अम्बर बरस गया
अम्बर बरस गया


अगर बचपन की कोई बात दिमाग में घर कर ले तो उसे निकाल पाना कभी कभी मुश्किल नहीं, असंभव होता है। वीरा को लगता था कि शायद गर्मियों में सूर्य देवता जो बेरहमी से आतंक फैलाते हैं, मदर नेचर सावन में सबको प्यारी सी बारिश के मजे देकर, हिसाब बराबर करती हैं।ये वीरा के बचपन की एक अमिट सोच थी। वैसे वो नित नए तर्क दे कर खुद को बारिश के प्रति अपने प्यार को तर्कसंगत ठहराती थी। दो भाइयों की इस एकलौती बहन की शायद ही कोई फरमाइश अधूरी रही हो। वीरा थी भी बड़ी नसीबों वाली। दोनों भाभियाँ भी वीरा को बढ़ चढ़ के मानती थीं। कुल मिलाकर वीरा एक सुखी परिवार का हिस्सा थी। अब लड़कियां तो दो परिवारों का हिस्सा होती हैं। दोनों हिस्से मिल के ही लड़कियों के जीवन को पूर्णता देते हैं।
वीरा की ज़िंदगी का वो समय भी नज़दीक आ रहा था कि जब उसको अपनी ज़िंदगी के दूसरे हिस्से से मिलना था।
अगर समाज के बनाए नियमों की बात करें तो एक लड़की पैदा होती है, सामान्य से किसी कॉलेज से BA या MA कर लेती है और उसके बाद शादी कर दी जाती है उसकी। फिर वो अपनी गृहस्थी में रम जाती है और 1-2 बच्चों की माँ बन जाती है। कुल मिलाकर इन नियमों में न तो नौकरी का कोई जिक्र आया न लड़कियों के सपनों का। सच पूछा जाए तो बड़ी सफाई से इन शब्दों को लड़कियों के शब्दकोश से निकाल फेंका गया।
वीरा कोई आम लड़की तो थी नहीं, नियम तो उसकी ज़िंदगी में भी थे, पर वो उसके खुद के बनाये हुए थे। उसकी बड़ी बड़ी आँखों में जो सपने पल रहे थे, वो आसान तो नहीं थे। ये सच है कि दोनों भाई-भाभियों की जान बसती थी उसमें। सिर्फ भाई-भाभी ही क्यों, माँ-पापा कौन सा कम दुलार करते थे उसको। एक सच ये भी था कि उसकी आँखों के मासूम सपनों में बगावत की चिंगारी भी झाँक रही थी। वीरा ने एक दिन हिम्मत करके सबको बोल दिया कि सिर्फ उसके कॉलेज की पढ़ाई खत्म हो रही है, उसकी जिंदगी नहीं। वो इतनी जल्दी शादी नहीं करेगी। उसने एक अच्छी सरकारी नौकरी का सपना पाल रखा था।
" क्या अपने पैसों की रट लगा रखी है तूने ! कौन सी कमी रखी हमने तुझे पालने में ? अपनी भाभियों को ही देख, क्या कमी है इनको ? और तेरी माँ, इनके चेहरे पे कोई शिकन देखी कभी ? कोई भी नौकरी नहीं करता इन सब में, पर सब खुश हैं।", उसके पापा, करतार सिंह ने लगभग झुँझलाते हुए उससे पूछा।
" किसी से आपने कभी पूछा नहीं, सिर्फ ये मान लिया कि सब खुश हैं। नौकरी कर के मैं अपनी पहचान हासिल करना चाहती हूँ। समाज मे एक मुकाम बनाना चाहती हूँ। किसी का बुरा तो नहीं कर रही मैं। मेरी ही ज़िंदगी में से बस 1 साल का वक़्त मुझे दे दो न पापा। यकीन करो मेरा, आपका सिर ऊँचा ही उठाऊँगी हमेशा, झुकने नहीं दूँगी।", वीरा ने पापा को मनाते हुए कहा।
