सोनबिल में कमल
सोनबिल में कमल
कल ही सोनबिल से लौटा हूँ। सोनबिल की यात्रा का अनुभव अपने आप में अद्भुत है। पहाड़ों से कभी-कभी मन उचट जाता है, ऐसे में एक अनजान स्थान पर जाना, अजनबियों से मिलना एक सुखद अनुभव है। सारी थकान तो पोखर में खिले उस कमल ने मिटा दी। सुबह- सुबह अनेक प्रकार की रंग बिरंगी मछलियों का बाजार आँखों को सुकून पहुँचा रहा था। ऐसा लग रहा था- सोनबिल में दिन की शुरुआत मछलियों के साथ ही होती है। पहाड़ों में तो सुबह की चाय के बिना दिन की शुरुआत अकल्पनीय है। सोनबिल में सुबह की चाय तो नहीं मिली। लेकिन यहाँ की सुबह अपने में एक अजीब खूबसूरती समेटे हुए थी। पक्षियों का कलरव, सुबह की नीरवता, पेड़ से चारों तरफ से घिरे घर, छह महीने पानी और बाकी बचे हुए छह महीने में धन खेती-यही तो है, आर्द्र-भूमि सोनबिल। बेमन से सुबह-सुबह घूमने निकला। कालीबाड़ी के मंदिर से निकलकर उन पोखरों की तरफ बढ़ा और बाँस के सहारे जैसे ही दूसरी और जाना चाहा, किस्मत ने धोखा दिया और असंतुलन के कारण वहीं गिर पड़ा। बाएं हाथ में थोड़ी से मोच आई होगी। जूते कीचड़ से गीले हो गए थे। इसने मेरा दर्द और बढ़ा दिया।
बिडम्बना तो यह थी कि जहां पैर कीचड़ से लथपथ वहाँ मेरी आँखें वहाँ के अद्भुत प्राकृतिक दृश्य को निहार रही थीं। तभी मेरी नज़रे, दूर ताल में खिले कमल की ओर गई। कमल प्राप्त करने के लिए तो ताल में उतरना ही पड़ता है। मैं ताल की ओर बढ़ा जो बरबस मुझे अपनी ओर खींच रही थी। कालीबाड़ी के पास वाले ताल में मछलियों की खेती की जाती है। पता नहीं, ये कमल कहाँ से आ गए? जब मैं ताल के नजदीक पहुँचा, तो पता चला कि इन फूलों को प्राप्त करना कठिन है। लेकिन ये कमल के फूल मुझे बार-बार अपने पास बुला रहे थे। मैंने उस तालाब में उतरने का निश्चय किया, अब जब भींग गया ही हूँ, तो फिर डर कैसा? मैंने एक-दो नहीं, पाँच कमल के फूल जो पूरी तरह से खिले थे, तोड़ कर बाहर निकला। अब तक तो मैं, बासी कमल के फूलों को खरीदने का आदि रहा था। मध्य ताल से मानों हम एक दूसरे का परिचय प्राप्त कर रहे थे।
कमल के फूल, इनकी पंखुड़ियों, रंग, डँटल से और हरे-पत्तों से पूरी तरह से परिचय प्राप्त करने का अनुभव अप्रतिम था। अब हम दोनों एक दूसरे से अपरिचित नहीं रह गए थे। मेरा अंग-प्रत्यंग आह्लादित था। मेरा रोम-रोम ऋणी है-सोनबिल के ताल में पूर्ण एवं अधखिले- खिले कमल के फूलों का। रास्ते में लौटते वक्त मुझे हैलाकंड़ी, करीमगंज, कालीबाड़ी, सोनबिल से ज्यादा कमल के फूल याद आ रहे हैं। वापस लौट जाने का मन कर रहा है। मोच की पीड़ा, लंबी यात्रा का थकान सब कुछ मिट गया है -उन अद्भुत कमल के फूलों के समक्ष !