मैं हिन्दुस्तानी 29
मैं हिन्दुस्तानी 29
वर्ष 1973 में, मैं राष्ट्रीय छात्र सेना (एन सी सी)में अण्डर आफिसर था और शासकीय महाविद्यालय दुर्ग (छत्तीसगढ़)में बी ए (द्वितीय वर्ष)का विद्यार्थी था।
राष्ट्रीय छात्र सेना की दुर्ग बटालियन ने आर्मी अटैचमेंट कैम्प के लिए, मेरा चयन किया था।मुझे 65सिख रेजिमेंट के साथ, मिलिट्री ट्रेनिंग के लिए बबीना (झांसी)उत्तर प्रदेश, तीन सप्ताह के प्रशिक्षण हेतु जाना था।
प्रशिक्षण की सूचना मुझे कैप्टन जे पी शर्मा (एन सी सी आफिसर) ने दी थी और कहा था "आप प्राचार्य महोदय के कैबिन में आईये।प्रिसिंपल साहब आपसे मिलना चाहते हैं। "
मैंने शर्मा सर से कहा "ठीक है सर,मैं क्लास अटेंड कर आता हूँ। "मैं प्राचार्य श्री के बी एल श्रीवास्तव के कक्ष में पहुंचा। मुझसे प्राचार्य महोदय ने कहा"लारोकर, आपका और महाविद्यालय का सौभाग्य है कि आपका चयन आर्मी अटैचमेंट कैम्प के लिए, बटालियन ने किया है। यह आपकी लगन और मेहनत का परिणाम है। आप अच्छी तरह, आर्मी के साथ प्रतिक्षण प्राप्त करें। क्योंकि एन सी सी के "सी"प्रमाणपत्र परीक्षा के लिए, यह प्रशिक्षण आपके बहुत काम आयेगा। आपको हमारी बधाई और शुभकामनाएं ।"
प्राचार्य महोदय से मैंने वादा कर कहा "सर मैं अपनी क्षमता से अधिक मेहनत करके प्रशिक्षण प्राप्त करूंगा।मेरे जीवन का लक्ष्य है कि मैं नेशनल डिफेंस एकेडमी द्वारा सिलेक्ट होकर इंडियन आर्मी में सेकन्ड लेफ्टिनेंट बनूं।"
हमारे प्रिंसिपल और एन सी सी आफिसर प्रसन्न हो गये।प्राचार्य महोदय ने मुझसे कहा "आपके एटीट्यूड और हर फील्ड में परफार्मेंस को हम देखते हैं और मुझे अच्छा लगता है कि आप जैसा विद्यार्थी, हमारे महाविद्यालय में अध्ययन कर रहे हैं। लारोकर आप एक बात याद रखें कि जो जितना बड़ा सपना देखता है, उसे पूरा करने के लिए दिन रात का परिश्रम करना जरूरी होता है। जो यह करता है, वही व्यक्ति बड़ा और सफल होता है। हमें खुशी होगी कि आप इंडियन आर्मी में, कमीशन प्राप्त करें और हमारे महाविद्यालय का नाम रौशन करें। हमारी शुभकामनाएँ। "
मैं प्रशिक्षण के लिए बबीना (झांसी) पहुंचा। हमारा कैप्टन बतरा के मार्गदर्शन में, प्रशिक्षण प्राप्त करने का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।
मेरी लगन और मेहनत से कैप्टन बतरा मुझे पसंद करने लगे थे।बबीना में भारत के हर प्रांत से विद्यार्थी प्रशिक्षण के लिए आये थे। हमें आर्मी के हथियार चलाना,शारीरिक क्षमता में वृद्धि करना युद्ध के समय आर्मी जो कार्य करती है, उसका छोटे रूप में प्रशिक्षण लेना आदि सभी शामिल था।
इंडियन आर्मी के बहुत से उच्च अधिकारी, हमें प्रशिक्षण देने आते रहते थे। जो कि अलग अलग ट्रेनिंग देते रहते थे। हमें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत और दृढ़ रहना भी सीखाया जाता था।अनुशासन तो आर्मी की पहली शर्त होती ही है।विपरीत और संकट की परिस्थिति में कैसे सहज और सरल रहना ।दुश्मन की मूवमेंट की टोह कैसे लेते रहना ।उन पर नजर रखकर अपने अधिकारी को कैसे फास्ट कम्यूनि-केट करना वगैरह का भी प्रशिक्षण प्राप्त करते थे।
कैप्टन बतरा ने मुझे एक बार डिनर के लिए बुलाया और कहा "यंग मैन, आर्मी की ट्रेनिंग कैसी लग रही है। इन्जाॅय कर रहे हो या नहीं। "
मैंने कैप्टन साहब को कहा "सर मेरा सपना साकार होता सा दिख रहा है। हम सिविलियन जैसा आप लोगों कै बारे में सोचते हैं, उसकी तुलना में आप लोगों की लाइफ बहुत अलग है। सही मायनों में तो आप लोगों में देशभक्ति कूट कूट कर भरी है। मेरा सपना है कि मैं आर्मी में कमीशन प्राप्त कर सकूँ। "
कैप्टन बतरा मेरे जवाब से खुश हुए।हमारी शाम अच्छी रही ।मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। अंतिम दिनों में हममें से कुछ लोगों का चयन ,अभी तक के परफार्मेंस के आधार पर विजयेन्ता टैंक चलाना सीखने के लिए किया गया।मेरा भी चयन हुआ था।
विजयेन्ता टैंक उस समय, भारतीय सेना में नया ही शामिल किया गया था।जब मेरा नंबर आया तो मेरी मदद करने कैप्टन बतरा मेरे बाजू में बैठ गये थे।
विशाल और युद्ध तकनीकी से युक्त विजयेन्ता टैंक को देखकर और समझकर गर्व महसूस हुआ कि मैं भी भारतीय हूँ। टैंक आपरेट करते समय गलती से मैंने गलत बटन दबा दी थी और मैं चक्कों में गिरने ही वाला था कि मुझे कैप्टन बतरा ने दोंनो हांथो से ऊपर खींच लिया था।
मैंने कैप्टन बतरा को धन्यवाद दिया तो उन्होंने हंसकर मुझसे कहा था "मैं भविष्य के सेकण्ड लेफ्टिनेंट को कैसे मरने दे सकता था।"