राधाकृष्ण (mythology)
राधाकृष्ण (mythology)
आज राधा रानी को अपने शयनकक्ष में निद्रा की अवस्था में काफी समय हो गया। वे नहीं उठ रहीं हैं ,उनके कक्ष की खिड़की से निरंतर शीतल बयार उन्हें स्पर्श कर रही है, सूर्यदेव की सुनहरी किरणें राधा रानी के महल के सामने के उपवन को स्वर्ण जड़ित कर रहीं हैं, किंतु राधा रानी भी जिद्द कर बैठीं हैं, आज वे नहीं उठेंगी।
कान्हा जो उनके सिरहाने बैठे हुए हैं ,बोलतें हैं, उनसे विनतीं करतें हैं कि राधे अब उठ भी जाओ। अपनी जिद्द छोड़ भी दो ,जो तुम नहीं उठोगी, संपूर्ण सृष्टि की गति रुक जाएगी। अपना यह हठ छोड़ भी दो और आँखें खोल भी दो।
इस पर श्री राधे कहनें लगतीं हैं.. मैं आँखें नहीं खोलूँगी प्राणेश्वर !अभी तो आप मेरे समीप ही बैठे हैं और जिह्वा से राधे . राधे कह तो रहें हैं किंतु जो मैं आँखें खोलूंगी। आप द्वारकाधीश हो जाओगे और द्वारका को चले जाओगे और फिर मैं तुम्हें खोजती फिरूंगी। कभी जलधारा से आपका पता पूछूँगी... तो कभी मैं मेघों से कहूँगी कि तुमने क्या मेरे कान्हा को देखा है ?कभी इन खग विहग से अपना संदेश तुम तक पहुँचाने को कहूंगी। कभी इन पुष्पों को तुम्हारे श्री चरण कमल छूने को कहूँगी। नहीं आज मैं आँखें नहीं खोलूंगी। चाहे कुछ भी हो, मैं तुम्हें आज जाने नहीं दूंगी।
