सपनों का घर
सपनों का घर
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सपनों का नगर है कानपुर। यहाँ हर परिवार में कोई न कोई सपना पलता रहता है। किसी को नयी गाड़ी चाहिए तो कोई नया घर लेना चाहता है।
ऐसा ही एक परिवार कानपुर के कल्यानपुर इलाके में किराये के मकान में सपने देख रहा था। कुल तीन लोगों के इस छोटे से परिवार के मुखिया थे हरीश। जो अपनी संगिनी वीना और बेटे सुयश के साथ गृहस्थ भोग रहे थे।
हरीश कानपुर विश्वविद्यालय के डीन ऑफिस में चपरासी थे और वीना घर पर सिलाई करती थी।
एक मध्यमवर्गीय परिवार की तरह वो भी अपने सपने को पूरा करने के लिए अपने रोजमर्रा के खर्चों की कटौती करके पैसे बचाते थे और महीने के अंत में बैंक के हवाले कर आते थे।
जीवन-बीमा भी चल रहा थी। जिसकी किश्त तो हर महीने की बंधी थी पर जाती छमाही में एक बार थी, ब्याज के साथ।
एक मध्यवर्गीय परिवार में ऐसा ही होता है। ऐसा परिवार जिसे देखकर तो लगता है की साहब इनके पास किस चीज़ की कमी है। "भाई साहब पिउन हैं, भाभीजी सिलाई करती हैं, बेटा इंग्लिस मीडियम में पढता है। कभी किसी से कुछ मांगते नहीं हैं। इनका तो बढ़िया चल रहा है।" लेकिन जो ऐसा सोचते हैं उनको नही पता की दूध, राशन, बच्चे की फीस, मकान का किराया आदि देने के बाद हाथ में कुछ नहीं रहता। एक सीमित राशि में परिवार का भरण-पोषण करने के बाद कुछ बचत कर लेने की कला तो सिर्फ मध्यमवर्गीय परिवारों में होती है।
खैर, इस परिवार ने मिलकर जो सपना देखा था वो था कानपुर में एक छोटा सा घर। अभी तीन साल पहले ही हरीश ने आवास-विकास में निकली कॉलोनी की किश्त चुकाकर रजिस्ट्री करवाई थी। उसके बाद ये परिवार तीन साल से हर महीने कुछ न कुछ बचत करके बैंक के सुपुर्द कर आता था।
हरीश और वीना रोज बैठकर एक बार अपने सपने को जी लेते थे।
"हम न अपने घर के किचेन में कप-प्लेट वाले टाइल्स लगवायेंगे।"- कभी हरीश कहता।
तो कभी वीना बोल पड़ती-
" सुनो जी! हम न नये घर में आगे की ओर थोड़ी जगह छोड़कर उसमे लॉन बनवायेंगे और उसी में बैठकर सुबह-शाम की चाय पी जाएगी।"
इसी कड़ी में वो घर बनाने में लगने वाली लागत का भी गुणा-भाग कर लिया करते थे।
"यार वीना! ये महंगाई जान लेकर मानेगी। देखो एक ईंट अब सात रूपए की हो गयी। जब हमारा गाँव वाला घर बना था तो दो रूपए की आती थी।ऐसे तो एक मंजिल बनवाने में ३-४ लाख का खर्चा आ जायेगा।"
और इसी तरह सपने को संजोये इनके दिन गुज़र रहे थे।
बचत भी अब २-२.५ लाख हो गयी थी। तो सपना पूरा होता दिख रहा था।
लेकिन विधाता भी समय-समय पर अपनी मिट्टी परखता रहता है।
वीना को कुछ दिन से पेट में दर्द रहने लगा था। शुरू में कब्ज लगा जो मेडिकल स्टोर की दवा या दादी-नानी के नुस्खों से ठीक हो जाता था।आमतौर पर मध्यम वर्गीय परिवार अस्पताल जाने से बचता है।
"जरा सी दवा और एक इंजेक्शन के अभी पांच सौ ले लेगा डॉक्टर"- अस्पताल जाने को लेकर ये राय थी वीना की।
लेकिन एक दिन दर्द ऐसा उठा की रहा न गया।
डॉक्टर ने शुरुआती जांच के बाद अल्ट्रासाउंड लिखा जिसकी रिपोर्ट आने पर उस परिवार के सारे सपने टूटे शीशे जैसे बिखर गये।
वीना को बच्चेदानी का कैंसर था।
अभी पहले चरण में था इसलिए इलाज संभव था। लेकिन जितनी जल्दी हो सके ऑपरेशन करवाना था।
वीना की आँखों से सपने आँसू बनके गिर रहे थे और ज़मीन पर गिरते ही ओझल हुए जा रहे थे।
हरीश के आँसू सूख गए थे। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही इन्सान ये मान लेता है की अब बचना नामुमकिन है।
ऐसे में वीना इस दुविधा में थी की ऑपरेशन कराया जाये या नहीं। वो हरीश से बोली-
"हरीश! मुझे नही लगता अब मैं बच पाऊँगी। जितने दिन हैं तुम दोनों के साथ बिताकर चली जाउंगी। तुम दूसरी शादी कर लेना और मेरे सुयश को हमेशा खुश रखना।"
"तुम पागल हो गयी हो क्या? क्या बके जा रही हो? कुछ नहीं होने दूंगा मैं तुम्हे।"- हरीश वीना के दोनों कन्धों को पकड़कर जोर से हिलाते हुए बोला।
हरीश मन बना चुका था।
उस दिन से सत्रहवें दिन वीना का सफल ऑपरेशन हुआ।
ऑपरेशन, अस्पताल का खर्च और दवा मिलाकर कुल आठ लाख का खर्च आया जिसके लिए हरीश को अपनी ज़मीन भी बेचनी पड़ी।
कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद घर आते ही वीना हरीश के कंधे पर सर रखकर रो पड़ी-
"हरीश! मेरी वजह से हमारा सपना टूट गया।"
"अरे पगली! हमारा सपना एक अच्छा सा घर बनाकर उसमे साथ रहने का था। जब तुम ही नहीं रहती तो अकेला मैं उस घर का क्या करता। तुमसे ही तो मेरा घर है। तुम्हारे बिना तो वो सिर्फ एक मकान होता।"- हरीश ने वीना के बालों को सहलाते हुए कहा।
"हम सपनों के पीछे भागने और उन्हें पूरा करने के क्रम में ये भूल जाते हैं की जिनके लिए और जिनके साथ हम इस सपने को जीने का सोच रहे हैं उन्हें हम कहीं पीछे छोड़ दे रहे हैं। सपने देखना और उन्हें पूरा करना अच्छी बात है लेकिन उसके साथ हमे अपने परिवार को भी पूरा समय देना चाहिये। क्यूँकी जीवन सिर्फ एक बार ही मिलता है।"- वीना ये सोच रही थी।
इतने में सुयश बोला-
"मम्मा आप टेंशन मत लो। मैं आपके लिए बड़ा सा बंगला बनवाऊंगा।"
वीना ने उसे गोद में उठा लिया और हरीश ने दोनो को बाहों में भर लिया।