Dilip Kumar

Fantasy

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Dilip Kumar

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अतीत के जादू

अतीत के जादू

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बात 2018 की है। उस दिन सावन भादों की तरह बिलख रहा था। हर दिन दूसरों को नीचा दिखाने के तिकड़म में लगा रहने वाला सावन फूट-फूट कर रोने लगा। एक जादूगर से उसका आज सामना हुआ था। जादूगर को उसने बहुत भला-बुरा कहा। तुम्हारा जादू क्या है -हाथ की सफाई। तुम लोगों को बेवकूफ बना कर पैसे लूटते हो। भाग यहाँ से । कहीं राजीव जी आ गए तो धकिया देंगे। बाबू जी एक्स चीफ मिनिस्टर है -राजीव भोंडा जी के। आखिरकार जादूगर को भी गुस्सा आ गया। एक्स चीफ मिनिस्टर की ऐसी की तैसी। राजीव भोंडा यहाँ आ ही नहीं पाएगा । मैंने उसके हाथ पैर बांध दिए है। अब जब तक मैं नहीं चाहूँगा, वह चौबे कालोनी में ही पड़ा रहेगा। सावन को जादूगर की चुनौती असह्य प्रतीत हुई। क्रोधित सावन ने जादूगर पर हाथ छोड़ दिया। लेकिन यह क्या ? जादूगर ने बड़ी फुर्ती के साथ सावन के नाक में एक छोटा सा धागा चिपका दिया और चुनौती दी - है हिम्मत तो, इस धागे को निकाल कर दिखा। सावन ने अपनी नाक से धागे को खींचना शुरू किया। यह धागा है या द्रोपदी का चीर! सावन ने बहुत हाथ पैर मारे । पहले धमकाया, फिर गिड़गिड़ाया अंत में जोर-जोर से रोने लगा। उसे रोते देख कर प्रेस के स्टाफ मन ही मन मुस्कुराने लगे। जादूगर ने कहा- मैं तुम्हें चाहूँ तो इसी अवस्था में छोड़ कर जा सकता हूँ , लेकिन मैं इतना निर्दयी नहीं हूँ। इतना कह कर जादूगर ने सावन को चुटकी में धागे के बंधन से मुक्त कर दिया ! सावन भागा - लगभग दो किलोमीटर के बाद जब उसे विश्वास हो गया कि अब वह जादूगर की हद से काफी दूर निकल चुका है। राजीव जी को फोन मिलाकर अपने साथ घटी घटना के बारे में बताया। लेकिन, यह क्या - राजीव जी की सावन के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी। उलटे उन्होंने सावन को अगले कुछ दिन तक प्रेस आने से साफ मना कर दिया या यूँ कहिए प्रतिबंधित कर दिया। जादू मोहिनी शक्ति है। अच्छे-अच्छे का घमंड तोड़ देती है, धूल चटा देती है। घुँघराले वालों वाला आध्यात्मिक जादूगर है। उसने जादू से तो वहाँ कमाल ही कर दिया है । स्कूल-कालेज और अस्पताल खोले। जादू दिखाकर कुछ जादूगर लोगों को ठगते भी है। सावन भी ठगा गया था, क्योंकि वह दो के चार बनाने के चक्कर में एक अन्य जादूगर के हाथों पचास हजार गवां चुका था। चालीस हजार तो राजीव का काला धन ही था। 

बात दिसंबर 1984 की है। मैं सुबह 8 बजे के करीब कर्नल मार्केट की एक दुकान पर खड़ा हूँ। माँ ने कुछ राशन सामग्री लाने के लिए कहा था। एक साधु वेश में महात्मा ने दुकानदार से भिक्षा मांगी। प्रत्युतर में दुकानदार ने एक तेल पिलावन डंडे दिखाते हुए उसे भाग जाने को कहा। थोड़ी देर बाद मैंने एक सौ रुपये का एक नोट दिया। उसने जैसे ही तिजोरी खोली। उसके मुँह से आह निकल गई। दुकानदार उछलकर दुकान के बाहर निकला। सामने वह महात्मा मुस्कुरा रहा था। जाड़े के दिन में भी दुकानदार के शरीर से पसीने छूट रहे थे। महात्मा के पैरों में गिरकर उसने माफी मांगी। उसने बताया कि उसकी तिजौरी अचानक खाली हो गई है। महात्मा ने कहा -जा कर फिर से देख । दुकानदार वापस लौटा और तिजौरी खोली। इत्मीनान की सांस लेते हुए दुकानदार वापस लौटा तो पुन: एक चमत्कार हुआ- अबकी बार महात्मा जी अदृश्य हो गए थे। क्या जादू चमत्कार है।

2011, तमिलनाडु प्रांत के उदगमंडलम ऊटी के बाजार में अपने एक मित्र के साथ घूम रहा था। अचानक टूटी-फूटी हिन्दी में एक भगवाधारी ने चुनौतीपूर्ण अंदाज में मुझसे कहा - तुम एक संख्या अपने मन में सोचो। सोचो जी- मैं बताएगा। मैंने मन ही मन सोचा- 79 और उसने अंग्रेजी में 79 बताया। बिल्कुल सही। उसने फिर हमें एक फूल का नाम सोचने के लिए कहा। आश्चर्यजनक। इस बार भी वह सही था। मैंने जल्दी ही उससे अपना पीछा छुड़ाया और लवडेल लौट आया। 

बात 2001 की है। पिताजी को गुजरे हुए अभी कुछ ही महीने हुए थे। स्लीपर क्लास में साथ वाली सीट पर एक महात्मा सफर कर रहे थे। सामान्य गेरुआ पहनावा। बातचीत आगे बढ़ी तो पता चला कि ये तो पहुंचे हुए संत हैं । उन्होंने एक खाली चुनौटी खोल कर मुझे उसमें झाँकने को कहा -मैंने उसमें बाबूजी को देखा, उनके दर्शन किए और बातचीत भी। लेकिन जब आँख खुली तो देखा मैं स्वस्थ, सुरक्षित हूँ, ट्रेन गुवाहाटी स्टेशन पर खड़ी है, किन्तु महात्मा जी नहीं थे। 

 


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