दो दिन का प्रवास
दो दिन का प्रवास
दो ही तो बच्चे थे, लेकिन बड़े भाग्यशाली। हर विषय के लिए पीजीटी टीचर और दो साल तक के लिए प्राचार्य भी मिल गए। हालाँकि प्राणनाथ जी भूगोल पढ़ाते थे, लेकिन इक्का-दुक्का क्लाइमेट वाली क्लास हमारे प्राचार्य जी भी ले लेते थे। प्राणनाथ जी भूगोल में सिद्धहस्त थे।प्राचार्य जी ने अगले अध्यापकों की संख्या में काफी बढ़ोतरी की, अच्छा वेतन और ढेर सारी सुविधाएँ। अचानक प्राचार्य जी चले गए। उनके साथ वाले भी एक-एक कर चले गए। हम तो डूब चले ही सनम, तुमको भी ले डूबेंगे।
बच्चे भी चले गए। रह गईं उनकी यादें। अब तो बस केवल ओमनी और बिल्डिंग ही रह गयी। यहाँ से गए बंगाल- दो महीने ही रहे। फिर गए छतीसगढ़ वहाँ भी दो महीने और अब एम.पी में दो साल से ज्यादा होने को हैं, अभी तक कोई खबर नहीं आई। इन दो वर्षों में रिश्ते नाते सब क्लियर। जब वे यहाँ थे, तो जो लोग उन्हें पसंद नहीं करते थे अब प्रिय लगने लगे हैं। लेकिन यहाँ भी कुछ मुँहफट लोग हैं, सब कुछ खुलम खुला बोल ही देते हैं। जब प्राचार्य जी यहाँ आए, तो लोगों ने पहली बार ओमनी देखी।
जिन लोगों ने ओमनी की सवारी की, वे उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते। कुछ लोग तो उनसे इसलिए भी नाराज हैं कि उन्होने अपने यहाँ से, मतलब अपने जान- पहचानवालों को महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया था। ये शिकायत उन लोगों कि थी जिन लोगों पहले कभी ऐसा किया था और अब उनको कुछ सूझ नहीं रहा था कि आगे क्या करें ? इस बार विद्यालय ने वार्षिक उत्सव मे उन्हीं को अपना मुख्य अतिथि बनाया है। वे आ रहे हैं। दो दिन के प्रवास में ! पता नहीं वे किस मुँह से आ रहे हैं? पता नहीं किस मुँह से उन्हे बुलाया जा रहा है ? अब तो ये वही जाने या हमारे पाठक !