Vijay Kumar Vishwakarma

Abstract Comedy Others

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Vijay Kumar Vishwakarma

Abstract Comedy Others

गजब

गजब

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काफी दिनों बाद कमलाकार का फोन आया। वह बुझी आवाज में अपनी परेशानी बताने लगा। मैं ध्यान से उसकी बातें सुनता रहा फिर कुछ सोचकर उसे एक सुझाव दिया। अपनी समस्या का समाधान सुनते ही उसके मुंह से निकला - "गजब।" मैं हौले से मुस्कुरा दिया।


गजब - मेरा नाम है। मेरे पैदा होते ही अस्पताल की नर्स ने जोर से चिल्ला कर अस्पताल के अन्य स्टाॅफ और मेरे घरवालों को सहसा डरा ही दिया था। वह जोर से चिल्लाई थी - "गजब हो गया।"


मेरी बूढ़ी दादी अपनी सांस रोके डिलेवरी रूम में दाखिल हुईं तो मुझे नर्स के हाथों में बिलखता पाईं। अस्पताल के अन्य लोग दौड़ कर डिलेवरी रूम के दरवाजे पर इकठ्ठा हो गये थे। बाहर बाबूजी और दादाजी आपस में लिपट कर दर्जन भर देवताओं का नाम जपने लगे थे। डिलेवरी रूम के बाहर उमड़े लोगों को देखकर वह नर्स हैरत भरे अंदाज में बोली - "देखो, देखो ! कितना हुष्ट-पुष्ट बच्चा है। इसका वजन तो बाप रे ! मैंने आज तक इतना भारी बच्चा पैदा होते न देखा न सुना।"


उस दिन मेरे भारी वजन के हिसाब से ही अस्पताल के स्टाॅफ ने बाबूजी और दादाजी से भारी दक्षिणा लेकर आपस में बांट लिया था। बख्शीश पाकर सभी लोग गजब खुश थे। बस तभी से लोग मुझे गजब कहकर बुलाने लगे। ऐसा नहीं है कि मेरा नाम बदलने की कवायद नहीं की गई। मेरी मां ने मेरा नाम बजरंगबली रखने का प्रयास किया मगर मुझे कोई बजरंगबली कहकर बुलाता ही नहीं था।


गांव के इकलौते स्कूल में एड्मीशन के समय मास्टर जी ने मुझे घूरते हुए बाबू जी से कहा कि डेढ़ पसली के बच्चे का नाम बजरंगबली रखकर काहे को भगवान का अपमान कर रहे हो ? तब बाबूजी ने मेरे महीनों डबल निमोनिया से पीड़ित रहने की बात बताया जिसे सुनकर मास्टर जी चौंक पड़े, बोले - "ई तो गजब होई गया।"


मास्टर जी की प्रतिक्रिया सुनकर बाबूजी ने झट से कहा - "वइसे इसको हम सब भी गजब कहकर ही बुलाते हैं।" मास्टर जी पुनः चौंकते हुए माथे को सिकोड़कर कुछ सोचे और धीरे से मुस्कुराये, बोले - "गजब।" और फिर स्कूल के रजिस्टर में हमेशा के लिए मेरा नाम गजब लिख गया।


गांव में आठवीं तक की पाठशाला थी। नवमी से पढ़ाई के लिए गांव से पंद्रह किलोमीटर दूर शहर के एक प्राइवेट स्कूल में नाम लिखवाया गया। नई जगह, नये लोग और गजब नाम। कई महीनों तक उस स्कूल में मेरा जमकर मजाक उड़ाया गया। फिर ठंड के मौसम में स्कूल की एक प्रतियोगिता में मैं अव्वल आया तो सभी ने कहा गजब, मगर इस बार उन सभी के चेहरों पर प्रशंसा वाले भाव थे।


