Viral Rawat

Tragedy

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झूठा नारीवाद

झूठा नारीवाद

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"रजत! एक मिनट! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

- ख़ुशी ने दोस्तों के साथ खड़े रजत को टोका।

रजत उसके पीछे चल दिया।


"हाँ ख़ुशी! बोलो क्या बात है?"

"रजत मैं जब ऑफिस में नयी आयी थी तो तुमने मेरी काफी हेल्प की और तुम्हारी वजह से ही इस अंजान शहर में मैं टिक पायी इसलिये थैंक यू"

"बस इतनी सी बात! अरे कोई नहीं यार ये सब तो दोस्ती में चलता है वैसे इसका बदला तुम कॉफ़ी पिलाकर चुका सकती हो।"

"बहुत अच्छा! आज शाम को ऑफिस के बाद चलते हैं फिर।"- इतना कहकर ख़ुशी अपने केबिन में चली गयी।


शाम को काम ख़त्म करके रजत और ख़ुशी पास के ही एक कैफ़े में कॉफ़ी के लिये गये।

थोड़ी देर इधर-उधर की बात करने के बाद ख़ुशी टेबल पर झुकी और मादक नज़रों से रजत की तरफ देखकर बोली-

"रजत मैं काफ़ी दिनों से तुम्हें पसंद करती हूँ। तुम्हारी अपने काम के प्रति निष्ठा और सादा व्यवहार देखकर मुझे कब तुमसे प्यार हो गया पता ही नहीं चला। आई लव यू रजत! मैं तुमसे बेइन्तेहाँ मोहब्बत करती हूँ।"

ये सब सुनकर रजत अचंभित था। उसने हमेशा ख़ुशी को एक दोस्त की नज़र से ही देखा था।

"तुम बहुत क्यूट हो ख़ुशी! आई रियली लाइक यू लेकिन मेरी और तुम्हारी उम्र में बहुत अंतर है। मैंने हमेशा तुम्हें अपनी छोटी बहन जैसे माना है। आई एम सॉरी मैं तुम्हारा ये प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकता।"

- कहकर रजत ने बिल के पैसे मेज पर रखे और हेलमेट उठाकर चला गया।


ख़ुशी को इस बात का बहुत बुरा लगा। वो अपना शहर और पुराना बॉयफ्रेंड दोनों छोड़कर नये शहर आयी थी और उसे नये सहारे की जरुरत थी लेकिन रजत ने आज उसके इरादों को धूमिल कर दिया था। ख़ुशी को ये अपना अपमान लगा। रजत ने अगले दिन ख़ुशी से सॉरी बोला और सब फिर से साधारण हो गया। रजत ऑफिस की ही एक लड़की तनु को बहुत पसंद करता था और ये बात ऑफिस में सबको पता थी लेकिन वो बहुत शर्मीला था। तनु से बात करना तो दूर उसके सामने आते ही रजत भाग खड़ा होता था, कारण, तनु थोड़ी गुस्सैल किस्म की लड़की थी। वो आये-गए सबको हड़का देती थी। यहाँ तक की कंपनी के मैनेजर तक को भी नहीं छोड़ती थी।

एक दिन तनु का लैपटॉप हैंग कर गया तो उसने रजत की मदद माँगी। रजत की तो मानो मुराद पूरी हो गयी। उसने झट से तनु का लैपटॉप बना दिया लेकिन तनु की तबियत ठीक न होने के कारण वो मध्यावकाश में ही घर चली गयी थी।

उसी दिन शाम को ४ बजे तनु ने रजत को फ़ोन करके बोला-

"रजत मुझे लैपटॉप में कुछ ज़रूरी काम है तो क्या तुम ऑफिस से घर जाते समय मुझे मेरे घर पर लैपटॉप दे जाओगे?"

रजत को आज का दिन अपनी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत दिन लग रहा था। उसे हाँ कहते देर न लगी।


शाम को रजत ऑफिस के बाद तनु के घर पहुँचा। तनु ने उसे अन्दर बुलाकर उसकी आवभगत की।

बातों-बातों में तनु रजत से बोली-

"रजत तुम मुझसे इतना कटे-कटे से क्यूँ रहते हो? मैंने सुना है की तुम मुझे पसंद भी करते हो फिर बोल क्यूँ नहीं देते।"

रजत का मुँह खुला रह गया। उसे तनु के मुँह से इन शब्दों की उम्मीद नहीं थी।

खुद को सँभालते हुए रजत बोला-

"न......नहीं तो! किसने बोला, ऐसा कु....कुछ नहीं है।"

"ज्यादा बनो मत! मुझे सब पता है। सुबह मेरे घर से ऑफिस तक मुझे फॉलो करते हो। अपने केबिन से उचक-उचक कर मेरे केबिन में झांकते हो। लंच में हमेशा मेरे सामने वाली टेबल पर बैठते हो। तुम्हें क्या लगता है मुझे कुछ दिखायी नहीं देता।"

अब रजत को लगा की उसकी पोल खुल चुकी है तो वह मजबूत दिल करके बोला-

"हाँ तनु! मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ। लेकिन मुझे तुम्हारे गुस्से से बहुत दर लगता है इसलिए आज तक तुमसे कुछ बोल नहीं पाया।"

"तुम उल्लू हो! मैं भी तुम्हें पसंद करती हूँ पागल। तुम जैसे अच्छे, नेक, सबकी मदद करने वाले इंसान को कौन पसंद नहीं करेगा।"

