सवाल
सवाल


सरकारी बैंक में मैनेजर के पद पर काम करने वाली सानिया को इस नौकरी ने बहुत कुछ दिया था। बैंक की नौकरी की तनख्वाह में एक सामान्य जीवनशैली को आराम से जिया जा सकता है।हर चीज़ की तरह, इस नौकरी का भी एक दूसरा पहलू था। वो दूसरा पहलू था, परिवार और खासकर अपनी दोनों बेटियों को सही से वक़्त दे पाना। इसी वजह से सानिया हमेशा एक अपराधबोध से घिरी रहती थी। मजबूरी ये थी कि इस मंहगाई के ज़माने में अकेले अपने पति के कन्धों पे पूरी गृहस्थी का बोझ भी नहीं डालना चाहती थी। कुल मिलाकर सानिया की ज़िंदगी ज़िम्मेदारी और अपराधबोध के बीच में झूलती हुई अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी।
कई दिन से सानिया की 6 साल की बिटिया, नाहिद और 4 साल की ज़ोया, दोनो ज़िद्द कर रहीं थीं कि वो उसको बाहर घुमा के लाए। समय की किल्लत के चलते वो रोज़ रोज़ दोनों बेटियों की ये छोटी सी फरमाइश मजबूरी में टाल रही थी। कभी कभी उसको लगता कि काश उसके पास भी कोई अलादीन का चिराग या वो परियों वाली जादू की छड़ी होती, तो शायद उसकी ज़िन्दगी भी आसान होती। फिर एक गहरी साँस ले के खुद को तसल्ली देती कि असल ज़िन्दगी में जादू वादू कुछ नही होता, सब खुद ही करना होता है।
आज जब वो रोज़ की तरह ऑफिस आयी तो उसने सोचा भी नहीं था कि यूँ अचानक से उसका काम आसान हो जाएगा। वो ऑफिस पहुँची ही थी कि उसके बॉस ने उसे केबिन में बुलाया और कहा के आने वाले शनिवार को बैंक का स्थापना दिवस है और उसके लिए पूरे स्टाफ के लिए कुछ गिफ्ट खरीदना है। पूर्व में भी सानिया ऐसे आयोजनों में बढ़ चढ़ के हिस्सा लेती आयी थी तो वो खुशी खुशी राज़ी हो गयी। मन ही मन उसने सोचा कि इसी बहाने वो कुछ वक्त नाहिद और ज़ोया के साथ बिता लेगी।
" ठीक है सर, मैं लंच के बाद मार्केट से सामान ले लूँगी जाकर। आपको फ़ोटो व्हाट्सएप पे भेज दूँगी, कुछ नहीं पसंद आएगा , तो बता दीजियेगा।" ये सुनते ही उसके बॉस ने राहत की साँस ली।
जब लगभग 2-2:15 पे उसने अपनी कार को पार्किंग से निकाला, उसको लगा कि जैसे इस वक़्त का जाने कब से इंतजार कर रही थी। उसके घर पहुँचते ही उसकी दोनों बेटियाँ मारे खुशी के उछलने लगीं। जैसे ही दोनों ने घूमने जाने की बात सुनी, तुरंत दोनों अपनी अपनी फ्रिल वाली फ्रॉक पहन के चलने के लिए अपने कमरे की तरफ भागी। सच ही तो है, छोटी छोटी खुशियों की कोई बहुत बड़ी कीमत नही होती, बस उनको तलाशना होता है, उन पलों को जी भर के जी लेना होता है।
वो अभी अपने ख़यालो में खोई थी कि दोनों तैयार हो कर आ भी गयीं। आज बच्चों की आया भी खुश थी कि वो भी बहुत दिनों बाद कहीं बाहर जा रही थी। दरअसल वो सानिया के घर मे ही रहती थी। सीमा आँटी उमर में सानिया की माँ के बराबर थीं पर रिश्ता दोनों के बीच दोस्ती का था। सानिया ने कार निकाली और मार्केट जल्दी पहुंचने का सोचा। वो चाहती थी कि पहले ऑफिस का काम निपट जाए तो वो तसल्ली से रात का खाना सबके साथ बाहर ही खा लेगी। उसने तुरंत मोबाइल निकाल के अपने पति दानिश को ऑफिस से सीधे मॉल में आने का मैसेज कर दिया। सब कुछ एकदम परफेक्ट था। उसने भीड़ भाड़ से बचने के लिए जो रास्ता चुना वो ज़्यादातर खाली ही रहता था क्योंकि उस रास्ते मे शमशान पड़ता था। आज तक ये नहीं समझ में आया कि मरने वाले का ऐसा कौन सा गुनाह होता है कि सब उसके जाते ही उससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं। यहाँ तक कि उस रास्ते तक से कोई गुज़रना ही नही चाहता। सानिया को ये रास्ता बहुत पसंद था। इस रास्ते की शांति उसको अपनी ओर खींचती थी।
सानिया अपने खयालों में खोई बस कार चलाये जा रही थी कि अचानक से नाहिद की आवाज़ से उसकी तन्द्रा टूटी।
"मम्मा, वो देखो आग ?"
" बेटा, ये वो जगह है जहाँ पे हिन्दू लोग अपने परिवार वालों की डेथ के बाद उनका अंतिम संस्कार करते हैं। वो जाने वालों को दफ़न नहीं करते, उनकी चिता जलायी जाती है।", सानिया ने उसको एक नयी संस्कृति के बारे में बताया।
" मम्मा, पर ये हिन्दू लोग कौन होते हैं?"
सानिया के लिए ये एक अप्रत्याशित सवाल था।एक ऐसा सवाल, जिसका जवाब उसके पास था ही नहीं। वो चुपचाप कार चलती रही और कब मार्केट पहुँच गयी, उसे पता भी न चला। बच्चे भी मार्केट की चहल पहल में खो गए।
सानिया के दिमाग की सुई उसी सवाल पे अटक गई थी। वो यही सोच रही थी कि आज़ादी के इतने सालों बाद भी जो देश हिंदू मुसलमान में बंटा हुआ है, जहाँ राजनीतिक पार्टियां इसी क़ौमी बँटवारे में अपनी रोटियां सेंक रही हैं, उसी देश के बच्चों के मन आज भी कितने मासूम हैं। वो निर्णय ही नहीं ले पा रही थी कि नाहिद के सवाल का जवाब दे या उसे वक़्त पे छोड़ दे। क्या ज़रूरी है कि बच्चों के दिलों में भी बँटवारे के बीज बोए जाएँ ? हो सकता है कि इस तरह के सवाल आने वाली पीढ़ियों की ज़िंदगी के हिस्से बने ही न क्योंकि उनके मन में ऐसे सवालों के बीज भी तो हम बड़े ही डालते हैं।
अपने मन में चलते इस अंतर्द्वंद्व के बावजूद भी बच्चों का बेफिक्री से इस शाम का लुत्फ उठाते देख उसका मन भी किया कि , काश एक बार फिर वो बच्ची ही बन जाती।