दरअसल वह कोई कठिन प्रतियोगिता नही थी। प्रतियोगियों को अंग्रेजी के ऐसे शब्द बोलने थे जिनमें वाॅवेल न हों। हर कोई कहीं न कहीं अटक जाता लेकिन मैं रेलगाड़ी की तरह धड़ाधड़ सही शब्द बोलता रहा। गांव की पाठशाला में मुझे महाभारत की कहानी में पिरोकर सिखाया गया था कि अंग्रेजी के वाॅवेल पांडवों की तरह हैं - पांच भाई - ए, ई, आई, ओ और यू। इन अक्षरों के साथ और इनके बिना बनने वाले अक्षरों को तब जमकर रटाया गया था। वही उस दिन प्रतियोगिता में काम आया। दूसरा स्थान मिला था कमलाकर को और तभी से हमारी पक्की दोस्ती हो गई।


जब कभी कमलाकर किसी उलझन में पड़ता तो मुझसे बात करते ही उसे समाधान मिल जाता। स्कूल से शुरू हुआ वह सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है। स्कूल की पढ़ाई के बाद हम काॅलेज भी साथ में गये। काॅलेज की पढ़ाई पूरी होते ही कमलाकर अपने कैरियर को लेकर चिंतित था। तब मैंने उसे समझाया था कि वह कलमकार बने। उसके नाम से ही कलमकार और कलाकार ध्वनित होता है।


कमलाकर को वैसे भी बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था। मेरे प्रोत्साहन से कमलाकर कवि गोष्ठियों में सम्मिलित होने लगा और अपनी लिखी रचनाओं को सुनाकर वाहवाही लूटता रहा। उसकी लिखी कविताओं की एक किताब भी प्रकाशित हुई। यद्यपि वह उतनी नहीं बिकी जितनी अपेक्षा थी। कमलाकर एक बार फिर निराशा के दलदल में समाने लगा। मैंने सुझाया कि ऑनलाइन मंचों में अपनी रचनाएं पोस्ट कर वो दुनिया भर के पाठकों से सीधे जुड़ सकता है। कमलाकर फौरन सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गया। सब कुछ अच्छा चल रहा था। और फिर अचानक आज कमलाकर का फोन आया।


कमलाकर ने अपनी समस्या बताई। कमलाकर ने कहा कि सोशल मीडिया के कई मंचों पर उसकी रचनाओं को उतने लाईक या कमेंट नहीं मिलते जितने अन्य रचनाकारों को मिल रहे हैं। मैंने अपने मोबाइल पर उसकी रचनाओं के साथ साथ अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर ध्यान दिया। कमलाकर की बात एकदम सही थी। कई निकृष्ट रचनाओं को भी उसकी रचनाओं से ज्यादा लाईक और कमेंट मिल रहे थे।


मैं कुछ सोचा और फिर कमलाकर से कहा कि वह अपने नाम में जरा सा संशोधन कर ले। कमलाकर झट से जवाब दिया कि उसका नाम ज्योतिष और अंकशास्त्र के अनुसार संतुलित है और वैसे भी 'क' अक्षर से प्रारंभ होने के कारण नाम में कोई कमी नहीं है। अपनी बात के समर्थन में उसने फिल्मी दुनिया के नाम सम्बन्धित चर्चाओं का भी जिक्र किया।


मैंने हंसते हुए समझाया कि मैं नाम या अक्षर बदलने को नहीं कह रहा हूं बल्कि नाम को बीच से तोड़ने की सलाह दे रहा हूं। कमलाकर हैरानी भरे स्वर में पूछा - "क्या मतलब ?" मैंने समझाया कि कमला और कर के बीच में स्पेस देकर लिखो और कमला का कमाल देखो।


कमलाकर मेरा आशय समझते ही चहक उठा, बोला - "गजब।" कमलाकर ने अपने प्रोफाईल में अपना नाम कमला कर के रूप में प्रदर्शित कर लिया और उसकी पोस्ट की हुई रचनाओं में लाईक्स और प्रशंसा भरे कमेंट्स की संख्या में इजाफा होने लगा। कमलाकर की खुशी और उत्साह उसकी रचनाओं में भी नजर आने लगा।


कमलाकर के सकारात्मक प्रभाव को देखकर मैंने भी अपने द्वार पर लगे नेम प्लेट में थोड़ा सा सुधार करने का विचार किया। मैंने अपने नाम के साथ 'दन' शब्द जोड़ लिया। अब नेम प्लेट मेरे निकले हुए तोंद को सार्थक कर रहा है। नेम प्लेट पर लिखा है - गजबदन।



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