काश ! सपना होता ये ।
काश ! सपना होता ये ।
अलबत!! सारे लोग फिर से एक साथ। माराफारी, चंचली स्थान, दूँदीबाग, कर्नल मार्केट की धुँधली यादें। काँग्रेस के नेता योगेश प्रसाद योगेश आने वाले हैं। काफी भीड़ जुट गई है। लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। मोटर साइकिल से स्टील गेट के पास ऐड्मिन बिल्डिंग जाकर राम नारायण भाई को बड़ी मुश्किल से मनाया। उन्हें सरूप बनाने के लिए कहा-नेताओं सा। ये सब एक से डेढ़ घंटे में हो गया। रामा भैया आए और चंचली स्थान योगेश प्रसाद योगेश जिन्दाबाद के नारों से गूंज उठा। संक्षिप्त भाषण था, लेकिन प्रभावकारी। चुनाव के बाद मेरा ट्रांसफर दुर्गापुर इस्पात संयत्र के लिए कर दिया गया। इस बार तो सचमुच योगेश प्रसाद योगेश से मिलना पड़ा। प्लांट के महाप्रबंधक को उन्होंने मौखिक रूप से स्थानांतरण रोकने के लिए कह दिया और मेरा स्थानांतरण रुक भी गया। इसी खुशी में सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन किया गया है। कम-से-कम पाँच सौ लोगों का जुटान हो गया है। दीनानाथ अंकल, झरी बाबा, दिन काका, बजरंगी बाबा, अनेको चाची, बुआ सब एकत्रित हैं। कुछ लंपट, मनचले और शरारती लोग भी इस पूजा में शामिल थे। इन सारे रिश्तों में भाभी देवर का रिश्ता मनचलों के बीच काफी लोकप्रिय था। सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था, अचानक एक सोलह साल की लड़की की रोने की आवाज से माहौल ही बदल गया। वह सिसक रही थी। चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी। थोड़ी ही देर में पुलिस की गाड़ी भी आ गई। उस गाड़ी में एक संभ्रांत व्यक्ति को अपने साथ ले गई। रात के बारह बजे लगभग भीड़ छँटनी शुरू हो गई। अबकी बारी जवान चचिया रो रही थी। चचिया जवान थी और चचवा बुड्ढा। हमारे कुछ मनचले और शरारती अतिथियों ने चचिया को ही फुसला लिया और पड़ोस के एक खाली कमरे में ले गए थे और चचवा भी उनको ढूंढते-ढूंढते वहाँ पहुँच गए। अब तो चचिया दहाड़ मारकर रोने लगी। बाकी सब लोग चले गए हैं। सब लोग यहाँ से जा चुके हैं। कुछ देर पहले तक लोग भक्ति भाव से ओत-प्रोत भगवान के नारे लगा रहे थे, भजन-कीर्तन और आरती हो रही थी। प्रसाद वितरण चल रहा था, लेकिन इस बीच की दो घटनाओं ने मुझे आहत कर दिया है। मैं वर्षों के बाद याद कर रहा हूँ -काश ! ये सपना होता। लेकिन सुबह का सपना कभी-कभी सच्चा हो जाता है।
