Dilip Kumar

Tragedy

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Dilip Kumar

Tragedy

सेवानिवृति

सेवानिवृति

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आपकी पदोन्नति हो गई है। मिस्टर शर्मा, आप सीनियर एस. आई. बनाए गए हैं। शर्मा जी वरीयता क्रम में सब से ऊपर थे, लेकिन बोकारो स्थानीय इकाई ने श्री रघुनाथ को पिछले वर्ष ही पदोन्नत कर दिया था। शर्मा जी तब से वरीयता के आधार पर पदोन्नति की लड़ाई लड़ रहे थे। उन्होंने कंपनी को कानूनी नोटिस भी भेजा। उन दिनों सरकारी कंपनियों में छटनी का दौर चल रहा था। कहने को तो यह स्वैच्छिक सेवानिवृति थी, लेकिन सच्चाई इसके उलट थी। स्थानीय प्रबंधकों एवं उच्च अधिकारियों को टारगेट नियत था, जिसके अंतर्गत उन्हें स्टाफ और मजदूरों का स्वैच्छिक सेवानिवृति फार्म भरवाना था। शर्माजी ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की और आभार भी प्रकट किया। किन्तु उन्होंने जैसे ही अपना पदोन्नति पत्र प्राप्त किया, उनके पैरों के तले जमीन खिसक गई। 

आज के कुछ वर्ष वे कलकत्ता में पदस्थापित थे। कलकत्ता उन्हें शुरू से ही पसंद नहीं था। वे प्रत्येक शनिवार को कलकत्ते

से धनबाद आ जाते थे। अगले सोमवार या मंगलवार को पहुँच कर अपनी उपस्थिति पंजिका में अपनी उपस्थिति दर्ज कर देते थे। इसी क्रम में उनकी झड़प प्रसनल मैनेजर श्री एस. के. झा से हुई और ई. डी. श्री एम. जी. सिंह से कहकर (जो उनके दूर के रिश्तेदार थे) उनका तबादला कहलगाँव में करवा दिया था। सिंह साहब भी भूमिहार थे, उनसे कहकर शर्मा जी ने अपना तबादला कलकत्ता से केदला में करवा लिया था। उन दिनों की बात ही कुछ और थी। भारत सरकार ने जब पिछले साल सिंह साहब के एक जूनियर को एम. डी. बना दिया तो उन्होंने तत्काल अपना इस्तीफा इस्पात मंत्रालय को भेज दिया। एक तो जुनियर, ऊपर से राजपूत। भूमिहार और राजपूत में छत्तीस का आंकड़ा रहा है। ऊपर से परशुराम जी वाली कहानी को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाता रहा है। राजनेता और मंत्रालय को यदि किसी उच्च अधिकारी को निकालना होता है तो इसी प्रकार के तिकड़म का उपयोग करती है। तब मेजर जनरल एस एस छानची बोकारो यूनिट के महाप्रबंधक हुआ करते थे। इस्पात मंत्रालय ने तब कर्नल आनंद को एम. डी. बना कर बिठा दिया। यह है ब्यूरोक्रेसी -लाल फीताशाही। खैर, अब कंपनी में राजपूतों की चल रही थी, उनकी सुनी जा रही थी। इसलिए तो बोकारो में रघुनाथ को इनसे पहले प्रोन्नत कर दिया गया। खैर, जातीय गुटबाजी, गोलबंदी तो हर कहाँ नहीं चलती? राजनीति में, मंत्रिमंडल में, टिकट बंटवारे में- सुना है, पंचायत और न्यायालय भी इससे अछूता नहीं है। 

खैर, शर्मा जी का ट्रांसफर और प्रमोशन दोनों एक साथ हो गया। झा साहब भी कहलगाँव में शर्मा जी के स्वागत के लिए अपने तरीके से तैयार बैठे होंगे। अब आया- ऊंट पहाड़ के नीचे। इसे सफलता कहें या कुछ और। समझ नहीं आ रहा था करें तो क्या करें? जाएं तो जाएं कहाँ ? चंद्रा साहब के एक उपाय सुझाया- आप स्वैच्छिक सेवानिवृति ले लीजिए। आपका ट्रांसफर भी रुक जाएगा और एक मोटी रकम भी मिलेगी। शर्मा जी ने अपना फार्म जमा करवा दिया है। 


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