Mridula Mishra

Abstract

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Mridula Mishra

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*साथ*

*साथ*

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वो पैंतालिस साल से उनके साथ थी। बड़ा सुंदर मेल था उनका। नोंक-झोंक होती थी पर बस पाँच-सात मिनटों की।पति अब कुछ ज्यादा ही बिमार पड़ने लगे थे। दोनों बेटों की बहूओं ने सारा काम सम्भाल लिया था। बच्चों ने भी अपने व्यापार को खूब बढा़या था।वह अपने पति की सेवा में तत्पर रहतीं।इधर कोरोनावायरस की महामारी ने सबको घर में बंद कर दिया था। लेकिन सब मिलकर इसका आनंद उठा रहे थे। पोते-पोतियों को भी दादा+दादी का साथ भा रहा था। बहूयें भी बहुत दिनों के बाद पति का सानिध्य पाकर खुश थीं।

लेकिन अचानक सब पर गाज गिरी उनके पति को कोरोना की बिमारी लग चुकी थी। अब सब सकते में थे। बच्चों ने अस्पताल को फोंन कर दिया था। अस्पताल से स्पेशल गाड़ी आ गई थीं।ऐसी विकट परिस्थिति थी कि कोई किसी को छू भी नहीं सकता था।सब लाचार थे।वो भी साथ चलने लगी। सबने बहुत रोका पर,पैंतालिस साल के साथ ने उन्हें रुकने न दिया।अब जीना-मरना साथ होगा बच्चों तुम सबको आशिर्वाद।

*मुझसे यह साथ नहीं छोड़ा जायेगा* 



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