Dr. Madhukar Rao Larokar

Drama

3.6  

Dr. Madhukar Rao Larokar

Drama

"रक्षाबंधन का उपहार "

"रक्षाबंधन का उपहार "

4 mins
143


रक्षाबंधन का पावन पर्व, समीप आ रहा था। विमलेश पिछले वर्ष के,रक्षाबंधन पर्व की घटना पर फिर से सोचने लगी। चलचित्र की तरह उसे,उन बीते पलों की तस्वीर, स्पष्ट नजर आने लगी थी।  

अपनी तीन वर्षों की नन्ही बिटिया को लेकर,विमलेश अपने रक्षाबंधन पर्व के लिए गयी थी। इकलौते भाई (नरेन्द्र)से उसने, प्रस्थान से पूर्व ही बात कर ली थी। उसने वादा किया था कि नरेंद्र घर पर ही रहेगा।  

विमलेश ने जैसे ही, अपने पीहर में प्रवेश किया। उसने मां को आवाज लगाई। मां अपनी पुत्री को देख अति प्रसन्न हो गयी। विमलेश ने कहा "माँ, भैया नजर नहीं आ रहे हैं, कहाँ है?" माँ ने कहा"बिटिया सफर करके अभी आ रही हो,थोड़ा आराम करो। कुछ खा-पी लो। नरेन्द्र के बारे में भी बताती हूँ। "

विमलेश ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा"माँ, कल ही मेरी भैया से बात हुई है। उन्होंने वादा किया था कि वो मुझे घर पर मिलेंगे। उन्हें पता था कि मैं रक्षाबंधन के लिए आ रही हूं। मैंने यह भी कहा था कि मुझे, एक दिन में ही वापस भी जाना है। तुम्हारे दामाद टूर से घर वापस आयेंगे। कहाँ है भैया?"

माँ ने जवाब दिया "बिटिया, आज सुबह ही नरेन्द्र के बाॅस का फोन आया था उसे 15 दिनों के लिए,ऑफिस के काम से बाहर जाना ज ने कहा"मम्मी मुझे भूख लगी है। "विमलेश सोचने लगी कि वह,अब अपने भाई नरेन्द्र को ही, अपने यहां बुलवा लेगी।

विमलेश ने फोन लगाया। फोन मिलते ही उसने कहा "मां कैसी हो। स्वास्थ्य ठीक तो है ना। भैया को दो फोन। "उधर से नरेन्द्र की आवाज आयी"हेलो दीदी,तुम कैसी हो। "विमलेश "मैं ठीक हूँ नरेन्द्र। अच्छा सुनो आठ दिनों बाद, रक्षाबंधन का पर्व है और तुम्हें याद है ना, पिछले वर्ष क्या हुआ था। तो मैंने तय किया है कि इस बार रक्षाबंधन में, मैं नहीं, तुम हमारे घर आओगे। समझे ना। "

नरेन्द्र "ठीक है दीदी,मैं आपके यहाँ आऊँगा और आने से पहले, तुम्हें फोन भी करूंगा। मुझे भी तुम सभी की याद,आने लगी है। मिले हुए बहुत दिन हो गये हैं। "

भाई की सहमति पाकर, विमलेश प्रसन्न हो गयी। सोचने लगी कि इस बार जमकर रक्षाबंधन पर्व मनायेगी। कपड़े, मिठाई, भोजन सभी की व्यवस्था पर विचार करने लगी। मां भी नरेन्द्र के साथ, उसके घर आ जाती तो कितना अच्छा होता। विमलेश सोचने लगी थी।

दिन व्यतीत होने लगे थे। वह मां और भैया की याद कर ही रही थी कि एकाएक फोन की घंटी बजी। उधर से नरेन्द्र का फोन था। नरेन्द्र कह रहा था"दीदी मैं मां को लेकर, कल ही आपके यहाँ पहुँच रहा हूँ। परंतु दो दिन ही,मैं आपके यहाँ रूक पाऊंगा। "

 फोन आने से विमलेश खुश हो गयी और पति और गुडिया को यह शुभ समाचार देने लगी। विमलेश का पति प्रकाश भी प्रसन्न हो गये और कहा"भई,हमारी और साले साहब की,व्यवस्था में कोई कमी ना रह जाये।  बहुत दिनों बाद वे हमारे यहां, रक्षाबंधन पर्व के नाम से ही सही,आ तो रहे हैं। "

  विमलेश ने उन्हें आश्वस्त कर दिया कि सभी इंतजाम, ठीक से हो जायेंगें, आप निश्चिंत होकर रहिए। नियत दिन विमलेश के घर, उसकी माँ और भाई पहुँच गए। प्रकाश ने भी आज, विमलेश की मदद करने के लिए अवकाश ले रखा था।  

सभी प्रसन्न थे। नरेन्द्र ने कहा "दीदी मैं बहुत खुश हूँ। आज मैं अपनी बहन सेउसके घर पर, पहली बार राखी बंधवाऊंगा। दीदी,बोलो मुझसे आज तुम्हें क्या चाहिए। जो भी बोलोगी,मैं वही करूंगा। "

विमलेश "नरेन्द्र तुम हालांकि मुझसे छोटे हो,परंतु तुम मेरी इच्छा की पूर्ति नहीं कर सकते। जाने दो। " मां ने भी कहा "बिटिया भाई को अपनी पसंद का, उपहार बता दो। क्या पता फिर, उसका मूड बदल जाये। नरेन्द्र का कोई ठिकाना नहीं है। "

नरेन्द्र "हाँ, दीदी अपनी इच्छा बता ही दो। रक्षाबंधन में मुझसे तुम्हें क्या उपहार चाहिए। "विमलेश सभी के जोर देने पर कह उठी"नरेन्द्र आज तुम्हें, मुझे नहीं, सिर्फ़ एक वचन देना है। वह यह है कि हर साल, रक्षाबंधन के दिन तुम्हें, मेरे यहाँ आकर, मुझसे राखी बंधवानी होगी। इसके अलावा मुझे, तुमसे कुछ नहीं चाहिए। "

 नरेन्द्र कुछ पल सोच-विचार में पड़ गया। जब वह निर्णय तक पहुंचा तो, विमलेश से कहा "ठीक है दीदी,मैं मां के सामने तुम्हें यह वचन देता हूँ कि हर साल, रक्षाबंधन के दिन मैं तुम्हारे यहाँ आऊँगा और राखी बंधवाऊंगा। चाहे मैं जहाँ भी रहूं। आज रक्षाबंधन के दिन, मेरा यह वचन ही तुम्हारा उपहार है। " यह सुनकर विमलेश प्रसन्न हो गयी और आंखों में खुशी के आंसू लिए, अपने भाई के गले से लग गयी। "


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama