रूम नंबर-१०
रूम नंबर-१०


कॉलेज का पहला दिन बहुत थकावट भरा रहा। लेकिन शाम सुकून की रही क्यूँकी और छात्रों के इतर मुझे हॉस्टल मिल गया था। सुबह एडमिनिस्ट्रेशन से सारे कागजातों की जाँच कराके वार्डन के पास गया तो उन्होंने चाबी देकर कहा-
"जाओ जाकर मनपसंद कमरा चुन लो। ऐसा मौका बहुत कम लोगो को मिलता है। तुम पहले हो इसलिए तुम्हें ये मौका मिल रहा है।"
मैं ख़ुशी-ख़ुशी सभी कमरों का मुआयना करने लगा। पहले के लड़कों ने कमरों का सत्यानाश कर रखा था। किसी कमरे का पंखा ख़राब था, किसी की दीवारों के प्लास्टर उखड़े थे तो किसी की अलमारी में कुण्डी नहीं थी। बल्ब तो किसी में नहीं था। पर एक कमरा मिला मुझे जहाँ सब चकाचक था। वो था रूम नंबर-१०, मुझे एक बार में ही पसंद आ गया। मैं उछलता हुआ वार्डन सर के पास आया "हाँ भाई! देख लिये सारे कमरे?"
"हाँ सर"
"पसंद आया कोई?"
"जी सर! रूम नंबर-१०"
"तो लो चाबी, जाओ ऐश करो।"
चाबी लेकर मैं मामा के घर चला गया, जहाँ मैं रुका था।
अगले दिन मामा के लड़के को लेकर सारा सामान कॉलेज में शिफ्ट कर दिया। कॉलेज शुरू हो गया और दिन गुजरने लगे। शाम को हम लोग मनोरंजन के लिए बैडमिन्टन खेलते थे।
एक शाम बैडमिन्टन खेलते समय चिड़िया मेरे कमरे के छज्जे पर चली गयी। मैं चिड़िया लेने गया तो खिड़की में लगे पर्दे के हवा से थोड़ा हटने पर मुझे अपने कमरे में कुछ हिलता दिखा। मैंने झाँक कर देखा तो मेरे होश उड़ गये। मेरे कमरे में कोई लड़का फाँसी पर झूलता दिख रहा था। वो अपनी जान के लिये छटपटा रहा था। मैं हड़बड़ाकर पीछे हटा और एक पत्थर से लड़कर गिर पड़ा। मेरे पूरे बदन में कंपकंपी दौड़ रही थी। दोस्तों ने मुझे उठाते हुआ पूछा "क्या हुआ निखिल?"
"यार मेरे कमरे में कोई फाँसी पर झूल रहा है।"
"अबे पगला गये हो क्या? चलो देखते हैं।"
सब भागकर मेरे कमरे में गये। बत्ती जलाने पर वहाँ कोई नहीं मिला। सबने कहा की मुझे भ्रम हो गया और मुझे भी यही लगा।
खैर, बात आयी-गयी हो गयी।
इधर कॉलेज में पढ़ाई का दबाव बढ़ता जा रहा था। सबको बस टॉप करना था। जहाँ से मैं आया था वहाँ तो बस ज्ञान को ही प्राथमिकता दी जाती थी। मैंने यहाँ भी वही समीकरण अपनाया और हमेशा अव्वल आता था। एक रात करीब २ बजे कमरे में सोते हुए मुझे लगा जैसे कोई मुझे हिलाकर उठा रहा है। मैं उठा तो वहाँ कोई नहीं था। मेरे लैपटॉप में गाना बज रहा था।
अब इसे मेरी आदत कहिये या मजबूरी मुझे गाना सुने बिना नींद नहीं आती थी और इसी क्रम में मैं लैपटॉप खुला छोड़कर ही सो जाता था।
खैर मैंने लैपटॉप बंद किया और सो गया। १५ मिनट बाद मुझे फिर वही अनुभव हुआ जैसे मुझे कोई जगाना चाहता हो। मैं उठा तो हैरान रह गया।
