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VEENU AHUJA

Action

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VEENU AHUJA

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शन्नो चाची

शन्नो चाची

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पुराने लखनऊ की सकड़ी गली में बने घर ' जिनके संकड़े दरवाजे से घर के भीतर का मजमून भाँपना ( आकार का अंदाजा लगाना ' ) अजनबियो के लिए चुनौती का रोचक विषय रहा करता था।

ऐसे ही संकड़े दरवाजे वाले कई कमरो ' दालानों व ऑगन वाले घर मे मैं ( नूतन) रहती थी। रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवाद ' से पहले का समय था तो मुस्लिम बहुल होते हुए भी हिंदू सिंधी मुसलमान में परस्पर बैर नहीं था ' प्रेम की निश्चल नदी में सबके सुख दुख साझे थे। ठंडे चावल के डेले पर डली ठंडी अरहर की दाल का स्वाद सिंधी घरों में व सिंधी घरों की लज्जेदार कढ़ी की सुंगध मुस्लिम घरों में महकती थी। मकान भी इतने समीप थे कि खाने में लगने वाले छौंक की खुशबू भी साझा थी झरोखो छज्जों, सीमेन्ट रहित दीवार ने बीच में स्थित छेदों के माध्यम से दिल की बातें बदस्तूर ज़ारी थीं।

एक दिन कीबात मेरे घर के दरवाजे की सांकल ( कुंडी ) खड़की दरवाजे के उस पार

बारह तेरह साल का तंदुरुस्त या मोटा सा किंतु स्मार्ट लड़का हाथ में कटोरे में जामुन लिए खड़ा था जामुन आगे बढ़ाते हुए बोला मम्मी ने भिजवाए हैं '।

माँ ने पूछने पर बताया कि जामुन शन्नो चाची के घर में लगे पेड़ के हैं लाने वाला लड़का जुम्मन उनका ही पुत्र है जिसे उन्होंने अपनी निःसंतान जिठानी को गोद दे दिया था किंतु आठ साल बाद जब उन्हे अपना बेटा हो गया तो उन्होंने उसे पुनः उसकी माँ के पास वापस भेज दिया ' | मैं आश्चर्य चकित हो सोच रही थी कि इस सब के बीच जुम्मन के मनमें क्या बीत रही होगी???

कुछ पन्द्रह दिनों बाद मम्मी शन्नो चाची के बालों में मेंहदी लगा कर लौटी तो उदास थीं पूछने पर उन्होंने बताया कि शन्नो चाची आज रो रही थी शन्नो की जिठानी ने ज्यादा लाड़ प्यार करके जुम्मन को पूरा बिगाड़ दिया है, कभी डांट न खाने के कारण वह निरंकुश हो गया है और ज्यादा खाने की आदत से मोटा। शन्नो चाचीने अपने अन्य तीन बच्चे बड़े अनुशासन से पाले थे और अब उस पर सख्ती करते है तो वह उल्टा-सीधा उत्तर देता है कहता है कि वे उससे प्यार नही करते ' उन्हे उसे जबरदस्ती रखना पड़ा है।

मैंने स्नातक के बाद बीएड किया था और अब संयोग से ही उसी स्कूल में अध्यापन कार्य कर रही थी जिसमे जुम्मन पढ़ता था।

कुछ दिनो में ही मुझे समझ मे आगया था कि वह लाड़प्यार में पला बिगड़ैल बच्चा तो है किन्तु मन से बहुत नाजुक है उसके जीवन में जो कुछ घटित हुआ था वो उसे स्वीकार नहीं कर पारहा था। जिसे वह आज तक माँ कहता था वह उसकी माँ न थी और इतने साल बाद जिसे उसकी माँ बताया जारहा था ' उसका मन अचानक से उसे माँ मानने को तैयार न था यह अर्न्तद्वन्द उसे निरंतर चिड़चिड़ा बनाता जा रहा था ' उदासी और निराशा का काला गहरा धुआ उसके अन्तस में समाकर उसके व्यक्तित्व को नकारात्मक बनाताजा रहा था ' उसके अर्न्तमन में उठरहे झंझावात का भान किसी को न था। वह खुद के प्रति जीवन के प्रति लापरवाह होता जारहा था, न उसका मन पढ़ाई में लगता न खेलकूद या अन्य किसी गतिविधि में ' मोटे होने के कारण कभी कभी हँसी का पात्र बन जाता अपनी उम्र के बच्चों से विपरीत उसकी शारीरिक गतिविधियाँ शून्य थी ' वह अलगथलग गुमसुम होता जारहा था, उसका संपूर्ण वज़ूद संशय के घेरे में था।

मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की किंतु कोई मुझे प्यार नहीं करता 'नूतन - - कहकर चुपचाप वहाँ से चला गया।

सबके सामने वह मुझे मिस कहता था किंतु वैसे नूतन ही सम्बोधित करता था ' वह रिश्तो को अपनी तरह से परिभाषित करना सीख रहा था ' उसकी मनःस्थिति को समझते हुए मैंने प्रिंसिपल से उसकी कोई शिकायत नहीं की।

उसका जीवन बर्फ़ जमी झील की भाँति होगया था ' आसपास के वातावरण से अलग एक भावात्मक शून्यता ने उस पर आधिपत्य जमा लिया था, उसके हृदय के समस्त कोमल भाव व मनोवृत्तियाँ उसएक भाव के आधीन हो गए थे इसी से प्रथम दृष्टया बाहर से दृष्टिगत नहीं होते थे।

कुछ महीनों बाद एक दिन छुट्टी होने पर जैसे ही मैं स्कूल से बाहर निकली तो जुम्मन को कुछ बड़े शातिर लड़कों के बीच खड़ा पाया मैं बरबस अपने को रोक नहीं पाई मुझे आता देख वेबच्चे वहाँ से भाग गए ' मैंने कड़क स्वर में जुम्मन से पूछा क्या होरहा था यहाँ ?  जुम्मन सिर झुकाए बोला नूतन ' वे मुझे सिगरेट पीने को कह रहे थे ' मना करने पर मारने की धमकी दे रहे थे। मेरे कहने पर जुम्मन ने यह बात घर में बताई तो उसके वालिद साहब ( अब्बा जान ) प्रतिदिन उसे लेने आने लगे। किसी पर विश्वास न कर सकने की परिस्थिति से उपजे खालीपन ने उसे जड़ बना दिया था पिता के प्यार की ऊष्मा पाते ही लावे सा पिघलने लगा विश्वास के साथ भावात्मक लगाव का स्फुरण हो चुका था समस्त नकारात्मकता स्वतः ही सकारात्मकता में परिवर्तित होनेलगी थी ' मेरा आश्वासन पाकर वह पढ़ाई सम्बधित समस्याओं को लेकर मेरे पास आनेलगा था धीरे-धीरे पढ़ाई में उसकीरुचि जाग रही थी। '

र्‍यार में पगी शन्नो चाची की देखभाल और ऑखों से झांकती दृढ़ता ने उनके बेटे को एक बार फिर उनके पास ला दिया था। उसके तपते रेगिस्तानी मन को स्वाती बूंद सा चाचा चाची का प्यार रफ़्ता - रफ़्ता ( धीरे-धीरे ) शीतल कर रहा था।

आज वार्षिक रिज़ल्ट का दिन था '। वह उत्तीर्ण (पास) हो गया था उसे सुलेख केलिए ईनाम भी मिला था ' ' जुम्मन के बोसा ( चुम्मन ) करते समय शन्नो चाची की ऑखें आब -ए - चश्म (आंसू ) से सराबोर थीं पिता के साए में जुम्मन महफूस था '। माता पिता की सहनशीलता और प्यार ने जुम्मन के भटकते मन को पनाह में लेकर सही राह की ओर रुखसत कर दिया था। जुम्मन ' किसी हिरण -शावक की भाँति पूरे आत्मविश्वास के साथ कुलांचे भरने को तत्पर था।

परन्तु जीवन कभी इतना सीधा और सरल नहीं होता अकसर उल्लास के चरम समय पर रोदन नियति बन जाता है।

पंखुड़ी के प्रस्फुटन ( खिलने) से पहले ही डूबते सूरज का अक्स शाम की आहट को ध्वनित कर गया था।

दूसरे दिन प्रातः शोर सुनकर घर से बाहर आए तो देखा शन्नो चाची जोर जोर से रोए जा रही थी और कुछ लोग जुम्मन को उठाकर टैम्पू में ले जा रहे थे

पता चला कि रात मे शन्नो चाची के जेठ आए थे उनका बेटा कमज़ोर पैदा हुआ था तो ज्यादा दिन जी न सका। अब वे फ़िर जुम्मन को ले जाना चाहते थे

एक बार फिर चाची ने कलेजे पर पत्थर रख जुम्मन को ले जाने की रज़ामंदी दे दी थी   परन्तु

जुम्मन इसे बरदाश्त न कर सका  

पल भर की भावुकता ने उसे मौत के समीप ला खड़ा किया था। उसने रात में, ढेरों नींद की गोलिया खा ली थी।

