बुरा मत सोचो
बुरा मत सोचो
आज से कुछ माह पहले एक दिन यूँ ही टाइमपास के लिए एक न्यूज़ चैनल पर लाइव शो देख रहा था। उस शो में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर गरमागरम बहस चल रही थी। न्यूज़ एंकर के एक ओर दो साधू बैठे थे जिन्होंने तिलक लगा रखा था और भगवा वेश धारण कर रखा था तो दूसरी ओर दो मौलाना बैठे थे जिन्होंने सफ़ेद कुरता-पायजामा और सर पर टोपी लगा रखी थी। वो न्यूज़ एंकर जानबूझ कर ऐसे सवाल पूछ रहा था जिससे बहस गरम हो जाये और देखनेवालों को मसाला मिले।
धीरे-धीरे बहस गरम होती चली गयी और इतनी बढ़ गयी की दोनों पक्ष के लोग एक दूसरे के धर्म पर, उनके धर्म-ग्रंथो पर बुरा-भला कहने लगे।
अनायास ही मुझे अपनी तीसरी कक्षा की किताब में पढ़ी गांधीजी के तीन बंदरों में से एक की सीख याद आ गयी-
" बुरा मत देखो।"
मुझे अपना टीवी बंद करते देर न लगी।
इस घटना कुछ दिन बाद ही देश के एक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों के दो गुटों में मतभेद हो गया। आपसी द्वेष के चलते ये मतभेद कब मनभेद में परिवर्तित होकर देशव्यापी हो गया पता ही नहीं चला।
मेरे कुछ सोशल मीडिया दोस्तों ने एक पक्ष की विचारधारा के प्रचार में दूसरे को गालियाँ बकीं तो कुछ के दूसरे से प्रभावित होकर पहले को।
दिन-ब-दिन अपशब्दों की संख्या बढती जा रही थी और भाषा का स्तर भी निम्नतम होता जा रहा था। देखते ही देखते ये मुद्दा भी धार्मिक परिपेक्ष से देखा जाने लगा।
मुझे न चाहते हुए भी इन सबसे गुज़ारना पड़ रहा था। मेरा दोष बस इतना था की मेरे कुछ-कुछ दोस्त दोनों पक्षों में थे।
एक दिन ऐसे ही मेरे दो दोस्त एक सोशल मीडिया पर आपस में सार्वजनिक बहस करने लग गये। दोनों एक दूसरे को अपशब्द कहने लगे। देखते ही देखते बात दोनों के परिवार और धर्म पर होने लगी। मैं हैरान था क्यूंकि हम तीनों ने सारा बचपन एक साथ बिताया है। स्कूल, ट्यूशन सब एक साथ गये हैं।
दोनों में बढ़ता मतभेद देखकर मैं सोच में पढ़ गया।
हम तीनो ने बचपन में वो सबक एक साथ ही तो याद किया था।
वही, गाँधीजी के तीन बंदरों वाला-
"बुरा मत देखो", "बुरा मत कहो", "बुरा मत सुनो"
आज उन दोनों को ये सबक ज़रा भी याद नहीं। याद होगा भी तो उसका कोई लाभ दिख नहीं रहा। क्यूंकि वो दोनों तो सबके सामने एक दुसरे को बुरा बोल भी रहे थे, प्रत्युत्तर में बुरा सुन भी रहे थे और मुझ जैसे कई लोग बुरा होते देख रहे थे।
ऐसे में मुझे गाँधीजी के चौथे बन्दर का ख्याल आता है जिसके बारे में वो शायद दुनिया को बताना भूल गये।
उस बन्दर ने दोनों हाथों से अपने सर को दबा रखा है जो संकेत करता है -
"बुरा मत सोचो"
हमें शायद इस बात का एहसास नहीं होता लेकिन हमारी एक दूसरे के लिये घ्रणित सोच ही हमें एक दूसरे के प्रति उकसाती है जिससे हम न चाहते हुए भी आपस में गाली-गलौज करते हैं।
आज हमें उस चौथे बन्दर की अति आवश्यकता है। उसको स्मरण कर यदि हम अपनी मनोवृत्ति को शुद्ध कर लें तो शायद हमारा देश विकासशील की श्रेणी से उठकर विकसित देशों की श्रेणी में आ जायेगा।