हिफाजत
हिफाजत
पैदा होते ही बच्चों का रोना कुदरती माना जाता है, मगर मेरे मुल्क के बच्चे पैदा होने के बाद बहुत ज्यादा रोते हैं, खासकर लड़कियां। जब मैं पैदा हुई थी तो मैं भी बहुत रोई थी और अम्मी भी, अब्बू बताते हैं।
दहशत के साये में मैं कुछ बड़ी हुई तो हुई मगर इतनी भी नही कि घर की दहलीज के बाहर झांक सकूं। फिर हालात बदले और हमारे गांव में पहली बार स्कूल खुला जहां बच्चों को पढ़ाई करने का मौका मिलने लगा। जब मेरी उम्र पढ़ने लायक हुई तो अब्बू ने बताया कि वह स्कूल लड़कों के पढ़ने के लिए है, लड़कियों की पढ़ाई के लिए स्कूल बन नही पा रहा है, उन्हे एतराज है।
मैने मासूमियत भरे अल्फाज में पूंछा था - "किसे अब्बू ?" अब्बू खामोश थे और अम्मी मुझे अपनी गोद में छुपाकर अंदर वाले कमरे में आ गई थी।
कुछ साल बाद मुझे भी स्कूल जाने का मौका मिला, मैं बहुत खुश हुई। हम स्कूल अकेले नही आ जा सकते थे। लड़कियों के घर की कुछ महिलाएं स्कूल पहुंचाने जातीं और फिर लेने भी आतीं। वे अक्सर किसी अनहोनी से डरी सहमी नजर आतीं। आते जाते रास्ते में एक खेत के पास वो लड़का मुझे अक्सर दिख जाता। वह भी मुझे चुपके चुपके देखते रहता।
एक दिन वो मेरे स्कूल के पास से गुजर रहा था। मुझे देखा तो मेरे करीब आने लगा। मैं डर से थर थर कांपने लगी। मैं भागने ही वाली थी कि उसने मुझसे कहा - "मेरे हिस्से की भी पढ़ाई कर लेना।" मेरे कदम जहां के तहां ठहर गये। मैं पलट कर पूंछी - "आपके हिस्से की क्यों, क्या आप स्कूल नही जाते ?"
वह अजीब सा मुंह बनाते हुए बोला - "मेरे चचा कहते हैं पढ़ने से ज्यादा जरूरी है लड़ना, वो मुझे हथियार चलाना सिखा रहे।" मैं घबराकर वहां से जाने लगी तो वह पीछे से बोला - "जब मैं हथियार चलाना सीख लूंगा तो तेरी हिफाजत करूंगा।" उसकी आवाज मेरे कानों तक पहुंची मगर मेरे कदम नही रूके।
कुछ दिनों बाद वह रास्ते वाले खेत में नजर नही आता था। वक्त तेजी से भाग रहा था और मैं भी उसी हिसाब से बड़ी हो रही थी। मैं शायद उसे भूल चुकी थी।
उस दिन मैं अपने पड़ोस की लड़कियों के साथ मजार में दुआ पढ़ रही थी तभी गोलियां चलने की आवाजें गूंजी। भगदड़ मच गई। हमारे गांव में लहुलुहान लाशें बिछ गईं जिनमें मेरी अम्मी भी थी। उस रोज मुझे उसकी याद आई। काश वो यहां होता और हमारी हिफाजत करता। मैं रोते रोते नींद के आगोश में समा जाती तो मुझे ख्वाब में वही नजर आता। उसकी वो बात 'तेरी हिफाजत करूंगा' मुझे सुकुन देती लेकिन जब आंख खुलती तो हकीकत से सामना होते ही आंसू आंखों से फिर बहने लगते।
मुझे आगे की पढ़ाई के लिए अपने मुल्क को छोड़ना था, लेकिन हमारे पास इतने पैसे नही थे कि हम दूसरे मुल्क में जा सकें। अब्बू हमारा घर, खेत और पालतू जानवर बेचने को तैयार थे मगर वो नाकाफी था। आखिरकार अब्बू किसी से कर्ज लेकर मुझे एक अन्जान मुल्क में भेजने की तैयारी कर ही लिए।
मैं अब्बू के साथ सफर में निकली थी। रास्ते में कुछ हथियार बंद हुजूम ने हमें घेर लिया। वे बद्तमीजी के साथ पूंछताछ करने लगे। अब्बू गिड़गिड़ा रहे थे। उन हथियार बंद हुजूम में मुझे वो नजर आया। वह काफी हट्टा कट्टा हो गया था। उसकी लम्बाई भी खूब बढ़ चुकी थी। शक्ल भी काफी बदल गई थी, मगर आंखें वैसे की वैसी ही थीं। मैं उसे पहचान गई, मगर वह मुझे कैसे पहचानता ?
मैने अपने चेहरे से अपना हिजाब हटाया। मुझ पर नजर पड़ते ही अब्बू जोर से चिल्लाये - "नहीं।" मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही आधा दर्जन राईफलें मेरी ओर तन गईं।
किसी राईफल से निकली गोलियों की आवाजें मुझे सुनाई पड़ी। मेरी आंखे बंद होने वाली थी तभी मैने उन हथियार बंद लोगों को धड़ाम से जमीन पर गिरते देखा। उस हुजूम में वो अकेला बचा था। उसकी राईफल से धुआं निकल रहा था।
आखिर वो मुझे पहचान गया और अपना वादा भी निभाया। मैं उसका शुक्रिया अदा करने के लिए उसके करीब जाने के लिए कदम बढ़ायी ही थी कि वो जोर से चिल्लाया - "अभी इसी वक्त, इस मुल्क से दूर चली जाओ, बहुत दूर, हमेशा के लिए।"
मेरे कदम थम गये। अब्बू दौड़ते हुए मेरे पास आये और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे नई मंजिल की ओर खींच ले गये। लौटते वक्त भी मैं बस उसे ही देख रही थी। वह हथियार लिए कुछ इस तरह खड़ा था जैसे जर्रे जर्रे में छिपे हर दुश्मन से मुझे महफूज रखते हुए मेरी हिफाजत करता रहेगा।
कई साल बीत गये। अब मैं नये मुल्क में बेहद खुश हूं। मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर एक स्कूल में टीचर बन चुकी हूं। मैं जब भी अपनी पलकें बंद करती हूं तो मुझे आज भी वही नजर आता है, मेरी हिफाजत में तैनात, पूरी तरह से मुस्तैद। मैं उसके बारे में जानना चाहती हूं कि वो अभी कहां है, कैसा है, मगर यह मुमकिन नही हो पा रहा है। मैं बस अपने ख्यालों में उसे याद कर लेती हूं और दुआ कर लेती हूं उसकी सलामती के लिए। आमीन।