सच (हॉरर)
सच (हॉरर)
नीना ने अपने नए घर का दरवाजा खोला ही था और गाड़ी से अपने सभी सामान को ड्राइवर से घर के अंदर करवा ही रही थी कि एक बूढ़ी काकी न जाने कहाँ से नीना के सामने आ खड़ी हुई ।नीना उसे देख एक बार के लिए सकपका ही गई थी ।मगर उसने खुद को संभाला और नम्र भाव से बूढ़ी काकी से पूछा "आप कौन हैं और आप यहाँ कैसे ?"
बूढ़ी काकी-" बेटा !सदियों से यह घर ताले में बंद पड़ा था ।न जाने कब से यह बिकने को था ।लगता है बेटा! तुमने इसे खरीद लिया है ।"
नीना -"ऐसा ही समझ लीजिए।काकी!"
बूढ़ी काकी -"ओ बेटा !तुमने मुझे काकी कहा ।ऐसा लगता है फिर से वही दिन लौट आए ।"
नीना -"कौन सा दिन काकी?"
बूढ़ी काकी-" बेटा !फिर कभी बताऊंगी ।पहले तुम यहाँ खुद को व्यवस्थित करो ।सामान सहेजो। घर की साफ सफाई करवाओ ।आराम करो ।"
नीना -"बस काकी! अच्छा यह बताइए, कोई यहाँ मिलेगा जो घर की साफ सफाई कर दे ।"
बूढ़ी काकी-" मैं ही कर दूंगी बेटा !मैं तो इस घर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूँ।"
नीना -"मतलब ?"
बूढ़ी काकी -"मतलब यह कि तुमसे पहले जो यहाँ रहता था तब भी मैं यही काम करती थी ।आज मैं बूढ़ी बहुत हूँ.. मगर मैं तुम्हारे साथ कुछ पल बिताना चाहती हूँ। तू मुझे अपनी-सी लग रही है ।मैं बस इसलिए यहाँ काम करना चाहती हूँ।मुझे इस घर की दीवारों से ,खिड़कियों से फिर से मिलना है ।उनसे कुछ सुनना है ,कुछ देखना है और कुछ पूछना भी है।"
नीना -"ओ काकी माँ! आप कैसी बातें कर रही हैं। मैं कुछ नहीं समझ पा रही हूँ।"
बूढ़ी काकी -"तू चल अंदर ।सब समझ आएगा। क्या तू अकेली रहती है? कोई साथ में नहीं रहता है? "
नीना -"हाँ काकी माँ! अभी तो अकेले ही हूँ। काम के सिलसिले में यहाँ शिफ्ट हुई हूँ।कब तक रहूंगी ,नहीं जानती हूँ।"
बूढ़ी काकी-" अच्छा ..अच्छा.. बेटा! मैं घर की साफ-सफाई करती हूँ तो अभी सामने वाली दुकान से अपने लिए चाय नाश्ता मँगवा ले ।"
नीना-"ये ठीक है। सब कुछ व्यवस्थित होते-होते तीन-चार दिन लग जाते हैं।" बूढ़ी काकी दिन का छः-सात घंटा नीना के घर में ही बिताती है और बहुत ही मन से काकी मँ नीना की सेवा किया करती है ।नीना बहुत खुश थी ।ऑफिस जाने के पहले से ..आने के बाद तक काकी माँ के हाथ का बना चाय -नाश्ता -खाना सब गरम-गरम जो खाती थी ।घर भी किसी दर्पण-सा ही चमकता रहता था।
एक रात नीना को प्यास लगी ।बोतल में पानी नहीं था ।घड़ी करीब रात के दो बजा रही थी ।वह किचन में रखे फ्रीज से पानी लेने गई ।अभी उसने अपने कमरे से बाहर चार कदम ही बढ़ाये थे कि उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी ।नीना सकपका गई। जब घर में कोई नहीं है तो यह रोने की आवाज कहाँ से आ रही है। नीना के पैर अब उस तरफ बढ़ चुके थे जिधर से रोने की आवाज़ आ रही थी। नीना ने उस कमरे का दरवाजा खोला और देखा एक फटी हुई साड़ी में जमीन पर बैठी हुई एक स्त्री ,जिसके बाल बिखरे हैं और वो उसे देख पीछे खिसक रही है व कह रही है कि" मुझे मत मारो ।मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी। मैं जैसा तुम कहोगी ,वैसा ही करूंगी।" नीना ने दरवाजा बंद किया और अपने कमरे में पहुँच गई ।अब उसे न प्यास लग रही है और नहीं नींद लग रही है। वह किसी विशाल पत्थर- सी स्थिर और शिथिल हो चुकी है ।किसी तरह सुबह की सात बजती है। जब बूढ़ी काकी दरवाजे पर खड़ी हो घंटी पर घंटी बजाती है ,नीना के पाँव नहीं रुकते हैं।वह डर में भी हिम्मत दिखाती है और घर का दरवाजा खोल काकी माँ से लिपट रोने लगती है। बूढ़ी काकी पूछती है कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि जो वो इतना रो रही है। अपने साथ हुई रात की घटना को नीना काकी माँ को बताती है। काकी माँ सोच में पड़ जाती है कि आखिर नीना के साथ ऐसा क्या हो रहा है। नीना घर छोड़कर जाने की बात करती है ।
बूढ़ी काकी उसे संभालती है और कहती है ,"आज मैं तुझे इस घर की कहानी सुनाऊंगी ।आज से लगभग दस साल पहले इस घर में एक परिवार रहता था। पति-पत्नी और दो बेटे ।मैं मालकिन को बहूजी कहती थी ।मैं यहाँ घर की साफ-सफाई किया करती थी। मालकिन स्वभाव से बहुत ही खड़ूस थी ।उन्होंने अपने बड़े बेटे की शादी की और छोटे बेटे का पढ़ने के लिए लंदन भेज दीं। लगभग हर त्योहार पर वो दुल्हन से उसके मायके में से मोटी रकम मँगवाती थीं। ऐसा ही डेढ़ साल चला ।बहूजी का बेटा प्रोफेसर था ।वह दूसरे शहर जा कर रहने लगा और दुल्हिन यहीं पर रहती थी ।बहूजी दुल्हिन की सारी भारी-भारी साड़ियाँ,हीरे- जवाहरात गहने जो शादी में मिले थे ,सब ले ली। दुल्हिन फटी-फटी साड़ियाँ पहनती थी और घर के सारे काम किया करती थी। एक बार यहाँ दुल्हिन के पिताजी उससे मिलने आए थे ,बहू जी ने झूठ कह दिया कि वह घर पर नहीं है ।दुल्हिन तो उस वक्त कमरे में ही थी।दुल्हिन के घर से जाने कितने फोन आते थे ,मगर बहूजी उसे बात ही करने नहीं देती थी और जब दुल्हन बात करती भी थी तो बहूजी पीछे कान लगाए खड़ी रहती थी।बस एक बार पंद्रह दिन के लिए दुल्हिन बहूजी के बेटे के पास गई थी और फिर वापिस बहू जी के पास आ गई थी। बहूजी उसे बहुत शारीरिक और मानसिक यातनाएं देती थी ।मैंने उसका रुदन सुना है और आज भी सुनती हूँ।एक सुबह मैं जब यहाँ आई थी तो दुल्हिन का मृत शरीर उसके कमरे में जमीन पर लेटा हुआ देखा था।नीना बेटा लगता है कि तुम्हें दुल्हिन ही दिखी थी।"
नीना -"हाँ काकी माँ! हो सकता है। अब वह परिवार कहाँ है ?"
बूढ़ी काकी-" बहूजी सीढ़ियों से गिरकर मर गयी। बड़ा बेटा पागल हो गया ।पागलखाने गया और मालिक छोटे बेटे रोहित के पास लंदन है ।"
नीना-" मालिक का क्या नाम है ?"
बूढ़ी काकी-" गिरधर तिवारी "
नीना-"कहीं ऐसा न हो जिसे मैं समझ रही हूँ ये वही हो।"
बूढ़ी काकी -"किसे नीना ?"
नीना-"मेरी दोस्त की शादी जिससे तय हुई है उसका नाम रोहित तिवारी है,उसने ही यहाँ मुझे घर दिया है और उसके पिताजी का नाम शायद गिरधर ही है ।"
बूढ़ी काकी -"मुझे ऐसा लगता है कि दुल्हिन तुम्हारे माध्यम से तुम्हारे दोस्त को सारी हक़ीक़त बताना चाहती है, जिससे उन लोगों ने छिपा कर रखा होगा ।"
नीना-"हाँ, मैं अभी अपनी दोस्त को सारा सच बतलाऊंगी।"

