में बैठी बैठी अमृता बोर हो गई। इन दिनों किसी दोस्त का कॉल भी आता तो एक ही विषय में बात होती , शांत को अब किसी निर्णय पर पहुंचना ही होगा। कुछ सोचो अमृता। कई उसे वापस आने की बात कहते। इन बातों को सोचते सोचते अमृता को शांत की याद आने लगी। तभी जयंत का कॉल आया। अनमनी सी उस ने कॉल उठा ली।

 अमृता, हमलोग शिशिर के घर पर मिल रहे हैं। आधे घंटे के बाद, मार्केटिंग और फैकल्टी मेंबर्स भी होंगे। तुम आ जाओ, हमलोग शांत से बातचीत और उसे समझाने के लिए प्लानिंग करेंगे। अगर वह ना माना तो हम सभी उससे हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ देंगे। तुम परेशान मत होओ, और आ जाओ। वह एक ही सांस में पूरी बात बोल गया।

अरे, नहीं। मेरे सामने तो उसका नाम मत लो। मैं उसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहती। मेरा कहीं जाने का भी मन नहीं हो रहा है। मैं घर से निकल कहां रही हूं, तुमलोग देख ही रहे हो। मैं नहीं आउंगी। अमृता ने जवाब दिया।

 अमृता, सबको अच्छा नहीं लगेगा। हम तुम्हारे लिए ही तो बैठ रहे हैं, फिर हम जो निर्णय लेंगे उसके बारे में तुम्हें पता होना चाहिए और तुम्हारी सहमति भी होनी चाहिए ना। इसलिए तुम आ जाओ। जयंत ने आग्रह किया।

नहीं यार, प्लीज, मेरी भावना समझो, मैं सिर्फ अकेली रहना चाहती हूं। तुमलोगों को जो अच्छा लगे वह डिसाइड करो, मुझे उससे ऑब्जेक्शन नहीं होगा। मुझे तो शांत के नाम से ही गुस्सा आ जाता है। तुमलोग डिसाइड करके मुझे बता देना। अमृता ने कहा। देखो हमलोग पांच बजे मिल रहे हैं, तुम कोशिश करो, मन हो तो आ जाओ। वैसे तुम्हें आना चाहिए, सबसे मिलकर सुकून लगेगा। जो भी डिसिजन आएगा मैं तुम्हें फोन करके बता दूंगा। जयंत ने कहा और फोन काट दिया।

कुर्सी पर बैठते ही उसे फिर से शांत की यादों ने घेर लिया। बार बार उसका चेहरा आंखों के सामने आने लगा। बेतरह आती याद से बचने के लिए उसने किताब उठाई मन नहीं रमा तो गाने सुनने शुरू किए। पर किसी चीज ने उसे सुकून नहीं दी। कभी उसे शांत पर गुस्सा आता, कभी लगता वह मिले तो वह बात ही नहीं करेगी। 21 दिन हुए, उसने कॉल नहीं किया। आखिर शांत उसके बिना इतने दिन कैसे रह सका, उसे याद नहीं आयी। कभी उसे लगता काश वह दरवाजा खोलती तो सामने शांत दिखता या कि शांत सुबह आता और कहता आज आफिस मेरी ही गाड़ी से चलो। सोचते सोचते वह अन्मयस्क हो चली। दिल में सिर्फ शांत का ख्याल था। उसे एक झलक देखने, उसकी आवाज सुनने के लिए अमृता बेचेन हो गई। उसने कपड़े बदले और दरभंगा हाउस के घाट के लिए निकल गई। शांत के बताए रास्ते से वह घाट तक पहुंची। घाट किनारे बने मंदिर में दर्शन किए। सचमुच जैसा शांत ने कहा था, घाट वैसा ही मनोरम था। पूरी सीढ़ियां साफ थीं और नदी शांत, उज्जवल। वह तट पर आ गई। सीढ़ियों पर बैठते हुए उसकी नजर बगल में बैठे व्यक्ति पर गई तो चौंक गईं। शांत चुपचाप बैठा था। दोनों ने एक दूसरे को देखा, मुस्कुराए। दो मिनट के अंदर अमृता ने अपने आप को इस प्रकार बैठे पाया कि शांत और उसके बीच से हवा तक नहीं गुजर सकती। पहलु में बैठा शांत पूछ रहा था, कैसी हो? यहां कैसे आई? चिपकी सी बैठी अमृता जवाब देती रही। जैसे दोनों ही लड़ने की नहीं मिलने की कामना से बेचैन हो रहे हों, जगह और समय तय करके यहां मिले हों और पास आकर पूरे जग का सुकून पाया हो।