" बाऊजी, दे देते हैं 1 साल। अगर न दिया तो अपनी ही लाडो के सपनों के कातिल बन जाएंगे हम सब। 1 साल तो पलक झपकते निकल जाता है। कौन सा कल ही हमें रिश्ता मिला जा रहा।", उसकी बड़ी भाभी, सिमरन ने उसकी पैरवी की।
" बाऊजी, अगर 1 साल में इसको नौकरी न मिली तो मैं खुद इसको शादी का जोड़ा पहना दूँगी। एक मौके का हक़ न छीनो उस से।", उसकी छोटी भाभी, मनजीत ने दलील दी।
" मैंने तो सारी जिंदगी कुछ माँगा ही नहीं। लाडो मांग रही है तो मैं तो मना नहीं कर सकती। मुझे अपनी लाडो पे और भगवान पे, पूरा भरोसा है। मैं यही दुआ करूँगी के जो सबके हक़ में हो, वो हो।", उसकी माँ, जसप्रीत ने करतार सिंह को समझाया।
" अब तुमलोगों की यही मर्जी है तो यही सही, पर 1 साल से 1 मिनट ज़्यादा नहीं।", करतार सिंह ने लगभग हथियार डालते हुए कहा।
वीरा सोच रही थी कि कौन कहता है कि एक औरत दूसरी औरत का भला नहीं कर सकती।अगर उसका सपना पूरा हुआ, तो श्रेय इन तीनों औरतों का ही होगा। अगले दिन से वीरा ने खुद को अपने कमरे में बंद करके किताबों के सागर में डुबो दिया। शुरू के एक दो इम्तहानों में उसको सफलता नहीं मिली पर साल बीतने से पहले उसको एक अच्छी सरकारी नौकरी में अधिकारी पद मिल गया। कुछ ही दिनों बाद एक अच्छा सा रिश्ता भी मिल गया।
वीरा अब लाडो से दुल्हन बन के अमृतसर से जम्मू आ गयी। पहाड़ों की एक खासियत होती है, अपनी विशालता में सबको समा लेते हैं। कभी कभी लगता है कि पहाड़ दरअसल एक मा
ँ ने बनाए होंगे, तभी तो सबको जगह पनाह मिल जाती इन पहाड़ों में। वीरा को जितनी बारिश पसंद थी, उतने ही पहाड़ भी पसंद थे। वीरा की ससुराल अम्बाला में थी। जम्मू में उसको पति का साथ अकेले मिलने वाला था, ये सोच के ही वो अकेले में भी शर्मा सकुचा जाती। आखिर उसकी विदाई का दिन भी आ गया और वो अम्बाला आ गयी। कुछ दिन की ही छुट्टी मिली थी उसको और उसके पति, अम्बर को। छुट्टी खत्म होते ही दोनों जम्मू आ गए। वादियों का मौसम और नई नवेली शादी, सब कुछ एक सधी हुई फ़िल्म की स्क्रिप्ट जैसा लग रहा था।
दो दिन बाद शनिवार था, दोनों की छुट्टी थी। छुट्टी का खयाल ही होठों पे मुस्कान ला देता है। और अगर शनिवार इतवार अपने साथ सोम और मंगल को भी छुट्टी के लिए राजी कर लें तो कहने ही क्या। लगातार 4 दिन की छुट्टियां बाहें पसारे खड़ी थीं। वीरा और अम्बर दोनों मन ही मन कई प्लान बना रहे थे पर किसी भी प्लान को हरी झंडी न मिली थी।
आखिरकार, शनिवार आ ही गया। अब कोई प्लान तो तय हुआ नही था, इसलिए दोनों आराम से सो कर उठे और शाम होते होते अलसाते अनमने से दोनों ने कुछ काम निपटाए। शाम में दोनों ने लांग ड्राइव को पूर्ण बहुमत से जिताया और निकल गए दोनों लंबी घुमावदार सड़कों पे। ये सड़कें जैसे जैसे घूमती, ऐसा लगता था मानो किसी महान नर्तकी के घाघरे की सिलवटें एक अदा और नज़ाकत से घूम रही हों। लांग