साँड़
साँड़


पीरी! "बेटा मंहत बाबा के डेरे पर दूध पहुंचा दे आज तेरा भाई बाहर गया है।" ठीक है मां मैं देकर आ जाउंगी। पीरी ने दूध की डोलची ली और महंत बाबा के डेरे पर चल दी। पीरी ने महंत बाबा को आवाज़ दी ,"बाबा दरवाज़ा खोलो, दूध लेकर आयी हूं।" बेटी दूध यहीं रख जा। मेरी तबियत ठीक नहीं है। ताप चढ़ी है और, दरवाज़ा तो खूला ही है, महंत जी की आवाज़ आई। निधड़क पीरी दरवाज़ा खोलकर अंदर चली गई और दूध रखकर जाने लगी तभी बाबा ने कहा ,"बेटी दूध को अंदर छीके पर रख जा नहीं तो बिल्ली दूध पी जायेगी।" जी बाबा कहकर जैसे ही पीरी अंदर जाने लगी बाबा ने दरवाज़ा बंद किया और पीरी जबतक कुछ समझ पाती बाबा एक साँड़ की तरह उसे पटकनी पर पटकनी दिये जा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई रेलगाड़ी उसपर से गुजर रही हो। जब बाबा महंत अपनी इच्छा पूर्ति कर उठा और जब पीरी को होश आया तब वह किसी तरह दरवाज़ा खोलकर भागी। घर पहुंच -कर वह अंदर की कोठरी में जाकर खाट पर लमलेट हो गयी। बहुत देर के बाद पीरी की मां ने देखा कि पीरी इस तरह से सोयी है आवाज़ देने पर भी नहीं उठती तो उसने उसके सर पर हाथ रखा अरे पीरी तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है, लगता है सर्दी खा गई हो। कितना बोलती हूं ठंड बढ़ रही है शाल लेकर जा। पर, ये बच्चे सुनते कहां हैं। रुक तुझे तुलसी -अदरक की चाय बनाकर देती हूं। ताप उतर जायेगी। और मां ने जबरदस्ती उसे काढ़ा पिलाया और आराम करने को कहकर घर के कामों में व्यस्त हो गई। दो-तीन घंटे के बाद उसका शरीर अपने आपे में आया। वह उठी और गर्म पानी लेकर नहा आयी पूरे शरीर पर जैसे कीड़े रेंग रहे हों। एक अजीब लिजलिजा सा एहसास उसे घेरे रहता। पीरी के शरीर का दर्द जैसे-जैसे कम होता जा रहा था वैसे-वैसे उसका मानसिक ज्वर बढ़ता जा रहा था। अब वह अपने मंगेतर को भी भूला देना चाहती थी जिससे अगले दो महीने के बाद उसकी शादी होने बाली थी। पीरी की शादी रिस्तेदारी में ही तय हुई थी। अपने मौसेरी बहन की शादी में वह दिल्ली गई थी और उसकी भावी सास ने उसे पसंद कर लिया था। लड़के को भी वह पसंद थी। चूँकि वह रिश्ते में उसकी बहन का देवर लगता था इसलिए शादी में हंसी-मज़ाक भी खूब किया था पीरी ने। वैसे तो पीरी का अल्हड़ सौन्दर्य सबको आकर्षित कर रहा था पर, यह लड़का तो शादी की ही ठान बैठा था। उसकी माँ को भी पीरी हर दृष्टि से बहू बनाने के योग्य लगी थी, बस उसने पीरी के माता-पिता से अपने बेटे जीवन के लिए पीरी को मांग लिया था।
पीरी के माता-पिता पीरी के सौभाग्य पर बहुत खुश थे। शादी के बाद बरात विदा होने लगी लड़की को कनकांजली देने के लिए मौसी ने पीरी को हल्दी रंगे चावलों को लाने के लिए कहा, पीरी भंडार घर में चावल लेने गई, जीवन भी मौका देखकर उसके पीछे गया और पीरी को एक प्यारा सा चुम्बन देकर बाहर भाग गया। पीरी के कुआंरे तन-मन पर एक अजीब सा नशा छाने लगा। अब बरात विदा हो गयी तब सब लोग भी अपने-अपने घर जाने लगे। पीरी भी माता-पिता के साथ घर आ गई। पीरी को तो पंख लग गये थे। वह दौड़ती हुई अपनी सहेली माया के पास पहुंची और उससे सारा वाक़या बताया और उसी के साथ अपनी शादी तय होने की भी बात कही। माया भी बहुत खुश हुई। पीरी भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी। अपनी सहेली को पीरी ने जबसे उस लड़के के बारे में बताया था वह पीरी को उसका नाम ले-लेकर खिझाती रहती थी और पीरी भी झूठ-मूठ उसपर गुस्सा करके गुलाबी हो जाया करती थी। लेकिन