Vijay Kumar Vishwakarma

Abstract Inspirational

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Vijay Kumar Vishwakarma

Abstract Inspirational

नई जगह

नई जगह

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विवाह के बाद कुछ ही दिनों में धीरे धीरे सभी मेहमान वापस लौट गये। भीड़ छंटते ही नई नवेली दुल्हन मानसी राहत की सांस ली। वह इतने सारे रिश्तेदार और भारी भरकम परिवार पहली बार देखी थी। मायके में माँ और पिताजी के अलावा उसका था ही कौन लेकिन ससुराल में उसे दादी सास, दादा ससुर, ताऊ ससुर, ताई सास, चाचा ससुर, चाची सास जैसे दर्जनो रिश्ते नातों से दो चार होना पड़ा। ननद ननदोई और देवरों, बुआ, फूफा, मामा मामी आदि की फौज देखकर उसे चक्कर आने लगा था।

जब उसके पति सागर ने बताया कि उनके पुस्तैनी गांव में पूरे परिवार का मोहल्ला बसा हुआ है, कभी घूमने चलेंगे। तो घबराकर मानसी बोली - "हम यहीं इस छोटे से कस्बे में ठीक हैं, माँ बाबू जी के साथ।" सागर उसे हैरत भरी नजरों से देखा फिर हौले से मुस्कुरा दिया।

दिन बीतने लगे। कुछ महीने बाद सागर का विभागीय स्थानान्तरण एक बड़े शहर में हो गया। वह मानसी को लेकर नये शहर में एक किराये के मकान में रहने लगा। उसने पड़ोसियों से सम्पर्क करने का प्रयास किया मगर उस बड़े शहर के लोग घुममिल कर रहना जानते ही नहीं थे। पड़ोसियों ने उन्हें ज्यादा भाव नहीं दिया।

सागर सुबह ऑफिस के लिए निकल जाता और शाम को वापस लौटता। कुछ हफ्तों बाद उसे मानसी के व्यवहार में परिवर्तन नजर आने लगा। वह अक्सर डरी सहमी नजर आती। सागर के कुरेदने पर मानसी ने बताया कि जब वह अकेली होती है तो घर के आसपास कई लड़के टहलते हुए सीटी बजाते, ठहाके लगाते और घर की ओर घूरते नजर आते हैं।

सागर अपनी शर्ट की बाहें चढ़ाते हुए घर के बाहर निकला तो उसे कुछ आवारा लड़के भागते हुए नजर आये। सागर दो दिन की छुट्टी लेकर घर पर ही रहा। उसकी मौजूदगी को महसूस कर बदमाश लड़कों की हरकतें उन दो दिनों तक बंद रहीं मगर सागर के ड्यूटी ज्वाईन करते ही वे फिर सक्रिय हो गये। आखिरकार मानसी को ढाँढ़स बंधाते हुए सागर मकान बदलने की सोचने लगा। वह कई नये मकान तलाशा मगर सभी उसके बजट से बाहर थे। मजबूरन वे घर नहीं बदल पा रहे थे।

जब उसे और कोई राह न सूझा तो वह घर पर फोन करके अपनी परेशानी पिताजी को बता दिया। तीसरे दिन ही उसके मकान में उसकी माँ और पिताजी पहुंच गये। सुबह सागर के ड्यूटी जाने के बाद मानसी के घर में उसके सास ससुर को देखकर उन आवारा लड़कों की हिम्मत उनके घर के आस पास टहलने या घूरने की नहीं हुई।

आसपड़ोस का जायजा लेते हुए सागर की माँ पड़ोसियों से मिलने पहुंच गईं। उन्होने जाने क्या जादू क्या कि दो दिन में ही पड़ोसी उनसे काफी घुलमिल गये। मानसी के सवालिया चेहरे को पढ़कर सागर की माँ ने मानसी को बताया कि पड़ोसियों की तारीफ और उनके किसी काम में मदद के लिए हाथ बढ़ाने से अपनापन और पूंछ परख बढ़ने लगती है।

एक दिन सागर के पिताजी मोहल्ले की एक सैलून से बाल कटवा कर लौटे तो सागर पूंछा - "आपके बाल तो पहले ही बहुत छोटे थे फिर नाहक में सैलून जाने की बात समझ में नहीं आई ?"

सागर के पिता मुस्कुरा कर बोले - "बेटा सैलून वालों के पास पूरे मोहल्ले वालों की खबर रहती है, वे एक तरह से रेडियो या न्यूज चैनल की तरह हैं, उनसे अपनापन बढ़ाने से फायदा ही है नुकसान नहीं।"

सागर को अपने पिता की बात ठीक से समझ में नहीं आई लेकिन जब उसके पिता आसपास के किराना स्टोर्स और अन्य दुकानदारों से परिचय बनाने लगे तब सागर को उनकी रणनीति समझ में आई। हफ्ते भर में दर्जनों दुकानदार सागर को पहचानने लगे थे और उधर से गुजरने पर वे दुकानदार नमस्ते, सलाम या राम राम कहकर उसके परिवार की खैर खबर पूंछने लगते।

इस दरम्यान सागर की माँ अपने पैतृक गांव फोन करके अपने परिजन और रिश्तेदारों को सागर के मकान का पता लिखवा दी। उसके बाद हर हफ्ते कोई न कोई रिश्तेदार उनसे मिलने आने लगा। कोई घी लेकर आता तो कोई अनाज की बोरी। सागर की माँ मानसी से सबका परिचय इस ढ़ंग से कराती की वे अच्छे से एक दूसरे को पहचान और समझ लें। सागर के मकान में चहल पहल बढ़ गई थी और आवारा लड़कों की मुसीबत हमेशा के लिए टल गई।

सदैव भीड़ भाड़ से बचने वाली मानसी को अब परिवार का महत्व समझ में आ गया था। आगे जब भी सागर का स्थानान्तरण होता, मानसी सबसे पहले अपने परिवार को याद करती और उनके साथ ही नये मकान में कदम रखती। वह प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करती कि उसे अपने परिवार का संबल और स्नेह हमेशा मिलता रहे।


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