अमर को मारा किसने
अमर को मारा किसने
पाँचवी कक्षा के बच्चे ने आत्महत्या कर ली। नाम था "अमर नारायण सिंह"! शायद भूमिहार परिवार था! सिंह के साथ नारायण और शर्मदेव लगे, तो समझो भूमिहार ही हैं। खैर, गम का माहौल था। पड़ोसियों के बीच भी मातम पसरा हुआ था। यह आत्महत्या परीक्षा के तनाव अथवा वीडियो गेम के कारण नहीं थी। मुझे ऐसा क्यों लगता है कि वीडियो गेम से भी ऐसा कुछ हो सकता है। टुनऊर के छोटे बच्चे को पबजी में पागल देख कर मैंने उसके मोबाईल से पूरा गेम ही उड़ा दिया, सोचा, न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। तब टुनऊर ने गुस्से से मुझे कोसते हुए कहा था, मेरा "भोला" डिप्रेशन में चला जाएगा और पबजी भगवान की पुन: प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई थी। मैं ऐसे बहुतेरे बच्चों को भी जानता हूँ जिन्हें स्कूल से कोई समस्या नहीं है। असली डर तो "परीक्षा" से है। परीक्षा से पूर्व कुछ बच्चों और उनके अभिभावकों की तबीयत अचानक खराब हो जाती है जो कि परीक्षा समाप्ति तक चलती है। खैर, ये तो पंद्रह अगस्त की बात है। शिशु मंदिर में स्वतंत्रता दिवस पर होनेवाले आयोजन का रिहर्सल चल रहा था। अमर बाबू को भी भगत सिंह की भूमिका दी गई थी, जिसे फांसी के फंदे पर सहर्ष झूल जाना था। अमर ने अपने माता-पिता के सामने फांसी लगाने का रिहर्सल किया तो माता-पिता ने डाँट दिया। अमर के बालक-दिल पर इस डाँट से बड़ी चोट पहुंची। माता-पिता की अनुपस्थिति में उसने एक फांसी का फंदा बनाया और स्टूल के सहारे पंखे पर लटकने का अभ्यास किया। गले में फांसी का फंदा लगाने से पहले " मेरा रंग दे वसंती चोला" के गायन के साथ एक झटके में स्टूल पर लात मारकर लटक गया। थोड़ी देर में ही जब उसे घुटन महसूस होने लगी तो पैरों ने स्टूल ढूँढना शुरू किया, लेकिन यह रिहर्सल तो रियल हो गया। माता-पिता सगे संबंधियों का रोते-रोते बुरा हाल है। क्या इसे टाला जा सकता था? क्या अभिभावक अथवा विद्यालय इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए जिम्मेवार है । ये चाइल्ड साइक्लॉजी भी कोई चीज होती है। अमर तो मर गया, लेकिन अमर को मारा किसने?