ठेस
ठेस
दीपिका और सुधा रिश्ते में जेठानी- देवरानी थीं व आपसी सामंजस्य भी बेहतर था। सुधा जो कि दीपिका की जेठानी थी वो अलग फ्लैट में रहती थी
और सास-श्वसुर दीपिका के साथ ही रहते थे। एक दिन अचानक ही सुधा अपने ससुराल पहुँची, मतलब यूं कि अपनी सासु माँ और दीपिका से मिलने आयी। बातों ही बातों में .
सुधा-"सुनो दीपिका! जब तक माँ जी, बाऊ जी हैं ,तब तक तुम इनकी सेवा करने के उद्देश्य से नीचे की मंज़िल में रह सकती हो, उसके पश्चात् तुम्हें अपना बोरिया-बिस्तर बाँध ऊपर की मंज़िल पर जाना होगा। मैं नीचे की मंज़िल में सब जगह ताला लगाऊँगी। "
दीपिका- "मगर भाभी! आप ये बात कैसे कह सकती हैं? आपका व्यवहार तो मुझसे बहुत अच्छा है।"
सुधा-"देखो दीपिका! व्यवहार अपनी जगह है और जमीन जायदाद अपनी जगह है।"
दीपिका-"ठीक है। माँ जी व बाऊ जी को कभी-कभी अपने यहाँ बुला लिया कीजिए। उनका भी मन बदलेगा।"
सुधा-"नहीं। न वे दोनों मेरे साथ रह सकते हैं न मैं उनके साथ रह सकती हूँ।"
दीपिका-"जी भाभीजी!"और फिर दीपिका मन ही मन बुदबुदाती है
मातापितु होते सदा, संतानों को भार।
माया उनसे जो मिली, लगती निर्मल धार।।
जीवन भर तुमने किया, बस माँ का अपमान।
यही करेगी एक दिन, अब तेरी संतान।।
भाभी! सब ईश्वर देख रहा है। कर्मों का फल यहीं सबको भुगतना है।
