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कानपुर शहर की हर गली में एक किस्सा बसता है। कुछ किस्से हमें जीवन के कड़वे अनुभवों का स्वाद दिलाते हैं तो कुछ हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाते हैं। आइये आज एक ऐसे ही किस्से से रूबरू होते हैं।
"मधुर! बेटा ये अपने घर की तरफ का रास्ता तो लग नहींं रहा। देखो किधर ले जा रहे हैं ये ऑटो वाले भैया।"- मीरा ने अपने १० साल के बेटे को ऑटो की खिड़की से बाहर की तरफ इशारा करके बताया।
आज मीरा के पति को तनख्वाह मिली थी और वो अपने दोनों बच्चों मधुर(१०साल) और मधुरिमा(८साल) को लेकर बाज़ार आयी थी। उसने अपने दोनों बच्चों के लिये स्कूल बैग, पानी की बोतल, दोनों की स्कूल की किताबें और २ किलो सेब ख़रीदे थे। अब उसके पास सिर्फ पाँच रूपये बचे थे और इतना ही उसके घर को जाने वाली ऑटो का किराया था।लेकिन मीरा आज गलती से दूसरी ऑटो में बैठ गयी थी। शायद वो ठीक से सुन नहींं पायी थी की ऑटो जा कहाँ रही है।
"हाँ मम्मी! ये तो कोई दूसरा रास्ता है।"- मधुर चौंककर मीरा से बोला।
मीरा ने तुरंत ऑटो रुकवाया और उससे पूछा-
"भैया ये ऑटो रावतपुर जा रही है ना?"
" नहींं बहनजी! ये तो चुन्नीगंज जा रही है। मैंने तो चिल्लाकर बोला भी था ।"- ऑटो वाला झुंझलाकर बोला।
"शायद मेरे सुनने में कोई गलती हो गयी भैया। हमें तो रावतपुर जाना है।"- मीरा परेशान होकर बोली।
"आप लोग सुनती नहींं हैं ठीक से और नुकसान हमारा होता है। लाओ ७ रुपये निकालो।"
"भैया मेरे पास तो किराये के पाँच रुपये ही बचे हैं।"- मीरा मुरझाये गले से बोली।
" लाओ पाँच ही दो अब क्या करें"- बडबडाते हुए ऑटो वाले ने पैसे लिए और गाड़ी बढ़ा दी।
मीरा दोनों बच्चों को लेकर सड़क पर भटक रही थी। वो कानपुर शहर में ज्यादा घूमी नहींं थी। सिर्फ बाज़ार और एक दो रिश्तेदारों के यहाँ का ही रास्ता उसे पता था। बच्चे भी छोटे थे तो उन्हें भी अभी कुछ पता नहींं था की वो लोग कहाँ हैं और घर कैसे जायें।
तभी एक रिक्शेवाला वहाँ आया और मीरा से बोला-
"कहीं छोड़ दें बहनजी?"
" नहींं भैया हमें रावतपुर जाना था लेकिन हम लोग गलत टैक्सी में बैठ गये और यहाँ आ गये। सिर्फ किराये के पैसे बचे थे वो भी टैक्सी वाले ने ले लिये। अँधेरा हो रहा है,अब पता नहींं घर कैसे पहुँचेंगे। "
"रावतपुर तो यहाँ से बहुत दूर है लेकिन बहनजी आप चिंता मत कीजिये। आइये हम आपको वहाँ छोड़ देते हैं जहाँ से रावतपुर की ऑटो मिलती है।"- रिक्शावाला नीचे उतरकर बोला
।
"लेकिन मेरे पास पैसे नहींं हैं।"- मीरा लज्जावश बोली।
"कोई बात नहींं बहनजी। हम पैसा नहींं लेंगे।आखिर मानवता भी कौनो चीज होती है।"
- इतना कहकर उस भले मानस ने मीरा को रिक्शे पर बैठाया और दोनों पैरो से रिक्शा खींचते हुए ऑटो स्टैंड पर ले जाकर छोड़ दिया।
मीरा ने उसे धन्यवाद दिया और दोनों बच्चों समेत ऑटो में बैठ गयी।
कुछ देर बाद मीरा मधुर के कान में फुसफुसा कर बोली-
"बेटा हम ऑटो में बैठ तो गये लेकिन उसका किराया क्या देंगे।"
" मम्मी अंकल को सेब दे देंगे। उनके किराये से तो महंगे ही हैं।"- मधुर जोर से बोला।
सामने बैठे एक मुस्लिम सज्जन उनकी बातें सुन रहे थे। उन्होंने मीरा से मसला पूछा तो मीरा ने सारा किस्सा उन्हें बयान कर दिया। वो मधुर को १० रुपये देते हुए बोले-
" ये लो बेटा, यहाँ से सात रुपये किराये के लगते हैं। ऑटो वाले अंकल को दे देना। तुम्हें अपना सेब देने की कोई जरुरत नहींं है।"
" नहींं अंकल जी! मम्मी कहती हैं की हमें दूसरों से कोई चीज नहींं लेनी चाहिये।"- मधुर मासूमियत से बोला।
" ले लो बेटा और याद रखना मुसीबत में यदि कोई मदद करे तो उसे स्वीकार करना चाहिये। ये १० रूपए मैं तुम्हें उधार दे रहा हूँ। जब भी तुम किसी को भी मुसीबत में देखना तो उसे ये पैसे दे देना। मेरा उधार ख़तम हो जायेगा।"- वो सज्जन मुस्कुराकर बोले।
मधुर ने मीरा की ओर देखा तो उसने हाँ में सिर हिलाया।
मधुर ने पैसे पकड़कर उन सज्जन को धन्यवाद दिया। इतने में उन सज्जन का स्टॉप आ गया और वो ऑटो से उतर गये। मीरा ने रावतपुर पहुँचकर चैन की साँस ली औरमन ही मन भगवान और उन दोनों सज्जनों को धन्यवाद देने लगीl
मीरा को आज तीन व्यक्ति मिले थे। पहला वो ऑटो वाला जिसने मीरा की परेशानी जाने बिना उसके पैसे ले लिए। दूसरा रिक्शेवाला जिसने बिना पैसों के मीरा को ऑटो स्टैंड पहुँचाया और तीसरे वो मुस्लिम सज्जन जिन्होंने न सिर्फ उनकी मदद की बल्कि मधुर को जीवन का एक पाठ भी सिखा दिया।
समाज में अलग-अलग मानसिकता के लोग होते हैं।कुछ लोगों को दूसरों से कोई मतलब नहींं होता,उन्हें बस अपना फायदा दिखता है लेकिन कुछ लोग दूसरो के दुःख को अपना दुःख समझते हैं।चिंता की घड़ी में ऐसे मनुष्यों द्वारा की गयी मदद और सीख हमें जीवन में एक अच्छा आदमी बनने में सहायता करती है और हमें ये एहसास दिलाती है कि समाज से इंसानियत कभी नहीं मिट सकती।