दांव
दांव


बेटा, एक बात करनी थी तुमसे, पापा की आवाज़ सुनकर रूचि ने नजर उठाया। किताबें किनारे रख, सीधी बैठ गई, हां,पापा। कहिए न।
मैंने और तुम्हारी मम्मी ने तुम्हारे लिए एक लड़का देखा है। अच्छी नौकरी है। खाते-पीते घर का है। वे लोग आएँगे तो उनसे मिलकर तुम भी रिश्ते के लिए हां कर देना। ससुराल में भी तुम्हारी पढ़ाई जारी रहेगी, मैंने इस बारे में सबसे पहले बात कर ली है। वे एक ही सांस में पूरी बात बोल गए।
पापा। ऐसा मत कीजिए। मैं उस रिश्ते के लिए हां नहीं कर सकूंगी।
पहले मिलो, तुम खुद मना नहीं कर सकोगी। कहकर उन्होंने पत्नी को आवाज़ लगाई- प्रीति यहां आओ देखो रूचि मना कर रही है।
बेटा, अच्छा लड़का है। मम्मी ने आते ही कहा।
पर मैं, राजेश को पसंद करती हूं न।
राजेश? वो जो तुम्हारा क्लासमेट है?
हां।
नहीं, उससे शादी नहीं करनी है। वो हमारी जाति का नहीं है। अभी सेटल भी नहीं है और तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।
मम्मी। पापा। जाति-वाति कुछ नहीं होती है। अभी हमलोग पढ़ाई ही तो कर रहे हैं। छह महीने का समय दीजिए वो कहीं जॉब भी शुरू कर लेगा।
नहीं। हमें समाज में भी मुंह दिखाना है। उससे शादी नहीं होगी। इतने विश्वास से कह रही हो जैसे तुम ही उसे नौकरी देने वाली हो। यह विवाह नहीं होगा। प्रीति समझाओ इसे। पापा ने इस बार गुस्से से कहा और कमरे से बाहर निकल गए।
मम्मी की नसीहतें, ऊँच-नीच अनजाने भविष्य का डर आदि शुरू हुआ तो दो घंटे तक चलता रहा। सबकुछ सुनकर भी रूचि ने इतना ही कहा कि वह सिर्फ राजेश से ही शादी करेगी।
इसके बाद कोई बात नहीं हुई। उस रात किसी ने खाना नहीं खाया।
अगले दिन शाम को फिर वहीं प्रश्न सामने था। तीन दिन के बाद वे लोग आने वाले थे।
अच्छा रूचि। अगर तुम्हें यह लड़का पसंद नहीं आया तो हम कोई दूसरा लड़का देखेंगे पर राजेश नहीं। इसलिए इस लड़के से एक बार मिल लो। पापा ने बात शुरू की।
आप समझ नहीं रहे हैं पापा। मुझे कोई पसंद ही नहीं आएगा, क्योंकि मेरी पसंद फिक्स हो चुकी है।
रूचि बेटा, मेरी इज़्ज़त, प्रतिष्ठा से खेलोगी तो मैं सह नहीं पाउंगा, निश्चय ही आत्महत्या करनी पड़ेगी मुझे। क्या बाप को मार डालोगी।
आपके लिए इतना कर सकती हूं कि राजेश का साथ छूटा तो शादी नहीं करूंगी किसी से।
बात तो वही हुई शादी नहीं करके भी तो मेरी प्रेस्टीज से ही खेलोगी। लोग क्या कहेंगे कि बाप अपनी बेटी का ब्याह भी नहीं कर रहा है।
इतना बड़ा लांछन कैसे सहूंगा। मरना तो मुझे तब भी पड़ेगा। और मेरे बाद, भाई- बहन और मां को तुम्हें ही संभालना होगा। मैं समझ गया हूं, मेरी मौत आ गई है।
ये कोई बात नहीं हुई पापा। जबरदस्ती शादी नहीं करूंगी। अपने मन से करती हूं तो दिक्क्त नहीं करती हूं तो दिक्क्त।
जबरदस्ती कहां है? बस शादी तो करनी ही होगी। हमारे एहसान का यही बदला है।
एहसान? रूचि चौंक गई। कैसा एहसान पापा?
क्यों हमने तुम्हें जन्म दिया, पालन- पोषण किया, पढ़ाया इस काबिल बनाया कि आज बहस कर रही है। कितना संघर्ष किया तेरे लिए, अपनी ख़ुशियाँ कुर्बान कर तेरा बर्थडे मनाया, तुम्हारे शौक की चीजें खरीदीं। ये एहसान नहीं है? ये तेरे ऊपर हमारा कर्ज भी है। इसे उतारना ही होगा तुझे?
एहसान, कर्ज? रूचि इससे ज्यादा कुछ नहीं बोल पाई। उसकी कनपटिटयां दुखने लगी थीं।
तू चाहे न चाहे पर यह कर्ज उतारना होगा। उसके बाद ही अपनी जिंदगी का फैसला कर सकती है।
यह कर्ज उतरेगा उस लड़के से शादी करके जिसे आपने पसंद किया हैं। ओह! ठीक है। मिलने की कोई जरूरत नहीं, आपलोग शादी की तैयारी कीजिए। रूचि ने किताब में चेहरा छुपा लिया।