उधर पांच बजते ही शिशिर के घर पूरा कैंपस उमड़ आया। शांत और अमृता की बातें होने लगी। उनसे स्नेह रखने वाले लोगों ने दोनों के पक्ष में दलीलें दी, कहा, दोनों का प्रेम सच्चा है। शांत को यूं पीछे नहीं भागना चाहिए। यार शांत की कोई घर की समस्या है। यार वह पहले उसे सुलझाना चाहता होगा। पिछले दिनों उसकी मम्मी की तबियत भी तो खराब थी, राजेश ने कहा।

हां, घर तो सिर्फ शांत का है, अमृता के पास घर की कोई जिम्मेवारी नहीं है क्या, प्रिया ने पलटवार करते हुए कहा। भई, शांत ऐसा करेगा तो अमृता अपने घर में उसके बारे में क्या बताएगी, इसके बारे में भी तो सोचो, बेचारी कितने कठिन दौर से गुजर रही है।

अरे जयंत, हमसे गलती हो गई, शांत को भी बुला लेना चाहिए था, नहीं। शिशिर ने कहा।

क्या बुलाते। पहले तो वह आता नहीं आने पर भी खुलकर बात नहीं करता। हमें तो ट्रिक ढूंढ़नी है कि उसके दिल में जो भी चीजें हैं, वह कैसे निकलवाएं। जयंत ने कहा।

सुनों, मैं पुरुषों के बारे में जानता हूं, जलन उनमें कूट कूट कर भरा होता है। उससे कह देते हैं, अमृता को किसी से प्यार हो गया है। मयंक ने ज्ञान बघारा।

वह काफी तेज है। तुरंत कह देगा, अमृता ऐसी नहीं है, मैं खूब जानती हूं। प्रिया ने कहा।

तुम लोग ठीक ट्रैक पर जा रहे हो, बस थोड़ा स्पीड बढ़ाओ, रंजना बोली; तो सबके चेहरे उसकी ओर घूम गए। मतलब!एक साथ कई स्वर निकले।

मतलब ऐसे कहने से शांत विश्वास नहीं करेगा। पर अमृता अगर सचमुच किसी से प्रेम का नाटक करे तो वह जलकर राख हो जाएगा। रंजना ने पत्ते खोले।

कैसे संभव होगा, अमृता ने तो रेजिगनेशन दिया हुआ है। वह किसी को मजाक में भी ऐसी दृष्टि से नहीं देखेगी। प्रिया ने चिंतित होते हुए कहा।

अब करना तो यही होगा। अमृता पर है वह कैसे सब चीजें हैंडल करती है। उसे यह नाटक भी करना चाहिए और वापस ज्वाइन भी। उसकी एप्लीकेशन उपर नहीं भेजी गई है।

मतलब सबकुछ उसी पर है, ठीक है उससे बात कौन करेगा, तय कर लो। तब तक हम टी ब्रेक लेते हैं, मैं जरा चाय नाश्ता लाउं। कहकर, शिशिर और प्रिया दोनों घर के अंदर गए।

दरभंगा हाउस वाले घाट की छटा अलग ही थी। सूर्य डूबने लगा था। उसकी सारी लाली पानी में उतर आई थी। गंगा का पानी हिलोर मार कर डूबते सूरज के चरण पखार रहा था। घाट पर बैठे प्रेमी जोड़े खिसकने लगे थे। नाव वाले अब भी टिके थे। वोटिंग करोगी, शांत के इतना पूछते ही, अमृता सामने वाले नाव में चलकर बैठ गई। दोनों ने चुपचाप बैठे बैठे एक चक्कर पूरा किया। जब घाट पास आया तो अमृता को याद आया उसे तो शांत से सारी बातें पूछ कर क्लियर कर लेनी चाहिए। अगर सचमुच हमारे रिश्ते में कुछ नहीं बचा तो उसे हमेशा के लिए मेरे जीवन से दूर जाना होगा। फिर मैं कभी उसका चेहरा, उसकी परछाई भी नहीं देखना चाहूंगी।

शांत हमारे बीच कुछ बात हो रही थी, मुझे उस बारे में बात करनी है। उसने बात शुरु करते हुए कहा।

क्या बात हो रही थी। बोलो, जो भी बात है मैनें कह तो दिया। तुमसे कुछ छिपाया तो नहीं। क्या लगता है धोखा दिया है मैंने। अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो मैं इसका प्रायश्चित कर लूंगा। शांत ने बिल्कुल शांति से कहा।

