"" हमारी माताजी ""(25)
"" हमारी माताजी ""(25)
हमारी माताजी बहुत ही सौम्य, सहज,ममतामयी रही हैं। जिस तरह सभी की माता होती हैं। हालांकि वे अल्प शिक्षित थीं, किन्तु जीवन के अनुभवों का खजाना, उनके पास भरपूर था।
माताजी ने अपने सभी छः बच्चों को अच्छे से संभाला बड़ा किया, शिक्षित और संस्कारी बनाया। भाई-बहनों में मेरा दूसरा नंबर था। मुझसे बड़ी बहन है।
माताजी ने बचपन में मुझे समझाया था "बेटा तुम बड़े हो, परिवार में भी बड़े लड़के हो। गुस्सा करना सेहत के लिए ठीक नहीं होता है तथा जिद करना और भी नुकसान दायक होता है। तुम्हें पता है कि हमारी स्थिति कैसी है और तुम्हारे पांच भाई बहनें और हैं । किसी भी वस्तु की जिद करोगे तो फिर इनका क्या होगा। सहनशीलता और त्याग की भावना रखो और भगवान पर भरोसा रखो। हमारे भी अच्छे दिन आयेंगे, क्योंकि तुम बहुत अच्छे बनोगे।"
माताजी जब मुझे यह समझा रही थीं तो शायद मैं सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था। उस समय के बाद, मैंने किसी भी वस्तु की जिद करना छोड़ दिया था।
पिताजी की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, ऊपर से बच्चों की सभी जरूरतें। जरूरतें तो सुरसा के मुंह की तरह फैलती ही जाती थीं ।
माताजी ने मुझसे मेरे बचपन में कहा था "बेटा स्कूल के बाद का जो समय है, उसमें कुछ काम करो,ताकि पैसों की कुछ आवक हो सके, तुम्हारे पिताजी को भी आर्थिक मदद हो सके। तुम्हें भी काम करने का अनुभव मिलेगा जो तुम्हारे भविष्य में काम ही आयेगा। "
मैंने छोटी उम्र में ही, छोटे छोटे काम करना शुरू कर दिया था। जैसे कि बिस्कुट कंपनी में बिस्कुट को पैक करना, प्रिंटिंग प्रेस में पेपर सैंट करना, मीना बाजार में पिताजी के साथ रात में जाकर काम करना (टिकट की बुकिंग करना, फोटो फ्रेम की दुकान में काम करना)
मुझे याद है कि मैंने माता पिता का उनके जीवित रहते तक उनके सभी कहन और आदेश का पालन किया था। हमारे पिताजी की मृत्यु 12/03/1983 को तथा माताजी का देहावसान 04/10/2009 को हुआ था।
पिता से तो मुझे डर बहुत लगता था, उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था। परंतु मुझे वे बहुत ही ज्यादा प्यार करते थे। उन्हें प्यार जताना बिलकुल नहीं आता था। मां के निकट मुझे अच्छा लगता था। स्वयं को सुरक्षित महसूस करता था। वे मेरा खूब लाड़ दुलार करती थीं।
जब मैं बड़ा हुआ, सक्षम हुआ। पढ लिखकर सरकारी नौकरी करने लगा तो परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरी।
माताजी उम्र के साथ अस्वस्थ सी रहने लगी थी। उन्होंने मुझसे कहा था "तुम मेरे न रहने पर, अपने भाई बहनों का पूरा ख्याल रखना। तुम्हारे पिताजी तो आसानी से अपनी राह पकड़ कर चले। तुम ही बड़े हो याद है ना ,तुम्हारे बचपन में मैंने कहा था बड़े होने की कीमत चुकानी पड़ती है। यह बात सदैव याद रखना। "
मेरी सरकारी बैंक में (नागपुर, महाराष्ट्र)पोस्टिंग थी। माताजी हमेशा ही हमारे साथ रही।
उनके स्वास्थ्य की जांच ,नियमित रूप से मैं करवाता रहता था किन्तु उम्र का तकाजा कहिए या जीवन में ज्यादा परिश्रम करने और चिंताग्रस्त रहने का परिणाम कहिए।
उचित इलाज करवाने के बाद भी वे रिकवरी नहीं कर पा रहीं थी। माताजी ने मुझसेकहा"बेटा अब मैं ज्यादा तेरे साथ नहीं रह पाऊंगी, ऐसा लगता है कि तेरे पिताजी मुझे बुलाते हैं।,"
इतना कहकर वे बेहोश हो गई। हम उन्हें तुरंत हास्पीटल ले गये। सर्जन से चेक करवाया। सर्जन ने अकेले में मुझसे कहा "आप इन्हें घर ले जाइये क्योंकि कोई भी दवा इंजेक्शन अपना काम नहीं कर पा रहीं है। यह हमारा सुझाव है,फिर भी हम कोशिश कर ही रहे हैं। "
उसी समय माताजी को होश आया। मुझसे कहने लगी "बेटा अब मैं यहाँ नहीं रहना चाहती मुझे अपने पुराने घर ले चलो कुछ समय परिवार के बीच रहना चाहती हूँ। "
मैंने सर्जन से बात की। उनसे कहा "हमारा पैतृक मकान दुर्ग (छत्तीसगढ़)में है जहाँ हमारा परिवार रहता है। नागपुर से 265 किलोमीटर दूरी पर है। कार से उन्हें ले जा सकते हैं क्या। माताजी वहां जाने की जिद कर रहीं हैं। "
डाक्टर ने उनकी रिपोर्ट एक बार फिर से चेक किया तथा मुझसे कहा "आप इन्हें घर ले जाइये, परंतु गाडी बड़ी होनी चाहिए ताकि स्ट्रेचर आ सके। हम जरूरी दवाओं के साथ एक अनुभवी नर्स भी आपको देते हैं ताकि पेशेंट आराम से पहुँच सके। आपको सभी खर्चे देने होंगे "।
हमने पूरी व्यवस्था उचित रूप से की और दुर्ग पहुँच गए।माताजी दुर्ग पहुंचने पर बोलीं "बेटा तूने पूरी जिंदगी मेरा और सभी का अच्छे से ख्याल रखा है। मुझे यहां अपने पुराने दिन याद आने लगे हैं। मैं यहीं शादी होकर आयी थी। तेरे जैसा बेटा मिला ।तू पूरी जिंदगी खुश रहेगा मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ रहेगा। खुश रहना।"
इतना कहते ही माताजी ने 70वर्ष की उम्र में मेरी बाहों में अंतिम मासांस ली। मेरे लिए माता पिता भगवान सेबढ़कर थे और रहेंगे उनकी यादें ही तो अब मेरे पास हैं।