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Vijay Kumar Vishwakarma

Inspirational

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Vijay Kumar Vishwakarma

Inspirational

एक दिन

एक दिन

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"है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ ....."


देशभक्ति से भरे ऐसे ही गीत गुनगुनाते हुए मनोहर जी रोज की तरह घर से टहलने निकले । सूर्य निकलने के आधे घंटे पहले ही वे सैर सपाटे के लिए तैयार होकर अपने घर से काफी दूर एक खुले मैदान में योगाभ्यास करने पहुंच जाते । आज वो बेहद खुश नजर आ रहे हैं, क्योंकि आज का दिन बेहद खास है । आज स्वतंत्रता दिवस का महान पर्व है ।


अमूमन सुबह की इस बेला में सूनसान रहने वाली सड़क पर आज थोड़ी बहुत चहल पहल नजर आ रही है । रात में हुई बारिश के कारण सड़क के दोनो ओर की जमीन गीली है । ढ़ालदार सूखी सड़क पर कुछ मवेशी बैठे हुए नजर आए । मनोहर जी सुबह सुबह गाय के दर्शन को बड़ा शुभ मानते हैं । वे हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम कर ही रहे थे कि एक कड़कती आवाज से उनका ध्यान भंग हुआ । वे उस आवाज की तरफ नजर घुमाए । 

उनके पीछे खड़ा एक आदमी हाथ में पत्थर लिए उन मवेशियों पर चिल्लाते हुए पत्थर फेंकने ही वाला था कि मनोहर जी ने उसे टोंका - "क्यों मार रहे हैं इन बेबस जानवरों को ?"


उस अन्जान आदमी ने घृणित भाव से कहा - "दिखता नहीं है सड़क पर कितनी गंदगी मचा रखी है इन जानवरों ने ।"


मनोहर जी की नजर सड़क पर बिखरे गोबर पर पड़ी । वे कुछ कहने ही वाले थे कि उनकी नजर एक महिला पर पड़ी जो एक पॉलिथिन में गोबर इकठ्ठा करते हुए उधर ही चली आ रही थी । वह कपड़ों से साधारण परिवार की महिला प्रतीत हुई । मनोहर जी ने हाथ हिलाते हुए उस अन्जान आदमी की ओर देखकर कहा - "अब खुश ।"


मनोहर जी की प्रतिक्रिया से वह आदमी संतुष्ट होने की बजाए आक्रामक ढ़ंग से बोला - "रास्ता जाम किये बैठे हैं तो लोग आराम से आ जा नहीं सकते । इन जानवरों को तो हमेशा के लिए कॉजी हाऊस में बंद करा देना चाहिए ।"


मनोहर जी सुबह सुबह उस आदमी से उलझना नहीं चाहते थे इसलिए आगे बढ़ते हुए धीरे से बोले - "सड़क न आपकी है न मेरी, इन पशुओं को भी सड़क पर चलने का अधिकार है ।"


वे कुछ ही दूर जा पाये थे कि एक तिराहे के पास उन्हे गले में घंटी बांधे एक गाय की बछिया भागते हुए दिखाई दी । उस बछिया के पीछे एक युवक लाठी लिए दौड़ रहा था । मनोहर जी को उस युवक की शक्ल जानी पहचानी महसूस हुई । जैसे ही युवक उनके पास पहुंचा तो मनोहर जी ने तपाक से पूंछ लिया - "क्या हो गया ?"


लम्बी लम्बी सांसे लेते हुए वह युवक बोला - "मोहल्लेवाले भी जाने क्यों गाय बैल पालते हैं जब सम्हाल कर रख नही पाते । मनोहर जी ने उसको पहचानने का प्रयास करते हुए पूंछा - "हुआ क्या ?"


वह युवक जम्हाई लेते हुए बोला - "अरे हमारे मोहल्ले में रहने वालों में से जाने किसकी यह बछिया है रोज सुबह घंटी टनटनाते, रंभाते हुए मेरे घर के सामने से गुजरकर हमारी नींद खराब कर देती है । आखिर लोग जानवरों को घर में हमेशा बांध कर रखते क्यों नहीं ?"


मनोहर जी को याद आ गया । लॉकडाउन के समय घर से निकलने पर पाबंदी के बाद भी वह युवक अक्सर घूमते फिरते पाया जाता था । जिसके कारण पुलिस द्वारा उसे कान पकड़कर उठा बैठक करवाया गया और वह वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था ।


मनोहर जी ने मुस्कुराते हुए कहा - "जब बाहर निकलने की सख्त मनाही थी, जीवन पर खतरा था, तब आप जैसे लोगों के कदम घर पर टिक नही रहे थे । और आप चाहते हैं बेजुबान जानवरों को चौबीसों घंटे, तीन सौ पैसंठ दिन बांधकर रखा जाए ?"


वह युवक झेंप कर इधर उधर देखने लगा । मनोहर जी ने उसके हाथ में लाठी को देखते हुए कहा - "प्रिवेंशन ऑफ क्रूअल्टी टू एनिमल ऐक्ट की धारा ग्यारह के तहत पशुओं को मारने पीटने और कुदरती व्यवहार या आजादी से रोकने पर लाख रूपए का जुर्माना और कैद की सजा है । नासमझ, मासूम और असहाय पशुओं पर ज्यादती क्या हम इंसानों को शोभा देता है ?"


वह युवक अपने हाथ में पकड़ी लाठी को एक ओर फेंक कर चुपचाप वापस लौट गया । मनोहर जी भी अपनी राह पकड़ लिए । रास्ते भर वे खुदगर्ज इंसान और जानवरों पर होने वाले अत्याचार के बारे में सोचते रहे । उनके मन मस्तिष्क में एक ही बात बार बार कौंध रही थी कि क्या हम वास्तव में पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गये हैं ? पशुओं को मिली प्रकृति प्रदत्त स्वतंत्रता मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढ़ गया है । ऐसे में ईमानदारी से पूंछा जाए तो क्या हमें स्वतंत्रता पर्व मनाने का अधिकार है ?


विचारों की ऊहापोह के साथ वे शहर के बाहरी छोर पर एक बड़े से मैदान पर पहुंचकर सुस्ताते हुए गहरी सांसे लेना प्रारंभ किये । कुछ पल बाद वे खड़े होकर सूर्यनमस्कार की मुद्रा में आ गये । मैदान के अंतिम छोर पर सूर्य की गहरी ललिमा नजर आने लगी । मैदान के हरी हरी घांस को चरते हुए धवल सफेद गायों के झुंड के पास उन्हे नीले रंग की तिललियाँ नजर आईं । मनोहर जी को अपनी आँखों के सामने स्वतंत्रता पर्व के ध्वज की छवि प्रतीत होने लगी । वे मन ही मन गुनगुनाने लगे ।


"हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन । मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास । हम होंगे कामयाब एक दिन ।"




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