याद
याद
रात के 2:30 बज रहे हैं। समय काफी हो गई है पर ख़यालों को घड़ी देखना नही आता। दिमाग में बहुत खलबली सी मची है और ना जाने क्यों मन बहुत उदास लग रहा है। डूबते हुए सूरज के बाद जो खामोशी होती है न....कुछ वैसा ही। तुम बहुत याद आ रही हो छुटकी। इतने दिन में ही तुम्हे देखने के लिए मन तड़प गया है मेरा। तुम्हारा ही ख्याल आया रहा है। तुम्हारे पास आ कर तुम्हें पकड़ कर अपने पास रख लेने का मन कर रहा है।
हो सकता है तुम भी सोंच रही होगी कि ये इंसान पागल हो गया है......या फिर शायद तुम थोड़ा Irritate भी हो जाओ, पर मेरे अंदर जो चल रहा है वो मैं कुछ भी कर के तुम्हे नही समझा सकता। ऐसा लग रहा है कोई बहुत ज़रूरी काम छूट रहा है मुझसे।
अंदर अंदर इतना कुछ चल रहा है फिर भी.....
मैं क्या बोलूँ....... क्या लिखूँ....... कुछ लिखा भी नहीं जा रहा। तुम बहुत याद आ रही हो।
मैं नही लिख पाउँगा !