इस हादसे के बाद तो वह उसका नाम भी सुनना पसंद नहीं करती थी। एक दिन तड़के उठकर उसने दरांती ली और कम्बल में अपने को लपेट कर छिपते-छिपाते उस ओर गई जहां महंत तड़के हवा-पानी खाने बाहर आता था। पीरी ने देखा कि महंत बैठकर ऊं का जाप कर रहा है बस उसने आव देखा न ताव पूरे जोर से उसकी गर्दन पर दरांती मार दी। आधी गरदन तो कट गई और दूसरे वार में धरती पर लुढ़क गई। पीरी ने खड़े होकर कुछ देर उसका छटपटाता शरीर देखा और फिर बड़े इत्मीनान से दरांती को कुएँ में डाला और अपना हाथ-पैर ठंडे पानी से धो साफ किया और घर आकर नहाया चाय पी और सो गई। महंत के हत्या की खबर आग की तरह पूरे गाँव में फैल गई लेकिन, पुलिस को कोई भी सुराग नहीं मिला। लोगों ने समझा कि शायद किसी जंगली जानवर ने महंत को अपना ग्रास बनाया है। गाँव -वालों ने धूमधाम से महंत का कार्य -विधि सम्पन्न किया और पूरे गाँव ने छक कर खाना खाया। पीरी भी अपनी सहेली के साथ जी भर महंत के तेरहवीं पर खाना खा आयी। पीरी निश्चित हो गई थी पर जब उसे उल्टियां होने लगी तब उसकी मां के कान खड़े हो गए उसने पीरी से बहुत पूछा लेकिन, पीरी ने मुंह सीले रखा। और मां को बस इतना ही कहा," मां शादी तोड़ दो।" एक दिन पीरी के मामा-मामी उन सब से मिलने आये। बातों-बातों में मामी ने बताया कि उसके भाई की शादी अभी तक नहीं हुई है। कोई लड़की वाला अपनी लड़की देने को तैयार ही नहीं कारण उसके भाई का बदसूरत होना और अनपढ़ होना है। अपने मामा-मामी के जाने के बाद पीरी ने अपनी मां को कहा, मां ,"मेरी शादी उसी मामी के भाई से करा दो।"
पीरी की मां ने कुछ सोचा और पीरी से पूछा," तेरे दिन चढे़ हैं क्या? पीरी चुप रह गयी। अंत में उसके माता-पिता ने लाचार होकर उसका रिश्ता वहीं तय कर दिया।
पीरी ने जब अपने दूल्हे को पहली बार देखा तो वह डर से पीली पड़ गयी उसे उसी महंत की याद आ गई। और पहली रात उसी हालात से पीरी गुजरी जिससे वह महंत के साथ गुजार चुकी थी।
अब पीरी प्रतिदिन उस साँड़ का सामना करती , प्रतिरात एक रेलगाड़ी उसपर से गुजर जाती और वह एक बिना कटी-फटी लाश की तरह उस साँड़ के साथ सफ़र करती रहती।
दिन गुजरते चले गये। उसने महंत के बेटे को सात माह में ही जन्म दिया। इस अनपढ़ और बदसूरत पति ने खूब बाजे-गाजे बजवाये, मिठाईयाँ बंटवायी। बेटे के जन्म पर। बेटा बिल्कुल उस महंत पर पड़ा था। यह साँड़ और वह महंत दोनों में फर्क ही क्या था। फिर दो-दो साल के अंतराल में इस पति से उसे दो बच्चे हुए एक लड़का और दूसरी लड़की। धीरे-धीरे समय के बहाव में न जाने कितने साल खिसक गये उसकी बेटी जवान हो गयी। पीरी उसे सदैव अपने नजरों के सामने रखती। अब उसने उसकी शादी की बात चलानी शुरू की। संयोग ही था कि पीरी की लड़की हीरा के लिए जो रिश्ता आया वह पीरी के प्रियतम के बेटे का था। पीरी का तन-मन एक कुंवारी छुअन से भर उठा। वह हीरा की भाग्य से रश्क करने लगी। काश समय उसे पीछे ले जाय और वह अपने प्रियतम की प्रिया बनकर उसके तन -मन में समा जाये और उसके बच्चों की मां बने। वह कल्पना में अपनी और उसकी छवि एक साथ देखती। उसे एहसास होता कि उसके शरीर का एक टुकड़ा उसके प्रियतम के शरीर से जाकर गुथ गया है। हीरा की शादी तक वह किसी नशे में डूबी काम निपटाती रही। और जब उसने समधी बने अपने प्रियतम का दीदार किया तो बस उसकी सारी चाहत उस एक पल में पूरी हो गई। अब उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि, उसके सारे अरमान ईश्वर ने पूरे कर दिये थे। वह भी सूद समेत।