तुम्हारी याद
तुम्हारी याद
आज पता नही कितने दिन हो गए, तुमसे ठीक से बात हुए। पर फिर भी प्यार वही है जो पहले था। दरअसल सही मायने में देखे तो अगर प्यार सच्चा हो और दिल से हो तो दूरियाँ उस प्यार को घटाती नही, बल्कि बढ़ाती हैं।और यही शायद हमारे बीच भी है।
आज ये जो भी लिख रहा हूँ, बिना कुछ सोंचे ही, अनजान बनकर, कॉलेज के लाइब्रेरी में बैठे बैठे। कलम ख़ुद-ब-ख़ुद चलते ही जा रही है। ऐसा लगता है मानो तुम्हारी याद के एहसास से ये कलम भी जीवित हो उठा है, और मुझसे ज्यादा ये कलम तुमपर लिखने को बेताब है।
आज के इस लेख में ना तुकबन्दी होगी और ना हीं शब्दों का कोई मायाजाल, इस लेख में बस दिल की बातें होंगी, जो बिना कुछ सोंचे ही इस कोरे कागज़ में जान डालते जा रही है। आज ये कोरा कागज़ भी अमर हो जाएगा तुम्हारी यादों के खुशबू से, आज ये कोरा कागज़ भी महसूस करेगा कि जब प्यार अटूट हो तो दूरियाँ भी कुछ खास असर नही डाल पाती हैं रिश्ते पर। दूरियाँ कोशिश तो काफी करता है, पर ये दो दिलो का प्यार और समझ ही होता है जिसके सामने ये बलवान समय और दूरियाँ भी घुटने टेकने को मजबूर हो जाते है।
हाँ, इस बार भी ये समय और दूरी दोनो घुटने टेकेगा, शिकस्त ही मिलेगी इसे इस युद्ध में जिसमे हमारा प्यार उस शिखर पर होगा जिसे देख ये समय के भी अश्रु निकलेंगे।
हाँ, तुम्हारी बहुत याद आ रही है, तुमसे मिलना चाहता हुँ, तुम्हें आगोश में ले कर इस चलते वक़्त को रोक देना चाहता हूँ।
पर आशा है......
हम मिलेंगे भी,
समय का घमंड टूटेगा भी, बिल्कुल काँच की तरह जिसके हर टुकड़े में परछाई रहेगी, उसके नापाक इरादों की।दूरियों को आँख दिखायेंगे भी, बिल्कुल उस महाशक्ति दुर्गा की तरह।
हाँ, हम मिलेंगे भी।