Dilip Kumar

Romance Fantasy

3  

Dilip Kumar

Romance Fantasy

आओगी न वर्षा ?

आओगी न वर्षा ?

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मुझे तो तुम्हीं अच्छी लगती हो। सबकी पसंद अलग-अलग है। तुम जब बरसती हो तो धरती खिलखिला उठती है। हरियाली का मदमस्त यौवन निखर कर प्रकट होता है। मेरे ज्यादातर मित्र ऋतुराज वसंत के प्रशंसक हैं। गुलाम जो ठहरे, हमेशा ठकुरसुहाती करेंगे। मुझे तो ठकुराइन ही पसंद है। एक अजब- सी महक है तुम्हारे बदन की -मिट्टी की सोंधी खुशबू । गर्मियों में जब धरती तप्त हो जाती है और मेरे होंठ शुष्क, तो मैं तेरा पान करने के लिए बेकरार हो उठता हूँ -वर्षा रानी। कुछ लोग तो तुम्हारे वेग से डरते हैं, डरकर भाग जाते हैं -मैं तुम्हें अपने आलिंगन पाश में लेना चाहता हूँ, टकराना चाहता हूँ तुझसे। बाभन और धान अनगिनत हैं । इन दोनों का पोषण और संवर्धन तो तुम्हीं करती हो। मेघ तुम्हारे दूत हैं, लेकिन ये बिजलियाँ क्यों गिराती हो? धान के लहलहाते खेत, हरियाली और उनकी गदराई जवानी को उभार देनेवाली तो तुम्हीं हो। बाढ़, विनाश, प्रलय और हाहाकार मचानेवाली का दोष जो तुम पर मढ़ते हैं- वे सब खलनायक है। मैं जानता हूँ, तुम्हारी ऊर्जा असीमित है, अक्षुण्ण है। मुझे तुम्हारे दूतों द्वारा प्रेषित संदेश मिला था तुम्हारी नाराजगी से दुखी हूँ। तुम्हें मनाना चाहता हूँ, तुम्हारी इतराहट मेरे मन को भाती है। तुम मुझसे बहुत दूर चली गई हो। मेरी शिकायत तो बस इतनी ही है कि तुम कहाँ गई यह बताया भी नहीं। बहुत सारे लोगों का साथ छूट गया । बचपन के संगी साथी चले गए, माता-पिता चले गए । कइयों का कुछ अता-पता नहीं। तुम्हारा जाना खल गया। मैं जानता हूँ कि हमारा-तुम्हारा मिलन नहीं हो सकता। तुम दूसरे लोक की जो ठहरी। लेकिन तुम थोड़ी दूर से ही जो मुझे भींगा जाती हो, वही मेरी तृप्ति का कारण है। मैं बिन मौसम बरसात तो नहीं चाहता। मेरा न्योता तो नियत मास और नक्षत्रों के लिए ही है। तुम आओगी, धरती खिलखिला उठेगी। कमल के पुष्प भी तेरा रस-पान के लिए मचल रहे हैं। मैं अधेड़ भी तुम्हारी आशा लगाए जवान हो उठा हूँ -सच शरीर नहीं मन जवान होता है। आओगी न वर्षा ? मेरी प्यारी वर्षा, धरती को दुल्हन बनाने और मुझे फिर से दूल्हा। तुम्हीं मेरा यौवन लौटा सकती हो। तुम मेरे दिल में ऐसे बसी हो कि अब कोई दूसरा सुहाता नहीं। तुम मेरी प्रथम और अंतिम प्रेयसी हो। 


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