अमृता की समझ में नहीं आया, क्या कहें। शांत के सामने जैसे उसकी बुद्धि, आवज सब गुल हो जाते हैं। शांत ने कभी प्रेम का इजहार नहीं किया, पर कभी इंकार भी तो नहीं किया। और हमारी भावनाएं तो एक दूसरे के मन की बात जानती हैं। और शांत की यह निकटता, अभी जो हम किनारे एक दूसरे के पहलु में बैठे थे, उनका क्या। क्या वे प्रेम नहीं हैं। शांत ने कभी यह भी तो नहीं कहा कि हम एक साथ नहीं होंगे। प्रेम क्या ऐसे ही रहेगा। मैं क्या कहूं कि घरवालों ने कह दिया है कोई पसंद हो तो एक महीने के अंदर बता दो, वर्ना हम लड़का ढूढना शुरू करने वाले हैं। अब भला मैं क्या शांत के सिवा किसी और के बारे में सोच सकती हूं। ये बातें शांत क्यों नहीं समझता है। इतना सोचने के बाद भी उससे कुछ नहीं कहा गया।

थोड़ा और चुप रहकर उसने कहा मुझे यही लगता है कि अब तक जो हमारे बीच था, वह आगे नहीं बढ़ सकता तो यह जानकर भी तुम यहां तक आए तो मुझे धोखा दिया है।

तुम गलत सोचती हो। तुम्हें चुपचाप फिर से ज्वाइन करना चाहिए। मुझे पता है कंपनी तुम्हारे हां के इंतजार में है।

चुप रहो, मैं अपनी बात कर रही हूं और तुम कॉलेज की बात लेकर बैठे हो। मेरे और अपने बारे में और कुछ कहना है, तो जल्दी कहो, मेरे पास समय नहीं है। अमृता बोली और नाव वाले को पैसे देते हुए वोट से उतर गई। पीछे पीछे शांत भी उतरा और घाट की सीढ़ियो पर दोनो पहले की तरह बैठ गए।

दोनों निःशब्द बैठे रहे। शांत ने बीच में पूछा भी अमृता क्या सोच रही हो, पर अमृता ने कुछ जवाब नहीं दिया, निश्चल बैठी रही। शांत ने उसके बालों में उंगलियां फिरानी शुरू की। अमृता ने कुछ नहीं कहा, हमेशा की तरह अपना सिर शांत के सीने से भी नहीं सटाया।

सिर सहलाते हुए शांत के मन में हलचन मच गई; बोला अमृता मजा आ गया। मुझे समझ में आया तुम कुढ़ मर्ज की तरह का व्यवहार क्यों करती हो। अरे बाबा तृम्हारा सिर तो एक आकार का नहीं है दोनों कोने उभरे हुए हैं और बीच का हिस्सा धसा है। मुझे तुम्हारे साथ हमदर्दी है। चलो इस बार रांची में केके सिन्हा से अप्वाइंटमेंट ले लेते हैं।

हां मेरा दिमाग खराब है, मैं पागल हूं, तुम बहुत अच्छे हो यही ना। पता है। तुम्हें मैंने कहा था क्या इस पागल से नाता जोड़ो। अमृता तुनक कर बोली।

हो, हो, बिगड़ क्यों रही हो, मैंने तुम्हें पागल तो नहीं कहा, ये तो मैं कह भी नहीं सकता। अब जिसका दिमाग खराब हो उसे क्या सच कहते हैं, शांत ने चिढ़ाते हुए कहा।

हा, वेरी फनी, मैं कम से कम अपनी सच्चाई तो जानती हूं। हाथ दो इधर और देखो मेरे सिर में सचमुच का गढ्ढा है। उसने शांत का हाथ पकड़ा और सिर के बीच स्थित छोटे से गढ्ढे से छुआ दिया।

ओह सचमुच, कैसे हुआ, शांत ने गंभीर होते हुए पूछा।

ये तो बचपन में की गई शैतानी की निशानी है। मैं इससे और इसके प्रभाव से पूरी तरह वाकिफ हूं। पर तुम्हें तो यह भी पता नहीं है कि तुम्हारे आधे बाल उड़े हुए हैं, पीछे की ओर कट का निशान है। अमृता हंसते हुए बोली।

ओहो, तो मैडम ने मेरा मुआयना कर रखा है।

दोनों फिर चुप हो गए। अमृता बहुत भूख लगी है, चलो कुछ खिला दो, मैंने सुबह से नहीं खाया। शांत ने कहा, तो अमृता बोली जाकर खा लो मुझे भूख नहीं लगी है।

मैं अकेला जाउं, शांत ने पूछा तो अमृता भी उठ खड़ी हुई। दोनों गली के रास्ते सड़क तक आए। राज होटल में बैठकर शांत ने दो मिनी मिल का आर्डर दिया। अमृता ने तुरंत कहा नहीं एक ही प्लेट लाओ। फिर शांत की ओर मुड़कर बोली, मैं नहीं खाउंगी।

