Dilip Kumar

Romance Tragedy Fantasy

4.0  

Dilip Kumar

Romance Tragedy Fantasy

परग्रही

परग्रही

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'गूंगा' तो परग्रही निकला । उसका अपना घर नहीं था। पता नहीं, कल अचानक कहीं चला गया। कोई नहीं जानता, वह कहाँ से आया था। आज से कई वर्ष पहले गया रेलवे पर भीख माँगता मिला था। उन दिनों मजदूरों ने मालिकों के खेतों में काम करना बंद कर रखा था। लाल झंडा का आतंक चारों ओर छाया हुआ था। ऐसे में, गूंगा का हमारे घर आना सबके लिए राहत की बड़ी खबर थी। 'गूंगा' सुबह उठकर गोशाला की साफ-सफाई, फिर खेतों पर जाना, खेतों में हलवाही करना, पशुओं के चारा एकत्र करना, गोबर पातना, गोईठा ठोकना, पीने का पानी भरना से लेकर छोटे-बड़े सभी काम कर लेता था। उसने सबका विश्वास जीत लिया था। हमे मुफ़्त का कमिया मिल गया था। एक अपरिभाषित रिश्ते से बंध गए थे। 

वह चाय नहीं पीता था। हाँ, चाय के बदले एक लोटा गन्ने का रस चाय की तरह फूँक-फूँक कर पी लेता था। सादा भोजन ही होता था। मैंने उसे अक्सर मोटी -मोटी दो रोटियाँ और कुछ प्याज के टुकड़े खाते अक्सर देता था। दोपहर में खाने की जगह मट्ठा पीकर अपना काम चला लेता था। रुपये-पैसे से तो उसकी कोई आसक्ति नहीं थी।

न देना, न लेना-मगन रहना। लेकिन दिखने में वह काफी हट्टा-कठा दिखता था। खाया-पिया बेकार नहीं जा रहा था। सब उसके शरीर को लग रहा था। वह बोल नहीं सकता था, पर बोलनेवालों से समझता ज्यादा था। बर्तन धोने के लिए कुम्हईन चाची हमारे घर में आती थी। अक्सर वह उनकी मदद पानी भरने के लिए किया करता था। वह थी तो विवाहित, लेकिन दोनों को साथ में काम करते देख मैं अक्सर मैं भ्रमित हो उठता था। मेरा भ्रम उस दिन मिट गया, जब मैंने भरी-दुपहरिया में कुम्हईन चाची को 'गूंगा' के लिए बने मिट्टी के घर से निकलते देखा। इससे ज्यादा कुछ नहीं देखा। कुम्हईन चाची और 'गूंगा' के बीच की अंतरंगता से घर के बड़े बूढ़े भी परिचित थे।इसी बीच 'गूंगा' को लू लग गई। 'गूंगा' कुम्हईन चाची की सेवा-सुश्रुषा से जल्द ही ठीक हो गया। वैसे तो वह किसी को अपने पास फटकने नहीं देती थी। मालिकों के इस गाँव में न जाने कितने नवजवान मनचलों के गलत इशारों , प्रस्तावों और उपहारों को ठुकरा चुकी, अपने पति के अतिरिक्त यदि किसी अन्य चाहा हो तो सिर्फ वह एक ही था। कितना दुखद है अपनों को खोना। इससे भी अधिक कष्टकर है अपनों से बिछड़ना।

'गूंगा' न जाने कहाँ चला गया। एक टीस सी उठ रही है -कलेजे में। बड़ी वेदना है, असह्य पीड़ा क्या होती है, आज समझ में आ रहा है। अब वह वापस नहीं आएगा। खूब पता लगाया, खोजा, ढूंढा - पुलिस में शिकायत तो कर नहीं सकता था। वह शायद अपने लोक लौट गया। परग्रही कहीं का -एलियन वेश बदल कर हमारी जिंदगी में आया। सबको दुखी और उदास करके चला गया। 


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