मै अवाक ' शन्नो चाची को देख रही थी जो सिसक सिसक कर रोए जा रही थी। जेठ से ज़िरह करना उनकी तालीम के खिलाफ़ था। अति संवेदनशील मन या रिश्तों को बनाए रखने की मज़बूरी ने आज एक बार फिर उनके बेटे को उनसे बहुत दूर कर दिया था शायद हमेशा हमेशा के लिए

मै ' नियति की सशक्तता को महसूस कर रही थी '। क्रूर नियति ने अकारण ही अतीत को एक बार पुनः वर्तमान में अवस्थित कर दिया था '। यह कैसा नियति का खेल है ?? ? जिसमे मनुष्य को चेतना विहीन होकर बस बहते जाना होता है क्या कर्म के बल से तालीम के उजाले से इसमें कुछ परिवर्तन सम्भव नहीं ' ???

मेरा अन्तस् रो रहा था जुम्मन मेरे लिए छोटे भाई सा था मैं प्रभु से उसके बचने की दुआ माँग रही थी '। मुझे शन्नो चाची के ऊपर गुस्सा आरहा था क्योंकि इसके लिए मैं उन्हें ही जिम्मेदार मान रही थी। क्या उनकी ' हाँ ' ने जुम्मन को मजबूर नहीं किया था पूरा मुहल्ला हीअस्पताल में उमड़ पड़ा था - पंडिताइन भाभी ' त्रिपाठीचाचा अग्रवाल दादा आहुजा अंकल व फरीद भाईजान सभी जुम्मन की सलामती की दुआ पढ़ रहे थे।

ख़ुदा का रहम ' जुम्मन खतरे से बाहर आ चुका था। उसके चाचा नमाज़ पढ़ने मस्ज़िद चले गए थे। कुछ देर बाद वे आए और जुम्मन के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले - अल्लाह ' शुक्रिया हम जल्दी घर चलेगे। जुम्मन निष्चेष्ट एकटक दीवार की ओर देख रहा था तभी दरवाज़े के पास से एक तेज़ आवाज़ ने सभी को चौका दिया - - -

जुम्मन ' कहीं नहीं जाएगा '

वह छन्नो चाची थी ' मुखमंडल पर अदभुत तेज़ बड़ी आंखों के मध्य पुतलियो का ठहराव ' जो टूटे बाॅध के पानी को रोक दे ' शरारे के ऊपर लंबा कुर्ता उनके स्थूल शरीर को लपेटे बड़ी सी शाल चारों ओर पाकीज़गी की महक 'अल्लाह के नूर की झलक प्रतिबिम्बित हो रही थी।

वह कहीं नहीं जाएगा।

चाची के भीतर उफनता सागर निनादित हो उठा --

मैं अब जुम्मन को आपके साथ न भेज सकूँगी। आप चाहे जो समझे वह मेरा लख्ते ज़िगर है अपनी ऑख के नूर को अब अपने से ज़ुदा करना गुनाह होगा अल्लाह की रज़ा से अलग जाना होगा मुझे माफ़ करे।

जीवन के उतार चढ़ाव ने निर्णय लेने का साहस व समझ दोनों को विकसित कर दिया था शन्नो चाची आज आधुनिक नारी का प्रतिनिधित्व करती प्रतीत होरही थी ।

चाची ने आगे बढ़कर जुम्मन को गले लगा लिया दोनो फूट फूटकर रोने लगे सिसकियों की ध्वनि ने दोनों के मन के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिए थे मां के वात्सल्य की ऊष्मा ने जुम्मन के मन के सारे संशयों को पिघला दिया था ' ' उसके मन की सोंधी जमीं से उत्साह के नए नए अंकुरण का प्रस्फुटन हो रहा था जिस पल का वह इंतजार कर रहा था वह आ चुका था। उसका वज़ूद संशय के काले घेरे से निकल विश्वास व प्रेम की स्वर्णिम आभा से जगमग कर रहा था। जुम्मन सच में बहुत खूबसूरत लग रहा था उसके चेहरे की आभा की प्रतिछाया मुस्कराहट बन हम सभी के चेहरे पर क्रीड़ा कर रही थी '। अचानक से यह मुस्कराहट थोड़ी गहरी हो गयी सारे मुहल्ले वालों ने जुम्मन व उसकी माँ को चारों ओर से घेरकर ढक दिया और तब मैं ( नूतन ) बोल उठी - एक -दो - तीन - सभी ने एक हाथ ऊपर उठाकर समवेत स्वर में कहकहा लगाया - --

जुम्मन ' अब कहीं नहीं जाएगा '।

श श - धीरे यहअस्पताल है।


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