लैपटॉप फिर खुला पड़ा था और उसमे गाने की जगह एक अजीब सी दोहरी आवाज़ आ रही थी "मुझे बचा लो! मैं मरना नहीं चाहता। प्लीज मुझे नीचे उतार लो।"
मैं लैपटॉप बंद करके जैसे ही पीछे मुड़ा मेरे पीछे वही लड़का रस्सी पर छत से लटका छटपटा रहा था मैं बहुत डर गया। मेरे शरीर का हर एक रोंया तन गया। कान गर्म हो गये। चेहरा सफ़ेद पड़ने लगा हिम्मत करके मैं बाहर बगल वाले कमरे की ओर भागा। मेरे जोर-जोर से दरवाज़ा पीटने पर भी मेरा दोस्त बाहर नहीं आया। अगल बगल के लड़के मेरी आवाज़ सुनकर बाहर निकल आये। मैंने उन्हें सारी बात बतायी तो सब मेरे कमरे में गये। वहाँ कोई भी नहीं था। लेकिन उससे बड़ा आश्चर्य ये था की मेरे बगल वाले दोस्त ने अभी तक कमरा नहीं खोला था। की-होल से झाँकने पर भी कुछ नहीं दिख रहा था। फ़ोन के टॉर्च की रौशनी में झाँकने पर देखा तो चक्कर आ गया। मेरा दोस्त उसी लड़के की तरह फाँसी पर लटका तड़प रहा था,आनन-फानन में लड़कों ने दरवाज़ा तोड़कर उसे नीचे उतारा और कॉलेज के हेल्थ-सेंटर ले गये। डॉक्टरों ने उसे बचा लिया। अगली सुबह हम सब उससे मिलने पहुँचे तो उसने बताया की उसकी सेमेस्टर-बैक लगी थी जिससे वो बहुत डिप्रेशन में था। इसी के चलते उसने ऐसा कदम उठाया।
कुछ दिनों बाद सुबह मैं बाथरूम में ब्रश कर रहा था। मुझे शीशे में अपने पीछे वही लड़का खड़ा दिखाई दिया। मैंने पीछे पलट कर देखा तो सच में वही खड़ा था। सफ़ेद पड़ा चेहरा, बिल्कुल मरियल अवस्था में वो थोड़ा झुक कर खड़ा था "यार मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? क्यूँ मेरे पीछे पड़े हो।"दो साल पहले मैं तुम्हारे कमरे में रहता था। किसी से मतलब नहीं था मुझे। अपने परिवार का अकेला लड़का मैं यहाँ बहुत उम्मीदें लेकर पढ़ने आया था लेकिन यहाँ की शिक्षा प्रणाली बच्चों पर बहुत दबाव बनाती है। मैं भी तुम्हारे जैसे हमेशा अव्वल आता था। कैंपस सिलेक्शन में सिर्फ एक मिनट देर से पहुँचने पर मुझे भगा दिया गया। मैं बहुत गिड़गिड़ाया लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी। मेरे पिताजी ने सबकुछ बेचकर मुझे पढ़ाया था। ऐसे में बिना नौकरी के घर जाने से तो अच्छा मैंने खुद खुशी करना समझा।" "तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था भाई। अब परिवार का क्या होगा।"
"अब पछताने से क्या होगा। अब तो बस मैं और किसी को ऐसा करने से रोकता हूँ। उस रात तुम्हें इसीलिए जगाया था ताकि तुम उस लड़के को बचा सको।" "तो तुम्हें मुक्ति दिलाने का कोई रास्ता नहीं है?"
"मैं मुक्त हूँ, बस जब यहाँ की व्यवस्था से तंग आकर कोई गलत कदम उठाता है तो उसे रोकने चला आता हूँ।"
अब मुझे उससे डर नही लग रहा था बल्कि रूम नंबर -१० के उस भूत से हमदर्दी हो रही थी....