क्या और क्यों ?
क्या और क्यों ?
रात के 1 बज रहे हैं, और बस अचानक से अपने फ़ोन का नोटपैड खोल कर ये लिखना शुरू कर दिया हूं, पता नही क्यों....? मैं ये क्यों लिख रहा, नहीं जानता। मेरी ये लेख किस दिशा में जाएगी, ये भी नहीं पता। मैं इस लेख में क्या लिखूँगा, ये भी नहीं पता। बस शुरू कर दिया हूँ, बिना कुछ सोचे, बिना कुछ समझे किसी अनजान से दिशा में, चल पड़ा हूँ, उस दिशा में, अपने सवालों के जवाब खोजने।
मन बहुत घबराया सा है, और बेचैन भी। बहुत सारी बातें विचलित कर रही हैं अंतर्मन को। मन में बहुत सारी बातें हैं, पर अजीब ये है कि मैं भी नहीं जानता कि वो कौन सी बातें हैं जो मन में इन क़दर बवंडर पैदा कर रही हैं। एक अंतर्मुखी व्यक्ति होने का सबसे बुरा बात शायद यही है, हम ख़ुद ही नहीं समझ पाते हैं कभी कभी की हम इस समय से परेशान हैं, हालात से, या फिर खुद से। और ये कोई छोटी बात नहीं होती, ये एक मायाजाल है, जो व्यक्ति को गन्ने की तरह निचोड़ कर छोड़ देता है। पर ऐसे व्यक्तित्व वाले लोगों की एक ख़ासियत जरूर होती है, वो अपने रिश्ते को बचाने के लिए कितना भी गिर सकते हैं।
रिश्ता, कितना बेहतरीन शब्द है न, और उतना ही जटिल, उसे संभालना। एक छोटी सी बात रिश्ते में कड़वाहट लाने के लिए परिपूर्ण है। और जब एक अंतर्मुखी व्यक्ति ऐसे किसी रिश्ते में आता है, तो वो उस रिश्ते को पूरे तरह से सुचालु रखने की पूरी कोशिश करता है। किसी भी रिश्ते में विश्वास बहुत अहम किरदार निभाती है, और निभाये भी क्यों न, इतनी कीमती जो है।
रिश्ता और अंतर्मुखी व्यक्ति, ये बड़ा विस्मयकारी मेल है। पर ऐसे लोगों की परेशानी है, की वो बहुत सी बातें अपने अंदर ही दफन कर के रख लेते हैं, ताकि उनका रिश्ता सही सलामत चले, पर कभी कभी एक पल ऐसा भी आता है जब वही दफन की हुई बातें, इंसान का रक्त चूसने लगती हैं।
ये सब जो भी लिखा मैंने, बिना कुछ सोचे ही, वो क्या है न् कुछ बातें हम नहीं लिखते, हमारी अन्तरात्मा लिखती है, क्योंकि वो ज्यादा बेहतर जानती है न......हमें और हमारे रिश्ते को।
मैं ये भी नहीं जानता ये किसी को पढ़ने के लिए भी दूँगा या नहीं, क्योंकि पता नहीं मैं कौन सी नामालूम सी उलझन में पड़ा हूँ। अगर आप ये पढ़ रहे हैं, और समझ पा रहे हैं, तो समझाएगा जरूर।