तुम क्या हो
तुम क्या हो
"तुम क्या हो...? है न काफी टेढ़ा सवाल।सबकी नज़र में एक दूसरे की कोई न कोई छवि जरूर होती है। तुम्हारे नज़र में भी मेरी कोई छवि होगी। आज सोंचा की मेरे अन्तर्मन में तुम्हारी जो छवि है उसी शब्दों के रुप में कागज़ पर चित्रांकन किया जाये। हाँ, हो सकता है तुम्हे ये सब झूठ-फरेब लगे....पर इन शब्दों की गहराई में जा कर एक मर्तबा मंथन करना.....मेरा दावा है काफी अच्छा लगेगा तुम्हे।
अक्सर खामोश परे चेहरे के पीछे बहुत शोर छुपा होता है....और पता नही कैसे तुम मेरी वो खामोशी भी पढ़ लेती हो। शायद इसलिए ही तुम इतने करीब हो मेरे। मेरे बुरे पर तुम बिना मुझे जज किये समझाती भी हो। मेरी बहुत सी ख़्वाहिशें थी कि कोई तो लड़की हो जो मुझे भी उतना प्यार करे जितना मैं करता हूँ, जो मुझे भी समझे, जो मुझे कोई हवसी ना समझे, मुझसे दिल से प्यार करे, अच्छे में प्यार से आलिंगन दे तो बुरे में डाट भी लगाए......और तुमने तो इन सारी बातों को एक ही झटके में पूरा कर दिया। और भी बहुत कुछ बातें हैं पर....वो क्या है न सारी बातें लिखी भी नही जा सकती नही तो उन बातों की एहमियत कुछ खास नही रह जाती। कुछ बातें रहने देना चाहिए। पर फिर भी कुछ शब्दों के सहारे मैं ये बताने की कोशशि जरूर कर सकता हूँ कि तुम क्या हो मेरे लिए।
चाँदनी खामोश रात की उन मीठी हवाओं सी हो तुम जो मुझे स्पर्श कर के ये कहती हो की तुम्हारा होना एक सपना नही बल्कि सपने जैसा हक़ीक़त है। तुम्हारा होना मुझे पूरा करता है। किसी लंबे सफर के बाद ली हुई उस चैन की नींद सी हो तुम जिसके बाद ज़िन्दगी में कुछ अधूरा सा नही लगता। किसी विनाश के बाद के निर्माण में ली हुई उस सुकून सी हो तुम जो शायद मेरे लिए हमेशा अकल्पनिय था।
मैं कोई डूबता हुआ कश्ती हूँ.....तो तुम वो पतवार हो जो मुझे किनारे ला सकता है।
मैं कोई साज़ हूँ।....तो तुम मेरा संगीत हो।
मैं बस कोई गणित का लकीर हूँ.....तो तुम हाथों की तक़दीर हो।
अब मैं और क्या लिखूँ......! बस इतना ही बोलूँगा की...
मेरी ज़िंदगी मे आने के लिए तहे दिल से तुम्हारा शुक्रिया....क्योंकि इससे ज्यादा कोई अल्फ़ाज़ नही बचे हैं मेरे पास तुम्हारे ख़िदमत में पेश करने के लिए।
और हाँ..... ये बस यूँही बोलने के लिए नही है......बल्कि मेरी सच्चाई है जो तुमसे कभी नही छुप सकती है।