लौट के आ गई
लौट के आ गई
ये दिल्ली विकास प्राधिकरण के फ्लैट्स हैं। मुझे पिछले अनेक वर्षों से यहाँ बतौर भाड़ेदार रहने का सौभाग्य प्राप्त है। महीने की 7 वीं तारीख को मकान मालिक का फोन आ जाता है। तीस हज़ारे भाड़े के अतिरिक्त 5000 रुपये बिजली-पानी के । मुझे न तो कट्टर ईमानदार सरकार की मुफ़्त बिजली, पानी और शिक्षा का कोई फायदा नहीं मिला। हाँ, धुआं, कुहरा, प्रदूषण, कचड़े का पहाड़ मिला। कोरोना काल में मैंने अपने अनगिनत मित्रों को खो दिया। मैंने अपने राजनैतिक मित्रों और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों की निर्दयता देखी। देश की राजधानी में अस्पताल की ऐसी दुर्दशा शायद ही कहीं होगी। ऐसा नहीं कि यहाँ उन्नत किस्म के महंगे अस्पताल नहीं। आज अचानक सुबह मेरी पत्नी अनीता सीढ़ियों से फिसलकर गिर पड़ी। अचानक सिर चकराया और आँखों के सामने अंधेरा छा गया। मैं तो अकेले इन्हें उठा नहीं पाता, खैर पड़ोसियों ने इन्हें एम्बुलेंस तक पहुंचाया और अस्पताल तक पहुंचाने में मेरी मदद की। असली परीक्षा तो अस्पताल पहुंचने पर शुरू हुई। लैब टेस्ट, डॉक्टर की फीस, रूम चार्ज- बार-बार आग्रह करने पर डिस्चार्ज के राजी हुए और एक लंबा-चौड़ा बिल पकड़ा दिया। अब बेहोश होने की बारी मेरी थी। दो महीने के वेतन के बराबर दो दिन का बिल मेरे सामने था। पहले बिल का भुगतान करो, फिर मरीज को यहाँ से ले जा सकते हो। मैंने अपने एच आर मैनेजर को फोन किया, पहली बार तो उन्होंने मेरा फोन उठा लिया, लेकिन दुबारा उनसे बात न हो पाई। उनका फोन हमेशा व्यस्त आ रहा था। शायद उन्होंने मेरा फोन ब्लॉक कर दिया। मैंने अपना अकाउंट चेक किया, मात्र चालीस हजार रुपये थे और महीना अभी बाकी था। थक हार कर, मैंने अस्पताल से अनीता को अकेला छोड़ कर भागने का निर्णय किया । वापस वही, सुखदेव विहार डी डी ए फ्लैट्स में। समझ में नहीं आ रहा इतना बड़ा मेडिकल बिल कैसे चुकाऊँ ?
रात के बारह बजे हैं । फोन पर अनेकों मिस्ड काल भरे पड़े हैं। मैंने अपना सिम बदल निकाल कर फेक दिया। सुबह दरवाजे की घंटी बजने से मेरी नींद खुली। लगा दरवाजे पर अस्पताल द्वारा भेजे गए बॉउन्सर या पुलिस होगी। लेकिन यह क्या? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा। मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा था। अनीता मेरे सामने खड़ी थी। मेरा बिल किसने चुकाया? क्या अनीता भी मेरी तरह अस्पताल से भाग आई। लेकिन मैं नहीं पूछ सकता। मैं यह अधिकार तो उसी समय खो चुका था, जब अस्पताल से उसे अकेले छोड़ कर भाग आया था।
