साध
साध


शोभा प्रसन्न मुद्रा में घंटी बजा रही थीं। आरती का थाल बड़े पोते रौनक ने पकड रखा था। पोती आद्या का स्वर आरती गायन में सबसे ऊंचा था। उन्होंने आंख बंद की और देवी मां को धन्यवाद दिया। आद्या और रौनक पहली बार नवरात्रि का व्रत रख रहे थे। छोटा पोता मयंक सुंदरकांड का पाठ कर रहा था। पूरा घर धुप आदि की दिव्य सुगंध से सवासित था। दोनों पोते पोती पारी- पारी से दुर्गासप्तशती का पाठ करते तो सुबह देर तक घर में संस्कृत श्लोक गूंज रहा था। कितने साल से वह कामना कर रही थी कि नवरात्री पर सब इकट्ठे हों पर संयोग ही नहीं होता था। चैत्र में किसी क
ो आफिस से और स्कूल से छुट्टी नहीं मिलती थी। आश्वीन में दिवाली छठ के लिए छुट्टी बचाने के कारण कोई नहीं आ पाता था। उनकी साध मन में ही रह जाती थी।
इस बार बीमारी फैलने के बाद घर से काम करने की सुविधा मिलते ही बच्चे घर आ गए। तब से ही लग रहा है घर में त्योहार चल रहा है। नवरात्रि भी पूरी श्रद्धा और धूम से मनाई जा रही है। उन्होंने खुद संकल्प करके कलश स्थापित करा दिया। बाकी सदस्य पूजा में लगे हैं। सबके लिए फलाहार बना है। आरती के बाद प्रसाद पाकर वह अपने कमरे में आकर लेट गई। उन्हें लगा सारी थकान मिट गई, सबकुछ पा लिया, अब कोई साध नहीं।