Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Action Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Action Inspirational

सफलता का मूलमंत्र-नियोजित काम

सफलता का मूलमंत्र-नियोजित काम

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आज पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत जीवन में सफलता-असफलता के निर्धारक कारण-निर्धारण और नियोजन के लिए इंटरनेट के माध्यम से होने वाली आभासी बैठक में विचारों का आदान-प्रदान विद्यार्थियों के माध्यम से ही होना था। जिसमें कक्षा के चार विद्यार्थियों रीतू,ओम प्रकाश, आकांक्षा और प्रीति ने भाग लेना था।सभी बच्चे निर्धारित समय पर आनलाइन बैठक में शामिल हो गए।

मैंने सभी बच्चों को आशीर्वाद देते हुए आज अपने अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया मैंने कहा -" तुम सब अपने विचार रखने में सक्षम हो। इससे तुम सबमें नेतृत्व का विकास होगा। सोचने विचारने की शक्ति बढ़ेगी और समाज के विभिन्न मुद्दों को एक विशिष्ट दृष्टिकोण के साथ तुम देख सकोगे। तुम्हारा अपना व्यक्तित्व भी निखरेगा और इसका लाभ दूसरों को भी मिलेगा।चर्चा की शुरुआत के मैं रीतू को आमंत्रित करता हूं।"

रीतू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-" जीवन में सदैव शान्त चित्त रहकर, धैर्यपूर्वक , प्रयासरत रहना चाहिए। किसी भी प्रकार आलस्य , अति विश्वास , असफलता के भय के वशीभूत होकर प्रयास में कोई शिथिलता नहीं आने देना चाहिए। परिणाम हमारी आशाओं के अनुरूप या विपरीत भी आते हैं तो भी न तो अति उत्साहित हों और न ही निराशा या अवसाद से ग्रस्त हो जाएं। उचित अवसर की प्रतीक्षा करें। इसके साथ सदैव सावधान और सतर्क रहें और अवसर मिलते ही बिना किसी चूक के उचित समय पर पूरे प्रयास के साथ नियोजित तरीके से क्रियान्वयन करें। धैर्य का अर्थ हाथ पर हाथ रखकर बैठना नहीं है बल्कि शान्त भाव से कार्यान्वयन और परिणाम को स्वीकार करना है।"

अब आकांक्षा ने अधिकतर लोगों की धारणा को व्यक्त करते हुए इसके अपेक्षित समाधान के साथ अपने विचार रखते हुए कहा-"हर व्यक्ति न्यूनतम श्रम करते हुए अधिकतम प्रतिफल चाहता है। इसके साथ ही वह कम से कम समय में ही निश्चित शत प्रतिशत सफलता की कामना करता है। अक्सर किसी भी कार्य में लगने वाले सीमा का अनुमान लगाकर वह कार्य इस प्रकार इस प्रकार प्रारम्भ करता कि जितना कुल समय लगने वाला है तय सीमा से अधिक समय न देना पड़े पर कभी-कभी कुछ परिस्थितियों के अनुसार अधिक समय लग जाए तो बेचैनी और हड़बड़ी में दुर्घटना होने की संभावना प्रबल हो जाती है।प्रात:काल उठते समय एक बार सुस्ती सबको ही लगती है पर जो सुस्ती को पराजित कर बिस्तर छोड़ देते हैं उन की पूरी दिनचर्या व्यवस्थित रहती है और घर हो या मार्ग, कार्यस्थल पर उनका अपना कार्य हो या सहकर्मियों के साथ उनका आचरण और व्यवहार, परिजनों के उनका संयत -प्रेम पूर्ण व्यवहार सुखद और आनंददायक होता है।"

इसके विपरीत स्थिति का विश्लेषण प्रीति ने अपने शब्दों में इस प्रकार किया-"जिस स्थिति की चर्चा आकांक्षा बहन ने की है इसके विपरीत जो सुस्ती का शिकार हो जाते हैं। विलम्ब से बिस्तर छोड़ना हड़बड़ी और गड़बड़ी का कारण बनता है। घर पर जल्दबाजी में परिजनों के साथ नोकझोंक के साथ दिन की शुरुआत लाल-बत्ती पार करना, निर्धारित गति सीमा से अधिक गति से वाहन भगाना दुर्घटना को आमंत्रण है।यह तनाव कार्यस्थल पर विलम्ब से पहुंचना, सहकर्मियों के साथ बातचीत, आचरण-व्यवहार में परिलक्षित होता है। सवेरे घर पर हुई नोंक-झोंक नाम को घर वापस आने पर पुनः भी प्रारंभ हो सकती है और इस प्रकार पूरा दिन मानसिक अशांति में गुजरता है। घर और कार्यस्थल दोनों जगहों का वातावरण तनाव देता है जिससे मानसिक और शारीरिक रूप से व्यथित होते हैं और विविध व्याधियों का शिकार होते हैं।"

प्रीति के बाद अपनी बारी पर ओमप्रकाश ने अपने विचार रखते हुए बताया-" जीवन में नियमितता, निश्चितता और निश्चिंतता के लिए हम सबको ही अपने पूरे दिन की समय सारिणी तैयार करनी चाहिए ।यह समय सारिणी बड़ी सूझबूझ और नियोजित व्यवस्था के तहत तैयार की जानी चाहिए। इसमें हमारे सभी महत्त्वपूर्ण कार्य समय से पूर्ण होने के साथ-साथ उसमें मनोरंजन , लोगों के साथ वार्तालाप और विश्राम का भी समावेश किया जाना चाहिए। स्वाध्याय का हमारे जीवन में विशिष्ट स्थान होता है।जिस प्रकार हमारे उचित शारीरिक विकास के लिए पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार हमारे मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए उत्कृष्ट कोटि के साहित्य की भी आवश्यकता होती है। साहित्य हमारे मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए पोषण उपलब्ध करवाता है । इसके लिए शर्त यह है कि यह साहित्य उच्च कोटि का होना चाहिए। केवल मन बहलाने या मात्र मनोरंजन का साधन न हो करके यह हमारे अपने व्यक्तित्व के विकास में सहायक हो। श्रेष्ठ लोगों के साथ हमारा संपर्क अर्थात सत्संग भी हमारे व्यक्तित्व विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार साहित्य और सत्संग मिलकर हमारी नैतिक और आध्यात्मिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और जब हमारे व्यक्तित्व का विकास होता है तब हम समाज के लिए अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं।"

चर्चा का समापन रीतू ने अपने इन शब्दों के साथ किया-"साथियों,तभी तो कहा गया है कि अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है जब हम सुधरेंगे तो युग सुधरेगा और रामराज की कल्पना साकार रूप धारण करेगी।हम सबको सदैव सूझ-बूझ से काम करना चाहिए और लोगों के समक्ष अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।


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