सफर
सफर
सफर, इन तीन अक्षरों के शब्द में बहुत गहरियाँ छुपी हैं। सफर तो हम सब आय दिन करते हैं पर कभी ये नही सोंचते की क्या रास्ते का सफर और जीवन के सफर में कोई अंतर है या दोनों एक ही है। गौर करें अगर तो दोनों ही सफर की उलझने, भीड़ और व्यक्तित्व समान ही हैं। कुछ खास फर्क नही दोनों में। दोनों हीं सफर में हम अपनी मंज़िल के तरफ बढ़ते चले जाते हैं सारी बाधाओं से भिड़ते हुए। पर कभी कभी वो बाधाएँ हमे झंझोड़ के रख देती हैं।
ज़िन्दगी के सफर में ना जाने कितने तरह के लोगों से हमारी मुलाक़ात होती है, कुछ लोगों से दुश्मनी तो कुछ लोगों से एक अटूट रिश्ता बन जाता है और उन्ही में से कोई एक जीवनसाथी के रूप में ज़िन्दगी के आख़िरी पड़ाव तक साथ रहता है। कुछ लोग मुखौटे के पीछे अपना वास्तविक पहचान छिपाये रहते हैं तो कुछ अपने कटु बयानों से हमारी ज़िंदगी मे कड़वाहट घोलते रहते हैं। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो आपकी ज़िंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए हमेशा आपके साथ खड़े रहते हैं बिना किसी धन लाभ के मोह के तो कुछ आपके साथ बस इसलिए रहते हैं ताकि आपसे उनको लाभ हो।
लोगों के अलावा ज़िन्दगी के सफर में बहुत सारी बाधाएँ भी मिलती हैं। कुछ छोटी छोटी रुकावटें होती हैं तो कुछ बाधाएँ एक अडिग चट्टान सा हमारे सामने प्रस्तुत रहता है। अब ये हमारे ऊपर है कि हमे माँझी सा बन के उस चट्टान को काटते हुए उसका गुरुर तोड़ उसको शिकस्त दिखानी है या फिर एक कायर की तरह उसके सामने घुटने टेक शिकस्त स्वीकार कर लेनी है।
रास्ते का सफर भी इससे कुछ अलग नही होता है। उसमें भी वैसे ही बहुत सारी बाधाएँ, अनचाहे लोगों की भीड़, और बहुत सारी कश्मकश रहती है।
पर दोनों सफर में एक अंतर है, रस्ते के सफर में हमें मंज़िल का पता होता है, पर कभी कभी ज़िन्दगी के सफर में हम समझ नही पाते कि हमारी मंज़िल क्या है और कहाँ है। रस्ते के सफर में हम अपनी मन्ज़िल पर पहुँच ही जाते हैं पर ज़िन्दगी का सफर थोड़ा जटिल जरूर होता है, जिसमे मंज़िल की तलाश में कभी कभी हम खुद को खो देते हैं जिसके कारण ज़िन्दगी का सफर बीच राह में हीं समाप्त होने को बाध्य हो जाता है।