स्पर्श
स्पर्श
कुसुम अपनी दादी की बहुत लाड़ली थी। बचपन से लेकर युवा अवस्था तक कुसुम की दादी ही उसकी दुनिया थी। पढ़ाई पूरी होते ही कुसुम के रिश्ते की बात चलने लगी थी। कुसुम अपनी दादी को छोड़कर पराये घर जाने की बात से ही घबरा रही थी मगर जब दादी ने उसे समझाया कि बेटियां अपने मां बाप के घर से अच्छी अच्छी बातें सीखकर पराये घर को संवारती हैं और नये परिवार, नई पीढ़ी की नींव रखती हैं, तब जाकर कुसुम विवाह के लिए राजी हुई।
कुसुम के लिए दूल्हा दादी ने ही पसंद किया था। वैशाख के महीने का अच्छा सा मुहूर्त तय हुआ। विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं। सभी रिश्तेदारों को खबर कर दिया गया की फलां तारीख को विवाह उत्सव में शामिल होना है। कुसुम की दादी के बताये अनुसार कई पुराने नातेदारों तक को आमंत्रित करने में कुसुम के पिता कोई कोर कसर नही छोड़े। उनके घर में युवा पीढ़ी की यह पहली शादी थी। कपड़े-गहने, अनाज-किराना सभी का इंतजाम किया जा चुका था। इसी बीच महामारी से बढ़ते मरीजों की संख्या के कारण आवाजाही सहित सभी कार्यक्रमों पर रोक लग गई।
कुसुम के पिता ने वर पक्ष से बात की तो उन्होंने लाॅकडाउन खुलने के बाद बारात लेकर आने का आश्वासन दिया। विवाह की लगभग सभी तैयारियां होने के बाद भी विलंब की बेचैनी के साथ सुरक्षा के लिहाज से लगे प्रतिबन्ध के दिन बीतने लगे। कुसुम के मां-बाप विवाह की तैयारियों में जमा पूंजी के खर्च हो जाने से परेशान थे। आमदनी के रास्ते बंद हो चुके थे। यद्यपि उनके मायूस चेहरों पर तसल्ली और उम्मीद की चमक तब नजर आने लगती जब वे विवाह के लिए खरीदे गहने और कपड़ों के साथ कुसुम और उसकी दादी को खिलखिलाते हुए देखते।
संक्रमण फैलता जा रहा था। हर पांचवें घर में संक्रमित मिल रहे थे। महामारी से बचने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों के बीच किसी अज्ञात चूक से कुसुम की दादी भी संक्रमण का शिकार बन गईं। उनके निधन से कुसुम गुमसुम रहने लगी। घर के बुजुर्ग को खोने के दुख के साथ ही कुसुम की वह दशा सभी को विचलित कर रही थी। कुसुम का मन बहलाने के भरसक प्रयासों के साथ उसके माता पिता ने किसी तरह प्रतिबन्धों वाले दिन बिताया। लाॅकडाउन खुलते ही कुसुम के पिता उसके होने वाले ससुराल पहुंच गये और विवाह के लिए उचित दिन पक्का कर आये।
दादी की इच्छा का मान रखने के लिए कुसुम बेमन से दुल्हन बनी। विवाह में कम से कम लोगों को आमंत्रित किया गया था मगर बारातियों की संख्या अनुमान से ज्यादा थी। वरमाला लिए कुसुम जब स्टेज पर पहुंची तो सभी उसे हैरत भरी निगाह से घूरते प्रतीत हुए। सिर झुकाए हुए कुसुम सैकड़ों नजरों की चुभन महसूस कर रही थी। दूल्हे के साथ आये बारातियों ने उसके चेहरे से मास्क हटाने को कहा। कुसुम के साथ आई महिलाओं ने मन मसोसकर कुसुम के चेहरे से मास्क हटा दिया। कुसुम बड़ी मुश्किल से आँखों में आने जा रहे आँसुओं के वेग को रोक पाई।
वरमाला के बाद ग्रुप फोटोग्राफी का सिलसिला प्रारंभ हुआ। कुसुम और उसके दूल्हे के पीछे बारी बारी से बारातियों का झुंड फोटोग्राफी और सेल्फी की होड़ करते दिखाई दिये। कोई कोई अपना चेहरा उन दोनों के बीच इतने करीब ले आता कि कुसुम असहज हो जाती। बारातियों की छींक और खांसी की आवाज सुनकर कुसुम के दिल की धड़कन बढ़ जाती। उसका मन करता कि वह स्टेज से उतर कर घर के अंदर चली जाए और जी भर कर रोये मगर वह बुत की तरह वहां बैठी रही। उसकी आँखों में दादी का बीमार चेहरा और बेजान जिस्म बारी बारी से तैर रहे थे।
घंटों तक चले फोटोग्राफी के बाद आखिर कुसुम को राहत मिली। उसकी सहेलियां उसे अंदर ले गईं। अंदर जाकर कुसुम बेतहाशा रोई। उसको रोते देख वहां मौजूद महिलाएं और रिश्तेदार हैरान रह गये। कुसुम की मां और पिता उसे काफी देर तक समझाते रहे। किसी तरह उसे शांत कराकर अगली रस्मों की तैयारी प्रारंभ की गई।
देर रात कुछ रस्मों के बाद जब मंडप के नीचे दूल्हे को लाया गया तो कुसुम हैरान रह गई। दूल्हे ने चेहरे पर मास्क लगा लिया था। मंडप में वरपक्ष के केवल प्रमुख लोग उपस्थित थे, अन्य बारातियों को खाना खिलाकर आराम से सोने के लिए कह दिया गया था। जब दूल्हे के हाथ में कुसुम का हाथ दिया गया तो कुसुम को दूल्हे का स्पर्श जाना पहचाना महसूस हुई। वह उसकी दादी के स्पर्श जैसा था। कुसुम हतप्रभ थी।
विदाई के बाद कुसुम जब एक सजे हुए चार पहिया वाहन में अपने दूल्हे के साथ ससुराल जा रही थी तो रास्ते में उसके पति ने कहा - "मैं आपकी दादी की कमी तो दूर नहीं कर सकता, लेकिन आपकी दादी की तरह ही हमेशा आपको प्यार करूंगा। आपकी दादी ने विवाह तय करते समय मुझसे आपका विशेष ख्याल रखने का वादा लिया था, जिसे मैं अंतिम सांस तक निभाऊँगा।"
कुसुम झट से अपना एक हाथ दूल्हे के मुँह पर रख दी और दूसरे हाथ से उसके हाथ को कसकर पकड़ ली। कुसुम की पलकें स्वतः ही बंद हो गईं। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी प्यारी दादी अभी भी उसके आसपास मौजूद है।