थाली आ गई। शांत ने कहा चलो खा लो। कहा ना नहीं खाना है, तुम खाओ, अमृता ने गुस्से से कहा और मुंह फेर लिया। शांत ने निवाला बनाया और कहा उहूं, मुंह तो खोलो, अमृता ने मुंह खोल निवाला ले लिया। दोनों खाते रहे। शांत ईमानदारी से एक एक कौर दोनों के मुंह में डालता गया। बीच बीच में अमृता ने अचार को लेकर अपनी नापसंदगी और चटनी की पसंद के बारे में कहा तो शांत ने उसकी पसंद के अनुसार निवाला देना शुरू कर दिया। खाना खाकर दोनों वापस घाट की सीढ़ियों पर आ कर बैठ गए। शांत ने पहलू बदला और अमृता के चेहरे की ओर घूम कर अपनी नजरें उसके चेहरे पर गड़ा दी।

मेरा चेहरा मत देखो, अमृता ने गुस्से से कहा।

चेहरा तो देखने दो, इसमें तुम्हें क्या कष्ट हो रहा है। शांत ने हंसने की कोशिश की।

 खबरदार, आंखें निकाल कर हाथ में दे सकती हूं। तुमने अधिकार खो दिया है। अमृता पूर्ववतः गुस्से में थी।

शांत वापस नदी की ओर मुड़ गया। दोनों साथ साथ धारा देखते रहे। शांत सोच रहा था, इतना गुस्सा करेगी तो कैसे चलेगा। अभी मैं इसकी बात नहीं मान सकता। अमृता ने सोचा, शांत साथ नहीं रहेगा तो इस दुनिया का मतलब क्या होगा। तब क्या मुझे दो नावों के बीच चुपके जाकर नदी के अंदर नहीं समा जाना चाहिए। या फिर इस काम में देर ही क्यों। क्या अभी शांत को न कह दूं कि तुम जाओ, मैं नदी में समान चाहती हूं। पर नहीं वह विश्वास नहीं करेगा, सोचेगा मैं नाटक कर रही हूं। सामन्यतः नदी में समाने वाले कह कर थोड़े ही जाते हैं। इसी से वह मेरा विश्वास नहीं करेगा। कोई बात नहीं अब आगे कुछ नहीं। शांत पास रहेगा तो मैं उसके सम्मोहन में खिंचती रहूंगी। कड़ा निर्णय लेना ही होगा, सोचते सोचते वह अन्मयसक हुई और कहा, शांत तुम यहां से जाओ।

क्यों चलो, चलना चाहती हो तो चलते हैं, शांत ने स्थिर जवाब दिया।

क्यों नहीं समझ रहे तुम, कहा ना मेरी जिंदगी से चले जाओ। मुझे अकेला छोड़ दो। मैं मरुं या जिंदा रहूं मेरी बला से। मैं खाउं या भूखे मरु तुम्हें क्या। तुम बस जाओ, यहां से भी चले जाओ। अमृता ने उसे चंपक उंगली दिखा दी।

और तुम, शांत ने धीरे से पूछा।

फिर मेरा नाम लिया। मार डालूंगी। मैं अभी इसी समय गंगा में डूब जाउं। घर चली जाउ या कहीं और तुम्हें क्या। तुम खुश हो ना, जाओ। अमृता तैश में लगभग चीख रही थी। उसने दोनों हाथों से चेहरा ढंक लिया और शांत से थोड़ा दूर खिसक गई। शांत चुपचात निरभ्र बैठा रहा, एकटक अमृता को देखता हुआ। अमृता ने धीरे धीरे हथेलियों को चेहरे से अलग किया पर आंखें बंद ही थी। वह उदास बैठी रही। उनके बीच लमहे खामोशी से गुजरने लगे।

 थोड़ी देर के बाद शांत बोला देखो ना मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है। शायद गैस बनी थी, अब सिर तक चढ़ गई।

दर्द! क्या बहुत तेज दर्द हो रहा है। अमृता ने घबराकर पूछा।

हां तेज ही है। शांत ने सपाट उतर दिया।

ओह! और करो उल्टे सीधे काम, सोचो फालतु, दूसरो के सिर में दर्द दोगे तो उस दर्द से बचोगे कैसे। चलो, यहां सिर रखो और लेट जाओे, दबा दूं। अमृता ने पालथी मारकर बैठते हुए कहा।

 शांत चुपचाप उसकी गोद में लेट गया। और अमृता अपनी हथेली से सिर दबाती हुई पूछ रही थी, कहां दर्द हो रहा है, पूरे सिर में, आंखों के उपर या कानों के पास। तुम अपना ख्याल रखते ही नहीं हो। जानते हो तुम्हारे सिर में दर्द हो जाता है तो ऐसे काम ही क्यों करते हो। दर्द शुरू होने से पहले ही दवा क्यों नहीं लगाते हो। दूर कहीं बज रहे ट्रांजिस्टर से गाने की आवाज आ रही थी, खुली पलक में झूठा गुस्सा बंद पलक में प्यार, जीना भी मुश्किल…..।


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