मेरे चार यार
मेरे चार यार
श्री गणेश जी विद्या दें, सबसे पहले विद्या दें ! बार-बार स्लेट पर कुछ लिखता था , मिटाता था । लिखता क्या बुकड़ता था । स्लेट पर लिखते-लिखते मेरे मानस पटल पर कुछ चित्र उभरे, फिर उन्होंने अमिट अक्षरों का शक्ल ले लिया, पता ही नहीं चला । कभी-कभी आपस में झगड़ भी लेता, पहले धीरे से, फिर जोर से । परिणाम यह हुआ कि एक दिन मेरी स्लेट फूट गई, कितना रोया था मैं। फिर दूसरी आई, कूट वाली और इसके साथ-साथ आई इसपर लिखने के लिए पेंसिल, जिसे प्यार से हम से पिनसिल कहते थे। मैं पेंसिल खाता भी था, कभी- कभार। आजकल कान खुजाने के भी नए-नए साधन मिल जाते हैं, पता नहीं कैसे, पेंसिल मेरी नाक में घुस गई और मैं भयभीत, घबराहट और दर्द और डर से छटपटा रहा था। शायद स्कूल के चपरासी ने पास ही के जनता सेवाश्रम में मेरा इलाज कराया और मेरी नाक से पेंसिल निकल गई। नाक से काफी खून बह रहा था। आजकल स्लेट गायब हो गई है। स्लेट का स्थान कापियों ने ले रखा है। दूसरी थी-हमारी चप्पल। बहुत प्यार करता था उन चप्पलों से, हमेशा भूल जाता, कहीं छोड़ देता या छूट जाती और हम बड़ों के शिकार बन जाते।चप्पलों के लिए बहुत बार मेरी पिटाई हुई। कुछ दिन बाद, जब थोड़ा और बड़ा हुआ तो कापी-पेंसिल मिली, लेकिन उन दिनों कलम मुझे बहुत ललचाती थी। ठीक से याद नहीं, लेकिन मुझे जब पहली बार कलम मिली तो अथाह खुशी हुई। लेकिन इसका मेरा ज्यादा दिन का साथ न रहा। पता नहीं कैसे- आधी कलम मेरे साथ होती और आधी कहीं गुम हो जाती। मेरी अधिकांश कलमें लीक करती थी जिसके कारण मेरी अंगुलिया रंगीन रहती, कभी शर्ट की पाकिट नीली हो जाती। खैर स्याही वाली से मेरा पीछा छूटा। एक और चीज थी जो बचपन में हम सबके साथ रही थी। मास्टर जी की पतली लपलपाती छड़ी। पता ही चलती, कब आ कर पीठ पर पड़ती, तब पता चलता, शायद हम बात कर रहे होते थे। हाँ, हम सब हस्तकर्म की परीक्षा में और आर्ट की परीक्षा में काफी सामान खरीदकर मास्टर जी को दे देते, बदले में हमे हस्तकर्म की परीक्षा में अच्छे अंक मिलते और साथ ही साथ मास्टर जी की छड़ी हमें ज्यादा परेशान नहीं करती। आज मैं अपने चारों दोस्तों को याद कर रहा हूँ, जिंदगी की किताब में ये चारों अनमोल हैं - सलेट, चप्पल, छेड़ती कलम और लपलपाती छड़ी। इनसे शिकायतें भी हैं, लेकिन इनको बहुत ढूँढता हूँ , लेकिन पाता नहीं हूँ। ये विलुप्त होती जा रही हैं।