ड्राइव के मजे ही निराले होते हैं। शाम के जाने और रात के आने का जो मिलने का अंदाज़ कभी कभी बड़ा मनमोहक होता है। आज ऐसा ही कुछ मन्ज़र था। दोनों ने थोड़ा रुक कर इन पहाड़ों को अपनी यादों में कैद करने की नीयत से कुछ फोटो लेने की सोची। गाड़ी साइड में लगा कि दोनों मोबाइल का सही प्रयोग करने लगे। तभी ज़ोर की छपाक ! की आवाज़ के साथ एक लड़की झेलम में कूद गई। वीरा ने आव देखा न ताव, उसको बचाने के लिए, वो भी कूद गई। अम्बर कुछ समझ पाता इससे पहले बहुत ज़ोरों की बारिश शुरू हो गयी।
कहने को तो ये उन दोनों की ज़िंदगी के पहले सावन की पहली बारिश थी, पर इस वक़्त अम्बर के आगे 2-2 ज़िंदगियाँ हाशिए पे खड़ी थीं।बारिश का मज़ा कहीं उड़नछू हो चुका था। पुलिस, आर्मी रेस्क्यू ऑफिस, एम्बुलेंस....सभी को फोन कर के जैसे ही अम्बर मुड़ा, " बच जाएगी ये, बस कूदने की वजह मिल जाए तो बताऊँ इसको", वीरा उस लड़की को दबा दबा कर पानी निकाल रही थी और अम्बर , वीरा में डूबा जा रहा था।
थोड़ी देर में एम्बुलेंस और पुलिस, दोनों आ गए और उस लड़की को ले कर चले गए।
" क्या ज़रूरत थी कूदने की? हम फोन कर के भी तो मदद ले सकते थे।कुछ हो जाता तुमको, तो मेरा क्या होता?", अम्बर ने वीरा को बेबसी से निहारते हुए कहा।
" कॉलेज की NCC कैप्टन थी मैं। मुझे कुछ न होने वाला।", वीरा ने आँखों में शरारत भर के कहा।
बारिश थी कि रुकने का नाम ही न ले रही थी। अम्बर इतनी बारिश देख के थोड़ी देर पहले किसी अनहोनी के भय से सिहर उठा। उसने पास खड़ी वीरा को अपनी बाहों में कैद कर लिया। शायद उसे तसल्ली हो रही थी कि अपना सबसे बेशकीमती खज़ाना उसकी बाहों में महफूज है। कहने को तो सावन की शुरुआत हुई थी और ये जो पहली बारिश थी, इसने दोनों को एक दूसरे के प्यार में पूरी तरह डुबो दिया था।
बढ़ती बारिश में वापस जाना ठीक नहीं था। थोड़ी देर पहले हुए हादसे के साक्षी बनने के बाद तो बिलकुल नहीं। दोनों पास के एक होटल में रात बिताने को रुक गए। दोनों एक दूसरे में खोए हुए थे कि अम्बर के फोन की घंटी से वापस वर्तमान में आए।
" मि. अम्बर, मैडम ने सही समय पे इस लड़की को डूबने से बचा लिया। अब ये खतरे से बाहर है। कल सुबह तक ये अपने घर जाने लायक हो जाएगी। आप दोनों का धन्यवाद।", उधर से इंस्पेक्टर का कॉल था।
" मोहतरमा!, आपने उस लड़की को तो डूबने से बचा लिया। पर हम तो आप में ही डूब गए।", उसने शरारती अंदाज़ में कहा तो वीरा के गालों के गड्ढे और गहरे हो गए।
किसी ने सच ही कहा है, सावन की पहली बारिश हो और मन मदहोश न हो, ऐसा कम ही होता है। वैसे, इतनी रोमांचक सावन की शुरुआत भी अक्सर कम ही होती है।
सुबह जब वीरा की आँख खुली तो ये तय कर पाना मुश्किल था कि बाहर के बादल ज़्यादा बरसे थे या उसका अम्बर ज़्यादा बरसा था। सावन शुरू हो चुका था।