शरद जी का व्यंग्य

शरद जी का व्यंग्य

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एक साहित्यकार मित्र मुझे अचानक बहुत दिनों के बाद, एक जगह मिल गये। पुरानी यादें ताजा हो उठी।मैंने कहा "चल यार,घर चलते हैं। बहुत दिनों के बाद मिले हो। "

मित्र ने कहा "अरे नहीं यार, पिछली बार का किस्सा भूल गए हो क्या। भाभी ने हम दोनों की कैसी क्लास ली थी। "

मैंने कहा "अच्छा याद आया। चिंता मत कर, तेरी भाभी मायके गयी है। ""फिर ठीक है। "मित्र ने कहा।

घर पर मित्र ने कहा "यार मेरी मदद कर। यह बता शरद जोशी को जानता है। "मैने उससे पूछा "कौन से शरद जोशी। मित्र या साहित्यकार। "

मित्र ने कहा "अरे वही।प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की बात कर रहा हूँ। "मैने कहा "वे तो महान व्यंग्यकार हैं। मैं उनको पढ़ते रहता हूँ। "

मित्र प्रसन्न हो गया। उसे शरद जोशी की प्रसिद्ध व्यंग्य किताब नदी में खड़ा कवि चाहिए थी।

मैंने मित्र से कहा "वह तो ठीक है। यह बताओ तुम शरद जोशी को पढ़े हो, क्या जानते हो उनकी लेखनी के बारे में। "

मित्र ने जवाब दिया "मैंने शरद जोशी की कहानियाँ, लेख,लघुकथा, फिल्मी कहानियां वगैरह पढी है। "अतिथी तुम कब जाओगे व्यंग्य पर तो प्रसिद्ध हिन्दी फिल्म भी बनी है। "

मैंने मित्र से कहा "यार,मैंने भी शरद जोशी को पढ़ा है। परंतु मुझे उनकी नदी में खड़ा कवि विशेष पसंद है।उनकी प्रसिद्ध व्यंग्य रचनाओं का इसमें संग्रह है।वह अलग अलग विषयों पर लिखा गया है।"

मित्र ने मुझसे प्रश्नपूछा "यार तू भी तो साहित्यकार हैं। तेरी तीन किताबें प्रकाशित हो चुकी है। ऐसा नदी में खड़ा कवि किताब मे क्या खास है।मुझे भी बता ना। "

मैंने कहा "जरा रूक जा। मैं चाय नाश्ता लाता हूँ। फिर बात करेंगे। तब तक तुम जोशी जी का व्यंग्य लोकायुक्त देखो।"

मैं चाय नाश्ता तैयार करने किचन में चला गया। हमने खा पीकर अपनी क्षुधा को शांत किया।

मैंने अपने मित्र से कहा "नदी में खड़ा कवि किताब मे शरद जोशी ने व्यंग्य का संग्रह किया है। 2012मैं उनकी बेटी नेहा शरद ने पुस्तक का प्रकाशन किया ।शरद जोशी की मृत्यु तो 5/9/1991 को हो गयी थी।साहित्यकार कभी कभी शब्द ढूंढ नहीं पाता, जिसे उसकी आवश्यकता होती है। तो वह शब्दों का सृजन करता है जैसे चाने गया था, भूसा खाना, कूलबुलाना आदि।एक व्यंग्य उनका घास पर है। घास का महत्व और उपयोगिता पर व्यंग्य किया गया है फिर हंसिए का राजनीतिक व्यक्ति किस तरह उपयोग करते हैं, लिखा है। वे मनुष्य की तुलना टायर से करते हैं कि मनुष्य टायर की तरह घिसते रहता है और उसे टायर समझकर दूसरे उसका उपयोग कैसे करते हैं, इस पर व्यंग्य लिखा है। फिर साहित्यकार अपने सृजन के लिए वातावरण कैसे तैयार करता है, किस तरह अपनी किताब वह प्रकाशित करवाता है फिर वह किताब की बिक्री करवाने क्या क्या पापड बेलता है, शरद बाबू ने इस पर सटीक व्यंग्य लिखा है।

शरद जोशी कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। कूछ सृजन कम चर्चा में रहने के बावजूद जबर्दस्त व्यंग्य से ओतप्रोत रहते हैं। शरद जोशी कहते हैं कि चर्चा में ना रहने पर भी वह सृजन व्यर्थ नहीं होता है।

शरद जोशी साहित्यकार की मृत्यु हो जाने के बाद भी मृतक से संबंधित किस तरह की टिप्पणी करते हैं और प्रशासन में बैठे लोग साहित्यकारों का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए कैसे करते हैं, यह लिखा है। और तो और अफसरों और नेताओं की जी हुजूरी साहित्यकार कैसे करते हैं, अपने सृजन को प्रकाशित व विमोचित करवाने, फिर एवार्ड पाने के लिए आदि पर जोशी जी के द्वारा सटीक व्यंग्य दिखता है। "

मेरा मित्र शरद जोशी के बारे में, यह सभी सुनते ही उनका मुरीद बन गया हो,ऐसा मुझे लगा।मुझे तो यह भी लगा कि उसने शरद जोशी को पढ़ा नहीं था।

मैंने मित्र से कहा "मैं तुम्हें शरद जोशी की किताब नदी में खड़ा कवि दे रहा हूं। किताब को पढ़ो और व्यंग्य की सरिता में डूबकी लगाओ।:

मित्र प्रसन्न हो गया और मुझे धन्यवाद कहने लगा।अंत शरद जोशी के शब्दों से "वाह धन्य है कवि,धन्य है साहित्य से जुड़ा अफसर,धन्य हो गयी कविताओं में पकती भारत की चिडिया। "

शरद जोशी की पावन स्मृति को शत-शत नमन और मेरी श्रद्धांजलि।


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