-इतना कहकर तनु ने रजत के गाल पर एक थपकी दी और दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े।


अब रजत और तनु रोज साथ में ऑफिस आने-जाने लगे। उनके प्यार के चर्चे हर जगह फैल गये। ख़ुशी भी इन सबसे अछूती नहीं थी। वो जब उन दोनों को साथ देखती तो जल-भुन उठती थी। ख़ुशी ने वो कंपनी छोड़ दी।

इसी तरह एक साल बीत गया। तनु का ट्रान्सफर उसके होमटाउन में हो गया। एक दिन रजत ने तनु से कहा-

"तनु! हम दोनों अब बहुत अच्छी तरह सेट हैं। हमारा करियर भी अच्छा चल रहा है। मुझे लगता है अब हमें शादी कर लेनी चाहिये।"

"शादी! अभी नहीं रजत ! तुम तो जानते हो अभी हमें साथ में एक साल ही हुआ था। मुझे लगता है हमें कुछ समय और इंतज़ार करना चाहिये।"- कहकर तनु ने बात टाल दी।

इसी तरह जब भी रजत शादी की बात करता तनु टाल देती। अब इस पर दोनों में खटपट भी शुरू हो गयी।

देखते ही देखते दोनों में बड़ी लड़ाईयाँ होने लगीं। तनु एक-एक हफ्ते रजत की कॉल नहीं उठाती थी। रजत बहुत परेशान रहने लगा। उसका किसी काम में मन नहीं लगता था। इसी कारण ऑफिस में उसकी पदावनति हो गयी।


एक दिन इन्हीं लड़ाइयों से तंग आकर रजत ने तनु को फ़ोन करके उसके होमटाउन आने के लिये पूछा तो तनु झुंझलाकर बोली-

"तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है रजत? न चैन से जी रहे हो न जीने दे रहे हो। खुद तो कोई काम करना नहीं है। मेरे पीछे पड़े रहते हो। तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से मैंने वो ऑफिस छोड़ा। लेकिन तुम तो चिपक गये हो यार। जाओ! अपने काम पर फोकस करो। लूज़र कहीं के। आज से हमारा ब्रेकअप! दोबारा मुझे कॉल मत करना।"

रजत को तो मानो लकवा मार गया। कल तक जो उसका सबकुछ था वो आज अचानक उससे इतना दूर कैसे जा सकता था। रजत को इस बात का बहुत बड़ा सदमा लगा। उसने कई बार तनु को फ़ोन किया लेकिन तनु ने वो नंबर ही बंद कर दिया था। साथ ही उसने रजत का मेल और अन्य सोशल मीडिया अकाउन्ट्स भी ब्लॉक कर दिये थे।


रजत अब खोया-खोया रहने लगा। उसने ऑफिस जाना बंद कर दिया। खुद को घर में क़ैद कर लिया। एक दिन अचानक रजत का फ़ोन बजा। उस तरफ की आवाज़ कुछ जानी-पहचानी लगी-

"हेलो रजत! क्या हुआ बेटा! रोना आ रहा है? एक धोखेबाज़ के साथ हमेशा धोखा ही होता है।"

"कौन बोल रहा है?"

"मुझे नहीं पहचाना? मैं ख़ुशी बोल रहीं हूँ। वही ख़ुशी जिसका प्रेम-प्रस्ताव एक दिन तुमने ठुकरा दिया था। मेरे कहने पर ही तनु ने तुमसे प्यार का नाटक किया था और अब मेरे ही कहने पर उसने तुम्हें छोड़ दिया। अब तुम्हें पता चलेगा की जिससे तुम जान से भी ज्यादा प्यार करो और वो एक झटके में तुम्हें छोड़कर चला जाये तो कैसा लगता है? अब जलो उस विरहाग्नि में जिसमे किसी दिन तुम मुझे जलता छोड़ आये थे। उस दिन मैं अकेली थी आज तुम अकेले हो और ऐसे ही तड़पोगे तुम।"- इतना कहकर ख़ुशी ने फ़ोन रख दिया।


रजत मानो पागल सा हो गया। उससे ये परिस्थितियाँ सहन न हुईं और उसने खुदखुशी कर ली।

पुलिस द्वारा कॉल रिकार्ड्स में ख़ुशी और तनु दोनों पकड़े गये। लेकिन उन्हें ये कहकर छोड़ दिया गया कि वो रजत को सिर्फ उसकी ग़लती का एहसास कराना चाहती थीं। उनका इरादा रजत को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का नहीं था। उन्हें तथाकथित नारीवाद को बढ़ावा देने वाली महिलाओं और संस्थाओं का पूरा समर्थन मिलाl


आज के समय में ऐसे कई मामले हैं जिनमें एक निर्दोष पुरुष झूठे नारीवाद का शिकार होता है। हम उन बड़े-बड़े लोगों और उनकी संस्थाओं को इसलिये समर्थन देते हैं जिससे सामाजिक प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को न्याय और सम्मान दिलाया जा सके लेकिन वो लोग पुरुषों को प्रताड़ित करने वाली लड़कियों और महिलाओं को झूठे नारीवाद का हवाला देकर बचा लेते हैं और फिर यही लोग कहते फिरते हैं की समाज में महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं मिलता है।

इस तरह के मामलों में दोष किसका है?, उन लड़कियों का या उन लोगो का जो झूठे नारीवाद का हवाला देकर ऐसे लोगो को सजा से बचाते हैं?


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