minni mishra

Abstract Classics Inspirational

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minni mishra

Abstract Classics Inspirational

सोच में अमीरी

सोच में अमीरी

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"माँ, बगल वाली आंटी के दुकान में देख़ो कितनी भीड़ है। चलो, उसी में से मछली खरीदती हूँ । जरूर वहाँ ताजी मछली होंगी, तभी तो इतनी लोग हैं !"

" सुनो, मैं उसके दुकान से कभी मछली नहीं खरीदती। सामने वाले भैया के दुकान से ही लेती हूँ। " माँ ने कड़क आवाज़ में जवाब दिया।

" आज मैं बहुत दिनों बाद तुम्हारे साथ आई हूँ, मेरी बात मान लो प्ली...ज।" बेटी ने मधुरता से कहा।

" अरे बेटी ! देखो उसे , अपने पेटिकोट और साड़ी को घुटनों से ऊपर समेटे निर्लज्ज की भांति कैसे बैठी है ! इसलिए तो वहाँ मर्दों की अधिक भीड़ लगी रहती है। लो- मेन्टेलिटी की बेहाया औरत है वो !" 

कीमती पर्स को कंधे पर संभालते हुए उसने बेटी को टुक जवाब सुनाया। 

बेटी की खामोश नजरें माँ के डीप गले वाली ब्लाउज से झांक रहे उभार पर जाकर चिपक गयी !उसने झट से माँ के उभार को उसीके आँचल से ढँकने का प्रयत्न करते हुए कही , " बेचारी गरीब है ! मछली के छींटे पड़ने से कपड़े खराब न हो जाय ! शायद, इसलिए इस तरह से बैठी होगी!"

 आपनी बेटी की मुँह से अप्रत्याशित जवाब सुन कर माँ का मेकअप पसीने के साथ तेजी से बह कर गले तक पहुँच गया और तना हुआ गर्दन हारे खिलाड़ी की तरह जमीन को ताकने लगा। 

" माँ ! सोच में अमीरी झलकनी चाहिए, पहनावे में नहीं। " कहने के साथ बेटी के पैर मछली वाली औरत की ओर चल पड़े। 


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